अंटार्कटिका-आर्कटिक में रिकॉर्ड तोड़ गर्मी के क्या हैं मायने?

अंटार्कटिका और आर्कटिक में रिकॉर्ड तोड़ गर्मी की क्या वजह है? इसके क्या नतीजे निकलेंगे?
इंटरगवर्नमेंटल पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज ने अनुमान जताया है कि आर्कटिक की समुद्री बर्फ इतनी ही तेजी से पिघलती रहेगी, तो 2050 की गर्मियों में शायद वहां बर्फ नहीं दिखेगी। अंटार्कटिका का भविष्य भी ऐसा ही दिख रहा है। बढ़े तापमान ने जीवों और वनस्पतियों को प्रभावित किया है
इंटरगवर्नमेंटल पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज ने अनुमान जताया है कि आर्कटिक की समुद्री बर्फ इतनी ही तेजी से पिघलती रहेगी, तो 2050 की गर्मियों में शायद वहां बर्फ नहीं दिखेगी। अंटार्कटिका का भविष्य भी ऐसा ही दिख रहा है। बढ़े तापमान ने जीवों और वनस्पतियों को प्रभावित किया है
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डाना एम बर्गस्ट्रॉम, शेरॉन रोबिंसन, साइमन एलेक्जेंडर

मार्च में अंटार्कटिका-आर्कटिक में रिकॉर्ड तोड़ गर्मी पड़ी और तापमान सामान्य से 47 और 30 डिग्री सेल्सियस तक अधिक पहुंच गया (आर्कटिक में 18 अप्रैल का भी अधिकतम तापमान सामान्य से 6 डिग्री सेल्सियस अधिक था)। हालांकि, अंटार्कटिका में तो किसी भी समय हीटवेव का आना अजीब ही घटना है, लेकिन इस बार यह ऐसे वक्त हो रहा है, जब यहां अंधकारमय सर्दियां शुरू होने वाली हैं। इसी तरह आर्कटिक अभी सर्दियों से उबर ही रहा है।

क्या इन दोनों हीटवेव में आपस में कोई संबंध है? हमें अभी तक इसका जवाब नहीं मिला है। सबसे ज्यादा संभावना इस बात की है कि यह महज एक संयोग हो। लेकिन, हम यह जरूर जानते हैं कि अंटार्कटिका और आर्कटिक दोनों में ही मौसम प्रणाली उनके निकटतम क्षेत्रों से संबंधित हैं। और, कभी-कभी इन संबंधों का असर कटिबंधों पर दिखाई देता है।

क्या इसके पीछे कारण जलवायु परिवर्तन है? ऐसा हो सकता है। लेकिन, निश्चित तौर पर ऐसा कहना जल्दबाजी होगी। हमें पता है कि जलवायु परिवर्तन ध्रुवों पर हीटवेव की घटना को सामान्य बना रहा है, जो बेहद गंभीर मुद्दा है। ध्रुव वैश्विक औसत की तुलना में कहीं तेजी से गर्म हो रहे हैं। आइए जानते हैं कि आखिर ऐसी कौन सी चीज है जो इन विसंगतियों को चरम पर पहुंचा रही है और इससे पेंगुइन, ध्रुवीय भालू जैसे वन्यजीव किस तरह से प्रभावित हो रहे हैं।

अंटार्कटिका में क्या हुआ?

अंटार्कटिका की हीटवेव ऑस्ट्रेलिया के दक्षिण-पूर्व में मौजूद एक धीमी और तीव्र उच्च दबाव वाली प्रणाली की वजह से पैदा हो रही थी, जो अंटार्कटिका के अंदरूनी हिस्सों में बड़ी मात्रा में गर्म हवा और नमी लेकर आ रही थी। इसके साथ ही पूर्वी अंटार्कटिक के अंदरूनी हिस्सों को अत्यधिक तीव्र निम्न दाब प्रणाली का भी सामना करना पड़ रहा था। अंटार्कटिक के बर्फीले पठार के ऊपर छाए बादलों की वजह से सतह से निकलने वाली गर्मी वहां से मुक्त नहीं हो सकी, जिससे हालात और बदतर हो गए।

