क्या है हिमालयी क्षेत्र में बदलते मौसम का कारण

विशेषज्ञों का कहना है कि अप्रैल-मई में हिमालयी क्षेत्र में मौसम का पैटर्न बदल रहा है, इसलिए इसके व्यापक अध्ययन की जरूरत है
Photo: Samrat Mukharjee
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मई के तीसरे हफ्ते में उत्तराखंड में कुछ जगहों पर तापमान 40 डिग्री के नज़दीक पहुंच गया है, जबकि दूसरे हफ्ते में मैदानी जिलों में भी हलकी ठंड का अहसास था। अप्रैल-मई की बारिश और ओलावृष्टि से किसानों-बागवानों की मेहनत पर पानी फिर गया। ये बारिश सामान्य है या बीते वर्षों में बारिश के पैटर्न में बदलाव आ रहा है, ये समझने के लिए हिमालयी क्षेत्र में पर्याप्त वेदर स्टेशन ही नहीं हैं।

देहरादून मौसम विज्ञान केंद्र से मिले वर्ष 2013 से 2020 तक के मार्च के आंकड़ों की तुलना करें तो 2013 में जब केदारनाथ आपदा आयी थी, उस समय मार्च महीने में 22 मिली मीटर बारिश दर्ज की गई थी जो सामान्य (57.6) से कहीं कम थी। वर्ष 2015 में सामान्य से कहीं अधिक 127.0 मिमी बारिश दर्ज हुई थी। 2016 से 2019 तक मार्च में बारिश सामान्य से कम ही हुई है। जबकि इस वर्ष ये 118 मिमी. रही।

अप्रैल में भी 2013-2020 के अंतराल में वर्ष 2015 (57.3), 2017 (52.8), 2018 (61.3) में बारिश सामान्य (33.2 मिमी) से अधिक हुई। इस वर्ष अप्रैल में भी सामान्य से अधिक 49.3 मिमी बारिश हुई।

लेकिन इस वर्ष मई के शुरुआती दो हफ्तों में रिकॉर्ड बारिश हुई। 11 मई तक प्रदेश में 48.7 मिमी. बारिश हुई जो अंतराल में सामान्य (21.4) से करीब 128 प्रतिशत अधिक रही। इससे पहले 2016 (99.1 मिमी) और 2017 (108.2) बारिश पूरे महीने में हुई है।

इस वर्ष पश्चिमी विक्षोभ ज्यादा मिले हैं। जम्मू कश्मीर, हिमाचल, उत्तराखंड, दिल्ली, पंजाब और हिमालय के कुछ क्षेत्रों में पश्चिमी विक्षोभ के चलते बारिश होती है।

मौसम में आ रहे ये बदलाव सामान्य हैं या लंबे समय में इनके पैटर्न में बदलाव आया है? अल्मोड़ा में जीबी पंत संस्थान में वैज्ञानिक डॉ संदीपन कहते हैं कि सर्दियों की बारिश के बाद अप्रैल में सामान्यत: आंधी-तूफान आते हैं। इनकी तीव्रता भी घटती-बढ़ती रहती है, लेकिन लंबी अवधि में बारिश के पैटर्न में बदलाव आ रहे हैं या नहीं, इस पर पर्वतीय क्षेत्र में गहन अध्ययन नहीं हुआ है। उनके मुताबिक भारतीय हिमालयी क्षेत्र में इस तरह के अध्ययन की जरूरत है ताकि ये समझा जा सके कि क्या बारिश और उसकी तीव्रता बढ़ रही है।

डॉ संदीपन कहते हैं कि हिमालयी क्षेत्र में मौसम के अध्ययन के लिए जरूरी लार्ज स्केल मॉनीटरिंग स्टेशन नहीं हैं। इसीलिए पहाड़ों में आ रहे बदलावों का अध्ययन कर पाना और उसे समझा पाना मुश्किल होता है।

उन्होंने बताया कि जीबी पंत संस्थान की उच्च पर्वतीय क्षेत्र में दो वेदर स्टेशन स्थापित करने की योजना है। इसमें से एक रुद्रप्रयाग के त्रिजुगीनारायण में स्थापित हो सकता है। जहां से खासतौर पर मानसून का अध्ययन किया जा सके।

इस वर्ष मार्च से मई तक लगातार हुई बारिश और ओलावृष्टि ने किसानों को बड़ा नुकसान पहुंचाया। टिहरी के नैनबाग क्षेत्र के बागवान कुंदन पंवार कहते हैं कि समय पर जरूरी धूप न मिलने से इस बार के आड़ू-खुबानी में वो मिठास नहीं होगी। करीब ढाई हेक्टेअर में बागवानी कर रहे कुंदन कहते हैं कि कीवी को छोड़कर सभी फलों पर मौसम की मार पड़ी है। आड़ू की 90 प्रतिशत पैदावार खराब हो गई है। सेब की पैदावार भी प्रभावित हुई है। कुंदन पंवार कहते हैं कि सिर्फ सेब और आड़ू से ही तीन लाख रुपये तक का नुकसान हुआ है। जबकि मध्य हिमालयी क्षेत्रों में गेहूं के साथ पत्तागोभी, टमाटर और अन्य सब्जियां भी प्रभावित हुई हैं।

हालांकि सेबों के लिए मशहूर उत्तरकाशी के हर्षिल बेल्ट पर मौसम की मेहरबानी रही। यहां बारिश-बर्फ़बारी तो हुई लेकिन ओलावृष्टि नहीं हुई। जिससे सेब के फल सुरक्षित रहे।

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