क्या बिजली का विज्ञान जानते हैं आप

आसमान में कड़कती हुई बिजली को मानव पिछले हजारों वर्षों से देख रहा है पर इसके रहस्य से अभी हाल ही में पर्दा उठा है
आसमान में कड़कती हुई बिजली को मानव पिछले हजारों वर्षों से देख रहा है पर इसके रहस्य से अभी हाल ही में पर्दा उठा है
आसमान में कड़कती हुई बिजली को मानव पिछले हजारों वर्षों से देख रहा है पर इसके रहस्य से अभी हाल ही में पर्दा उठा है
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सृष्टि के शुरुआती दिनों से ही आसमान में बिजली चमक रही है और एक लम्बे समय तक यह हमारे लिए एक रहस्यमय चीज बनी हुई थी। आदिमानव कड़कती हुई बिजली को देवताओं का हथियार समझता था। नावाहो नामक अमेरिकी काबिले के लोग मानते थे कि थंडरबर्ड नामक एक मिथकीय पक्षी अपने पंखों को फड़फड़ाकर बिजली की कड़कड़ाहट पैदा करता था और सूरज की रोशनी से बिजली की चमक बनती है।

ठीक उसी तरह हमारे देश में इसे वैदिक देवता इन्द्र के वज्र से जोड़कर देखा जाता था। प्राचीन यूनान के लोग इसे जियस देवता का वज्र मानते थे। प्राचीन रोम में माना जाता था कि जूपिटर देवता बिजली की मदद से मानव पर शासन करते हैं।

एक अनुमान के अनुसार, एक सेकंड में पूरी धरती पर 50 से 100 बार बिजली कड़कती है। बिजली के गिरने की अधिकतम घटनाएं मध्य अफ्रीका, हिमालय पर्वत की श्रंृखला और दक्षिणी अमेरिका में देखी जाती हैं। पर क्या है आखिर इसके पीछे का विज्ञान?

बादल बर्फ के छोटे कणों (क्रिस्टल) और पानी के अणुओं से मिलकर बने होते हैं। हवा के बहाव से यह आपस में रगड़ खाते हैं जिससे उनमें स्थैतिक आवेश आ जाता है।

हल्के कण पॉजिटिव या धन चार्ज लेकर बादल के ऊपरी हिस्से की ओर चले जाते हैं। तुलनात्मक रूप से भारी कण ऋण या नेगेटिव चार्ज की वजह से नीचे जमा हो जाते हैं। इसके फलस्वरूप बादल का ऊपरी हिस्सा धन आवेशित और निचला हिस्सा ऋण आवेशित हो जाता है।

समान आवेश के कण एक-दूसरे को विकर्षित करते हैं जिससे पृथ्वी की सतह के समीप का ऋण आवेश भी बादल के ऋण आवेश वाले हिस्से से विकर्षित होता है। जिससे पृथ्वी की सतह धन आवेश प्राप्त कर लेती है।

इसके चलते बादल की निचली सतह और धरती की सतह के बीच के इस एक शक्तिशाली विद्युतीय क्षेत्र का निर्माण होता है। विद्युतीय क्षेत्र की एक खास सीमा तक पहुंचते ही बादलों से ऋण आवेश की एक अदृश्य धारा अत्यंत तेज गति (लगभग 5 करोड़ मीटर प्रति सेकंड की रफ्तार से) से धरती की सतह की ओर बह चलती है।

इसी दौरान धरती की सतह से धन आवेश की एक धारा ऊपर आसमान की ओर उठती है। दोनों का टकराव एक तेज चमक के साथ होता है। इसी को बिजली का चमक या कड़क कहते हैं। बिजली की कड़क की सतह का तापमान 25,000 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच सकता है जो सूर्य की सतह के तापमान का पांच गुना है।

बिजली दरअसल एक विशाल विद्युत का स्पार्क है जिसमें सैकड़ों वोल्ट की ऊर्जा होती है। हालांकि सब यह सेकंड के एक छोटे से हिस्से भर में ही हो जाता है। जिसे हम तेज चमक के रूप में देखते हैं, वह दरअसल पृथ्वी से आसमान और आसमान से पृथ्वी की ओर चलने वाली विद्युत के विपरीत आवेशों की लगातार गतिमान धाराएं होती हैं जो एक-दूसरे से मिलती भी रहती हैं।

ऋण एवं धन आवेश के मिलने से पैदा होने वाली इस बिजली के आसपास की हवा गर्म होकर तेजी से फैलती है। इसी को हम बिजली की कड़क या गड़गड़ाहट के रूप में सुनते हैं। बिजली जितनी पास होगी, हमें उसकी कड़क उतनी ही तेज सुनाई देती है।

कुछ लोगों को बिजली की चमक और गड़गड़ाहट सुनकर डर लगता है? इसे ऐस्ट्रेपोफोबिया या टोनीट्रोफोबिया के नाम से जाना जाता है।

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