मार्च में अंटार्कटिका में शरद ऋतु चल रही थी और महाद्वीप के अंदरूनी हिस्सों में इतनी अधिक गर्मी नहीं थी, जो ग्लेशियर और आईस कैप को पिघला सकती थी। लेकिन, यह नहीं कहा जा सकता है कि तापमान में उतार-चढ़ाव नहीं हुआ है।

उदाहरण के तौर पर, बर्फ के पठार के बीच वोस्तोक में पारा -17.7 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच गया, जो -32.6 डिग्री सेल्सियस के पिछले रिकॉर्ड से 15 डिग्री अधिक है। इटैलियन-फ्रेंच रिसर्च स्टेशन कॉनकॉर्डिया भी ऊंचे बर्फीले पठार पर मौजूद है और वहां मार्च के औसत से 40 डिग्री अधिक तापमान दर्ज किया गया। उस क्षेत्र में यह किसी भी महीने में दर्ज हुआ सर्वाधिक तापमान है।

तटीय इलाकों में कहानी बहुत अलग है, जहां बारिश हुई, क्योंकि महाद्वीप में यह सामान्य नहीं है। इस बारिश की वजह थी एक वायुमंडलीय नदी, जो महासगरों से एकत्रित नमी की एक पतली पट्टी से बनी थी। वायुमंडलीय नदियां निम्न दबाव क्षेत्रों के किनारे पाई जाती हैं, जो महाद्वीपों तक को पार करते हुए लंबी दूरी तक बड़ी मात्रा में पानी ले जा सकती हैं।

दुर्लभ होने के बावजूद वायुमंडलीय नदियां महाद्वीप की बर्फ की चादरों में महत्वपूर्ण योगदान देती हैं। यह नदियां अपेक्षाकृत भारी मात्रा में बर्फ गिराती हैं। अंटार्कटिका में जब सतह का तापमान बढ़ जाता है और बर्फ जमाने लायक नहीं रह जाता है, तब वहां बर्फबारी की जगह बारिश होती है।

14 मार्च को ऑस्ट्रेलियाई केसी स्टेशन पर हवा का तापमान अधिकतम -1.9 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच गया। 2 दिन बाद ही वहां तापमान बढ़कर इतना हो गया, जैसा गर्मियों के मध्य तक होता है। पहली बार वहां मार्च का अधिकतम तापमान 5 डिग्री तक बढ़ गया, जिससे बर्फ पिघल जाएगी। केसी स्टेशन पर 2 साल में यह दूसरी हीटवेव है। फरवरी 2020 में भी केसी में पारा 9.2 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच गया था, जबकि अंटार्कटिक प्रायद्वीप में यह 18.3 डिग्री सेल्सियस के चौंका देने वाले उच्चतम स्तर पर चला गया।

वन्यजीवों के लिए मायने

पूरे अंटार्कटिक के समुद्री तट पर रहने वाले एडेली पेंगुइन का गर्मियों का प्रजनन काल हाल ही में खत्म हुआ है। लेकिन, शुक्र है कि एडिले पेंगुइन के चूजे भोजन की तलाश में पहले ही समुद्र के लिए निकल चुके थे, इसलिए हीटवेव ने उन्हें प्रभावित नहीं किया है। बारिश से स्थानीय पौधों जैसे कि शैवाल के जीवन को नुकसान पहुंच सकता है। जब बारिश हुई, तब शैवाल सर्दियों के लिए सूखने के आखिरी चरण में थे। लेकिन, जब तक हम अगली गर्मियों में शैवाल वाले क्षेत्रों में दोबारा नहीं जाते हैं, तब तक हमें यह नहीं पता चल सकेगा कि उन्हें कोई नुकसान हुआ है या नहीं।

पिछले सप्ताह आर्कटिक में भी मौसम का ऐसा ही मिजाज देखने को मिला। संयुक्त राज्य अमेरिका के उत्तर-पूर्वी तट से एक तीव्र निम्न दाब क्षेत्र बनने लगा। इसके पास स्थित अत्यधिक उच्च दाब वाले क्षेत्र के संधि स्थल पर एक वायुमंडलीय नदी बन गई। मौसम के इन हालात से आर्कटिक सर्कल में गर्म हवा प्रवाहित हुई जिसके बाद नार्वे के स्वालबाल्ड में 3.9 डिग्री सेल्सियस का नया उच्चतम तापमान दर्ज किया गया।

