
बहुत भारी बारिश से भयंकर बाढ़ आ सकती है, जिसे फ्लैश फ्लड या अचानक आई बाढ़ कहा जाता है। ऐसी बारिश तापमान के साथ कैसे बदलती है? इस सवाल का उत्तर दशकों से बारिश और तापमान को सही तरीके से दर्ज करके किया जा रहा है। जिसे एक घंटे या उससे कम समय में मापा जाता है।
बारिश और बादल तब बनते हैं जब हवा में मौजूद वाष्प पानी से पूरी तरह भर जाती है, जिससे छोटी-छोटी बूंदें बनती हैं जो आखिर में एक साथ मिलकर बारिश की बूंदें बनती हैं।
क्लॉसियस-क्लैपेरॉन संबंध के अनुसार, तापमान में एक डिग्री सेल्सियस की वृद्धि होने पर पानी से पूरी तरह भरने के लिए लगभग सात प्रतिशत अधिक वाष्प की जरूरत पड़ती है।
यह संबंध एक आसान छवि के रूप में, एक स्पंज की तरह हो सकता है जो तापमान बढ़ने पर अधिक पानी को अवशोषित कर सकता है। इस छवि में एक बहुत ज्यादा बारिश की घटना स्पंज को निचोड़ने की तरह है ताकि उसका अधिकांश पानी निकल जाए।
इस तरह की परिकल्पना को साल 2008 में नीदरलैंड में लंबे समय तक बारिश के आंकड़ों के विश्लेषण द्वारा चुनौती दी गई थी। उस अध्ययन में निष्कर्ष निकाला गया था कि क्लॉसियस-क्लैपेरॉन संबंध अत्यधिक बारिश में वृद्धि का वर्णन करने के लिए अपर्याप्त था, विशेष रूप से गरज के साथ होने वाले तूफानों में जो 14 प्रतिशत प्रति डिग्री सेल्सियस की दर से बढ़ सकती हैं, इस प्रकार यह क्लॉसियस-क्लैपेरॉन की दर से दोगुना है।
पिछले 17 सालों में शोधकर्ताओं के द्वारा किए गए कार्य, जिसका अब 1000 से अधिक बार उल्लेख किया जा चुका है, ने इस घटना की कई जांच की है। विशेष रूप से यह निर्धारित करना मुश्किल था कि विभिन्न तरह की बारिश का मिश्रण किस हद तक सांख्यिकीय तरीकों से मेल खा सकता है।
इस शोध में दो तरह की बारिश पर विस्तृत रूप से नजर डाली गई है, पहली स्ट्रेटीफॉर्म बारिश जो निरंतर और तीव्रता में एक समान होती है, जबकि दूसरी गरज के साथ होने वाली छोटी समय की बारिश है। शोधकर्ताओं ने जर्मनी से एक बड़े और उच्च-आवृत्ति डेटासेट का उपयोग किया जिसे एक नए वज्रपात का पता लगाने वाले डेटासेट के साथ जोड़ा जाता है। क्योंकि बिजली गरज के साथ होने वाली गतिविधि की ओर इशारा करती है, इसलिए स्ट्रेटीफॉर्म बारिश को इस तरह से अलग किया जा सकता है।
स्ट्रेटीफॉर्म बादल क्षैतिज रूप से परतदार बादल होते हैं, जो स्थिर वायुमंडलीय परिस्थितियों में बनते हैं, जहां हवा ऊपर उठती है लेकिन ऊर्ध्वाधर रूप से उठने के बजाय फैलती है। ये बादल अपनी चादर या कंबल जैसी उपस्थिति के लिए जाने जाते हैं।
शोध के परिणाम काफी चौंकाने वाले हैं, जब केवल स्पष्ट गरज के साथ होने वाली बारिश का सही तरीके से चयन किया जाता है और प्रत्येक तापमान पर चरम सीमाओं का अध्ययन किया जाता है, तो वृद्धि लगभग पूरी तरह से क्लॉसियस-क्लैपेरॉन सिद्धांत के अनुरूप होती है।
समान रूप से, केवल स्ट्रेटीफॉर्म बारिश के लिए चयन करने पर, आंकड़े क्लॉसियस-क्लैपेरॉन संबंध को बहुत अच्छी तरह से फिट करता है। केवल दोनों प्रकार की बारिश के आंकड़ों को मिलाने पर, तापमान में बहुत अधिक वृद्धि दर सामने आती है, जैसा कि पिछले अध्ययनों में देखा गया है।
नेचर जियोसाइंस नामक पत्रिका में प्रकाशित शोध पत्र में शोधकर्ता का कहना है कि यह 'सुपर-क्लॉसियस-क्लैपेरॉन' वृद्धि पूरी तरह से सांख्यिकीय मूल की है, जिससे लंबे समय से चल रहा विवाद अब आखिर कार सुलझ सकता है।
मौजूदा शोध बताता है कि बारिश की चरम सीमा में सांख्यिकीय 'सुपर-क्लॉसियस-क्लैपेरॉन' वृद्धि उन समूहों पर लागू होती है जिनमें गरज के साथ बारिश और स्ट्रेटीफॉर्म बादल दोनों होते हैं। ऐसे बादल अत्यधिक बाढ़ पैदा करने वाली बारिश के लिए जिम्मेदार होते हैं।
बढ़ते तापमान के तहत आने वाले दशकों के लिए अनुमानित तापमान में होने वाले बदलावों को मानते हुए, अत्यधिक बारिश वास्तव में लोगों और बुनियादी ढांचे के लिए भारी खतरा पैदा कर सकती है।