उत्तराखंड में 117 दिन तक सक्रिय रहा मानसून कई घाव देकर विदा हो गया है। हालांकि इस बात पर संतोष किया जा सकता है कि इस मानसून में राज्य में हुआ नुकसान पिछले वर्षों की मुकाबले कम रहा। इस बारिश भी पिछले कुछ सालों के मुकाबले कम हुई। पिछले कुछ वर्षों के मुकाबले इस बार जान-माल का नुकसान में कुछ कम दर्ज किया गया। मानसून सीजन में राज्य को सबसे ज्यादा परेशान करने वाले मोटर मार्ग भी इस वर्ष पिछले साल की तुलना में कम बंद हुए, लेकिन सड़कों और पुलों के टूटने से होने वाला कुल आर्थिक नुकसान पिछले वर्ष के मुकाबले करीब दो गुना आंका गया है।
इस बार उत्तराखंड में दक्षिण-पश्चिमी मानसून नेे सामान्य तिथि से करीब 10 दिन पहले 13 जून को दस्तक दी और सामान्य तिथि से करीब 7 दिन बाद 8 अक्टूबर को मानसून विदा हो गया। 117 दिन तक राज्य में अपनी सक्रियता के दौरान मानसून का रुख पूरी तरह से अनियमित रहा। कुछ दिन कुछ जगहों पर 24 घंटे में 200 मिमी से ज्यादा बारिश हुई तो बीच के दौर ऐसा भी रहा, जब मानसून की सक्रियता के बावजूद एक-एक हफ्ते तक सूखे की जैसी स्थिति बन गई। पिछले कुछ वर्षों के मुकाबले इस बार राज्य में बारिश कम हुई। सामान्य से 2 प्रतिशत कम बारिश दर्ज की गई। मौसम विभाग सामान्य में 5 प्रतिशत अधिक और 5 प्रतिशत कम बारिश को सामान्य बारिश मानता है। इस वर्ष उत्तराखंड में हुई कुल बारिश को सामान्य की श्रेणी में रखा जाएगा। राज्य में इस मानसून सीजन में 1154.0 मिमी बारिश हुई, जबकि सामान्य बारिश का आंकड़ा 1176.9 मिमी है।
राज्य में हुई करीब-करीब सामान्य बारिश की जिलावार और अलग-अलग दिनों में अलग-अलग जगहों पर हुई मात्रा के अनुसार गणना करें तो कहा जा सकता है कि बारिश पूरी तरह से अनियमित रही। मसलन 842.7 मिमी सामान्य बारिश वाले बागेश्वर जिले में इस सीजन में 165 प्रतिशत ज्यादा यानी 2230.6 मिमी बारिश रिकॉर्ड की गई, जबकि 1225.1 मिमी सामान्य बारिश वाले पौड़ी जिले में मात्र 806.2 मिमी बारिश हुई, यानी सामान्य से 34 प्रतिशत कम। राज्य में बागेश्वर और चमोली जिलों को छोड़कर बाकी सभी जिलों में सामान्य से कम बारिश दर्ज की गई। चमोली में सामान्य से 67 प्रतिशत ज्यादा बारिश हुई। 10 जिलों में बारिश सामान्य में 6 प्रतिशत से ज्यादा कम हुई। यानी 10 जिलों में अल्पवृष्टि की स्थिति रही।
मानसून सीजन में भारी से बहुत भारी और अत्यधिक भारी बारिश के दिनों की संख्या भी बारिश में अनियमिता की ओर संकेत करती हैं। मानसून सीजन के 7 ऐसे दिन थे जब 19 अलग-अलग जगहों में 24 घंटे के दौरान 200 मिमी से ज्यादा बारिश दर्ज की गई। यानी अत्यधिक भारी बारिश हुई। नैनीताल जिले के हल्द्वानी में 27 जून सुबह से 28 जून सुबह तक 210 मिमी बारिश दर्ज की गई। 10-11 जुलाई को बागेश्वर जिले के लिटी और कोटी में भी 210 मिमी बारिश हुई। 11-12 जुलाई को चम्पावत में 208 मिमी बारिश दर्ज की गई। 19-20 जुलाई और 13-14 सितंबर को हल्द्वानी में एक बार फिर अत्यधिक भारी बारिश हुई। इन दोनों दिन हल्द्वानी में 220 मिमी बारिश हुई। 24-25 अगस्त को देहरादून जिले के सहस्रधारा में 254 मिमी और ऋषिकेश में 207 मिमी बारिश हुई। 27-28 अगस्त को बागेश्वर के सामा में 204 मिमी बारिश हुई।
