बेंगलुरु में अब यह बारिश की आफत क्यों?

आने वाले दिनों में, शहर में साफ आसमान देखने की उम्मीद नहीं है
फोटो : विकिमीडिया कॉमन्स
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दक्षिण-पश्चिम मानसून की शुरुआत से पहले ही मई महीने में बेंगलुरु में लगातार दो हफ्तों तक बारिश हुई। समाचार रिपोर्टों के अनुसार, लगातार बारिश से दो लोगों की मौत हो गई और 3,000 से अधिक घर बाढ़ की जद में आ गए।

17 मई को बेंगलुरु में 114.6 मिलीमीटर बारिश दर्ज की गई। सेंटर फॉर क्लाइमेट चेंज रिसर्च, इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ ट्रोपिकल मेटोरोलोजी से जुड़े विनीत कुमार ने माइक्रोब्लॉगिंग साइट ट्विटर पर लिखा, यह कम से कम पिछले दस वर्षों में मई महीने के दौरान, 24 घंटे के बीच हुई सर्वाधिक वर्षा है।“

भारत मौसम विज्ञान विभाग (आईएमडी) के अनुसार, आने वाले दिनों में शहर में आसमान साफ ​​होने की उम्मीद नहीं है।

इंटरडीसिप्लीनरी प्रोग्राम इन क्लाइमेट स्टडीज के संयोजक और सिविल इंजीनियरिंग विभाग, आईआईटी बॉम्बे के प्रोफेसर सुबिमल घोष कहते है कि वर्ष के इस महीने में बारिश की यह मात्रा असामान्य है।

उन्होंने डाउन टू अर्थ (डीटीई) को बताया, “हमें शहर में प्री-मानसून अवधि (मार्च-मई) में इतनी अधिक बारिश की उम्मीद नहीं थी।“ उन्होंने कहा कि अभी यह कहना जल्दबाजी होगी कि क्या इसके पीछे जलवायु परिवर्तन और शहरीकरण ने कोई भूमिका निभाई है। उनका मानना है कि निष्कर्ष तक पहुंचने से पहले विस्तृत जांच की जरूरत है।

हालांकि, कुछ अन्य विशेषज्ञों का मानना है कि बारिश अप्रत्याशित नहीं थी और यह प्री-मानसून समय की विशेषता है।

इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ ट्रोपिकल मेटोरोलोजी के वैज्ञानिक पी मुखोपाध्याय ने डीटीई को बताया कि जून में शुरू होने वाले दक्षिण-पश्चिम मानसून के इस साल की शुरुआत में ही पहुंचने का अनुमान है। उन्होंने कहा कि मानसून कभी-कभी जल्दी या देर से भी आ सकता है।

उनका कहना है कि बारिश के लिए परिस्थितियां पहले से ही अनुकूल थीं। बहुत अधिक गर्मी और नमी है, जिससे गरज के साथ बौछारें पड़ रही हैं।

एक्सपर्ट्स के मुताबिक़, इसके अलावा, चक्रवाती हवाओं - कम दबाव वाले क्षेत्र के कारण चलने वाली हवाएं – भी बेंगलुरु और आसपास के क्षेत्र में भारी बारिश का कारण बने। उन्होंने कहा कि चक्रवाती हवाओं में नमी धारण करने की बहुत अधिक क्षमता होती है और इससे भारी वर्षा होती है।

नेशनल सेंटर फॉर अर्थ साइंस स्टडीज के वैज्ञानिक एम राजीवन भी इस तर्क से सहमत दिखाते हैं। उन्होंने कहा कि ट्राफ (दो ऊंचे क्षेत्रों के बीच एक नीचा क्षेत्र) भी ऐसे मौसम के लिए जिम्मेदार हो सकते हैं। कम दबाव वाले क्षेत्रों के पास ट्राफ पाई जाती है। विशेषज्ञों के अनुसार, इससे हवा बढ़ती है, जिससे वर्षा होती है।