अमेरिकी शोधकर्ताओं ने निम्न दाब की इस प्रणाली को “बॉम्ब साइक्लोन” नाम दिया, क्योंकि यह जितनी तेजी से बनती है, उसके लिए “बॉम्बोजेनेसिस” टर्म का इस्तेमाल किया जाता है। इस साल सर्दियों में समुद्री बर्फ की स्थिति पहले से ही ठीक नहीं थी और जमीन पर पूरे ग्रीनलैंड में रिकॉर्ड तोड़ बारिश हो गई। अगर गर्म परिस्थितियों के कारण समुद्री बर्फ अपने सामान्य समय से पहले पिघली तो कई जीवों पर इसका गंभीर प्रभाव पड़ सकता है। उदाहरण के लिए ध्रुवीय भालू के लिए समुद्री बर्फ एक अहम आवास है, जो उन्हें सील का शिकार करने और लंबी दूरी की यात्रा करने में सक्षम बनाता है।

आर्कटिक में बहुत से लोग रहते हैं। इनमें आर्कटिक के मूल निवासी भी शामिल हैं। और, हमें यह पता है कि समुद्री बर्फ के खत्म होने से जीवन यापन के लिए जरूरी शिकार करने के साथ ही सांस्कृतिक प्रथाओं में भी बाधा आती है। बॉम्ब साइक्लोन वाली मौसम प्रणाली की वजह से उत्तरी गोलार्ध के कई आबादी वाले इलाकों में अराजक मौसम हो गया है। उदाहरण के तौर पर उत्तरी नार्वे में 3 सप्ताह से पड़ रही असामान्य गर्मी के कारण फूल जल्दी खिलने लगे हैं।

भविष्य के लिए सूचक

मॉडलिंग से पता चलता है कि बड़े पैमाने पर जलवायु पैटर्न अधिक परिवर्तनशील हो गए हैं। इसका मतलब है कि कदाचित एकबारगी आने वाली हीटवेव जलवायु परिवर्तन के लिहाज से भविष्य के लिए एक सूचक साबित हो सकती है।

खासतौर पर आर्कटिक दुनिया के बाकी हिस्सों की तुलना में दोगुनी तेजी से गर्म हो रहा है। ऐसा इसलिए है क्योंकि पिघलने वाली बर्फ समुद्र की गहराई बढ़ाती है और समुद्र जितना गहरा होता है, उतनी ही ज्यादा गर्मी को अवशोषित करता है।

हकीकत में इंटरगवर्नमेंटल पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज (आईपीसीसी) ने अनुमान जताया है कि आर्कटिक की समुद्री बर्फ इतनी ही तेजी से पिघलती रहेगी, तो 2050 की गर्मियों में शायद वहां बर्फ नहीं दिखेगी।

अंटार्कटिका का भविष्य भी ऐसा ही दिख रहा है। आईपीसीसी ने अपनी रिसर्च में पाया है कि ग्लोबल वार्मिंग के चलते इस सदी में तापमान में 2 से 3 डिग्री सेल्सियस की बढ़ोतरी हो सकती है, जिससे पश्चिमी अंटार्कटिका अपनी बर्फीली चादर पूरी तरह से खो देगा। जितना जल्द संभव हो, उतनी तेजी से ग्रीन हाउस गैसों के वैश्विक उत्सर्जन को नेट जीरो तक लाकर जलवायु परिवर्तन के घातक प्रभावों से बचने में मदद मिल सकेगी।

(डाना एम बर्गस्ट्रॉम वोलोंगोंग विश्वविद्यालय में प्रमुख रिसर्च वैज्ञानिक, शेरॉन रोबिंसन वोलोंगोंग विश्वविद्यालय में प्रोफेसर और साइमन एलेक्जेंडर तस्मानिया विश्वविद्यालय में एटमॉस्फेरिक वैज्ञानिक हैं। लेख द कन्वरसेशन से विशेष अनुबंध के तहत प्रकाशित)

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