
14 मई की रात करीब 10 बजे दिल्ली और आसपास के इलाकों जैसे गुरुग्राम में अचानक धूल की मोटी चादर छा गई। इसके चलते हवा की गुणवत्ता बेहद खराब हो गई। इसकी वजह से लोगों को आंखों में जलन व सांस लेने में तकलीफ जैसी दिक्कतें होने लगी। यह धूल राजस्थान में सतह के पास चलने वाली तेज हवाओं के जरिए दिल्ली-एनसीआर तक पहुंची थी।
15 मई को भी कई इलाकों में हालात ऐसे ही बने रहे। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) के सिरीफोर्ट निगरानी केंद्र ने 15 मई की शाम 4 बजे एयर क्वालिटी इंडेक्स (एक्यूआई) 389 रिकॉर्ड किया, जो बेहद खराब श्रेणी को दर्शाता है।
भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (आईएमडी) के मुताबिक, कुछ समय के लिए इंदिरा गांधी अंतरराष्ट्रीय हवाईअड्डे पर दृश्यता 4,000 मीटर से घटकर 1,200 मीटर रह गई थी, हालांकि बाद में स्थिति सामान्य हो गई।
आईएमडी ने इस बारे में एक प्रेस विज्ञप्ति में कहा, “उत्तर-पश्चिमी भारत में उत्तर-दक्षिण दिशा में हवा के दबाव में बड़ा अंतर था, जिससे 14 मई की रात से 15 मई की सुबह तक पंजाब, हरियाणा, दिल्ली और उत्तर राजस्थान में 30-40 किलोमीटर प्रति घंटा की रफ्तार से तेज हवाएं चलीं।“
राजस्थान से दिल्ली तक धूल का सफर
मौसम विभाग ने आगे बताया, “इन तेज हवाओं के कारण पश्चिम राजस्थान से धूल उड़कर उत्तर राजस्थान, दक्षिण पंजाब और दक्षिण हरियाणा होते हुए दिल्ली-एनसीआर तक पहुंच गई। इसकी वजह से दृश्यता कम हो गई और दिल्ली के आईजीआई एयरपोर्ट पर दृश्यता कुछ समय के लिए घटकर 1,200 मीटर रह गई।“
जयपुर स्थित मौसम विभाग के क्षेत्रीय केंद्र ने पहले ही 14 मई को दोपहर 1:30 बजे राजस्थान में धूल भरी आंधी की चेतावनी जारी की थी। बीकानेर समेत कई शहरों में आंधी चली भी थी।
दिल्ली स्थित क्षेत्रीय केंद्र ने भी शहर में 15 से 25 किलोमीटर प्रति घंटा की रफ्तार से आंधी चलने की आशंका जताई थी। साथ ही यह भी अंदेशा जताया था 35 किलोमीटर प्रति घंटा रफ्तार से तेज हवा के झोंके चल सकते हैं।
14-15 मई की रात हवा की गति धीमी रही, लेकिन सुबह होते-होते रफ्तार बढ़ी और 15 मई को सुबह 11:30 बजे तक दिल्ली एयरपोर्ट पर दृश्यता 4,000 मीटर तक पहुंच गई।
विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) की वेबसाइट पर साझा जानकारी के मुताबिक, “रेत और धूल भरी आंधियां हवा में सूक्ष्म कणों के स्तर को बढ़ाकर सीधे तौर पर वायु प्रदूषण में योगदान देती हैं। कई इलाकों में यह धूल और पार्टिकुलेट मैटर प्रदूषण का प्रमुख स्रोत हैं।
डब्ल्यूएचओ के अनुसार ऐसे धूल भरे हालात पर्यावरण और स्वास्थ्य के लिए गंभीर चिंता का विषय हैं। मुख्य रूप से इनकी वजह से सांस और हृदय संबंधी बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है। यह समस्या सिर्फ रेगिस्तानी इलाकों तक सीमित नहीं है — धूल हजारों किलोमीटर दूर तक असर डालती है।
हर साल प्री-मानसून सीजन के दौरान दिल्ली और उत्तर-पश्चिम भारत में ऐसे धूल भरे तूफानों का आना आम है। इस मौसम में सऊदी अरब और कभी-कभी सहारा जैसे दूर-दराज के इलाकों से उठने वाली धूल पश्चिमी हवाओं के जरिए यहां तक पहुंच जाती है।