कोट्टायम स्थित इंस्टीट्यूट फॉर क्लाइमेट चेंज स्टडीज के निदेशक डी शिवानंद पाई ने डीटीई को बताया कि पश्चिमी घाट भी इस बारिश के कारण हो सकते है।

उन्होंने बताया, "कर्नाटक की चोटियां चौड़ी हैं, जिससे हवा की नमी बेहतर तरीके से बढ़ती है और फिर यह राज्य के अंदरूनी हिस्सों तक पहुंच जाती है।" उन्होंने कहा कि ऊंची चोटियों वाले क्षेत्रों में ऐसा होने की संभावना नहीं रहती है।

गर्म होता अरब सागर

घोष ने कहा कि गर्म होती अरब सागर के कारण भी भारी बारिश हो सकती है, लेकिन इसकी विस्तृत जांच की जरूरत है। अरब सागर 28 डिग्री सेल्सियस से अधिक ठंडा हुआ करता था। इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ ट्रोपिकल मेटोरोलोजी के वैज्ञानिक रॉक्सी मैथ्यू कोल ने डीटीई को बताया कि 1950 के दशक से अरब सागर के कुछ हिस्सों में तापमान 1.2-1.4 डिग्री सेल्सियस बढ़ गया है, जो बहुत अधिक है।

एक अन्य अध्ययन में पाया गया कि गर्म समुद्र के कारण पश्चिमी तट पर ओलावृष्टि, गरज और बिजली पैदा करने वाले क्यूम्यूलोनिम्बस बादल बन रहे हैं। कोचीन यूनिवर्सिटी ऑफ साइंस एंड रिसर्च के एसोसिएट प्रोफेसर एस अभिलाष ने पहले डीटीई को बताया था कि ये बादल यहां अपेक्षाकृत नई घटना हैं। वह इस स्टडी के लेखकों में से एक हैं।

शहरी समस्या

घोष के अनुसार, इसका एक कारण बढ़ता हुई शहरीकरण भी हो सकता है। यह अधिक बारिश का कारण बन सकता है। उन्होंने बताया कि इंटरगवर्नमेंटल पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज (आईपीसीसी) के वर्किंग ग्रुप 1 द्वारा छठी आकलन रिपोर्ट के अध्याय 11 में भी इसका जिक्र किया गया है। उन्होंने कहा कि शहरी क्षेत्र आसपास के गैर-शहरी क्षेत्रों की तुलना में अधिक गर्म हैं। इसलिए, यह अधिक बारिश पैदा करता है।

उन्होंने कहा कि शहरी क्षेत्र में अधिक प्रदूषण है। उद्योग, पावर प्लांट और परिवहन जैसी मानवीय गतिविधियों से निकलने वाले एरोसोल बादलों का निर्माण कर सकते हैं। इससे तेज बारिश भी होती है।

बेंगलुरु के लिए शहरी बाढ़ एक और चुनौती है। राजीवन ने बताया कि यह खराब जल निकासी व्यवस्था या इसमें आने वाली रुकावट के कारण हो सकता है। पाई ने कहा कि शहरी बाढ़ स्थानीय स्तर पर और अधिक दुष्प्रभाव छोड़ते है, क्योंकि पानी निकलने में ज्यादा समय लगता है।

इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ साइंस के एक केस स्टडी के अनुसार, अनियोजित शहरीकरण ने प्राकृतिक जलग्रहण या जल निकासी क्षेत्रों की क्षमता को बुरी तरह प्रभावित किया है।

विशेषज्ञों ने अपने अध्ययन में इस बात का उल्लेख किया है कि जब इंसान प्राकृतिक बाढ़ के मैदानों, जैसे आर्द्रभूमि (वेटलैंड्स), पर अतिक्रमण करता है, तो हम बाढ़ के पानी के भंडारण करने वाले प्राकृतिक साधनों को खो देते हैं।

अधिक वर्षा के दौरान ड्रेनेज सिस्टम में पानी की मात्रा बढ़ जाती है। केस स्टडी में कहा गया है कि ठोस कचरे के बदतर निपटान व्यवस्था के कारण नालियां अवरुद्ध हो जाती हैं।

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