10-11 सितंबर उत्तराखंड के लिए सबसे भारी दिन रहा। 24 घंटे के दौरान राज्य में 11 जगहों पर 200 मिमी से 600 मिमी तक बारिश दर्ज की गई। देहरादून के जौलीग्रांट और करनपुर में इस दिन 230 मिमी, पिथौरागढ़ के डीडीहाट में 210 मिमी, बागेश्वर के सामा में 290 मिमी और कपकोट में 200 मिमी, पौड़ी के लैंसडौन और चंपावत के पंचेश्वर में 290 मिमी, टिहरी में 270 मिली बारिश हुई। मौसम विभाग के आंकड़ों के अनुसार 10 सितम्बर की सुबह से 11 सितम्बर की सुबह तक सीजन की सबसे ज्यादा बारिश चमोली जिले के नन्दकेसरी और देवाल में हुई। नन्दकेसरी में इस दौरान 600 मिमी और देवाल में 470 मिमी बारिश हुई। चमोली जिले के थराली में भी 260 मिमी बारिश दर्ज की गई।
इस वर्ष हुई बारिश की तुलना पिछले कुछ वर्षों से करें तो इस वर्ष पिछले वर्षों के मुकाबले बारिश की मात्रा कुछ कम रही है। वर्ष 2018 में राज्य में 1390.5 मिमी, 2019 में 1377.3 और 2020 में 1377.4 मिमी बारिश दर्ज की गई थी।
इस मानसून सीजन में राज्य में बादल फटने, बाढ़ और भूस्खलन की घटनाओं से पिछले वर्ष की तुलना में जान-माल की हानि कम हुई। पड़ोसी राज्य हिमाचल प्रदेश की तुलना में भी उत्तराखंड में हुई जन-धन की हानि कम रही। राज्य आपदा प्राधिकरण के आंकड़े बताते हैं कि इस मानसून सीजन में राज्य में 36 लोगों की मौत हुई, 33 घायल हुए और 6 लोग लापता हुए। पिथौरागढ़ जिले में सबसे ज्यादा 13 लोगों की मौत हुई। हरिद्वार, नैनीताल, पौड़ी और रुद्रप्रयाग जिले में इस दौरान किसी की मौत नहीं हुई। इसके अलावा 139 बड़े और 169 छोटे पशुओं की मौत हुई। 46 मकान पूरी तरह क्षतिग्रस्त हुए और 281 मकानों को आंशिक रूप से नुकसान पहुंचा।
वर्ष 2020 में मानसून सीजन के दौरान राज्य में 77 लोगों की मौत हुई थी, 36 घायल हुए थे और 3 लापता हो गये थे। 2019 में 99 लोगों की मौत हुई थी, 86 घायल हुए थे और 2 लापता हो गये थे। 2018 में मानसून सीजन में मरने वालों की संख्या 63 थी। 17 लोग घायल हुए थे और 3 लापता हो गये थे।
उत्तराखंड में मानसून के दौरान सबसे ज्यादा नुकसान सड़कों को पहुंचता है। कई दिनों तक सड़कें बंद रहने से जरूरी वस्तुओं की आपूर्ति भी प्रभावित होती है। लोक निर्माण विभाग के आंकड़े बताते हैं कि इस वर्ष राज्य में मानसून सीजन के दौरान 2,776 सड़कें बंद हुई। इनमें 1,946 सड़कें लोक निर्माण विभाग की, 17 नेशनल हाई वे और 813 पीएमजीएसवाई की सड़कें शामिल हैं। राज्य 53 पुल भी क्षतिग्रस्त हुए। इनमें 4 नेशनल हाईवे के पुल भी शामिल हैं। इससे कुल 27,406.59 लाख रुपये का नुकसान होने का अनुमान लगाया गया है। पिछले वर्ष मानसून सीजन में राज्य में 2,090 सड़कें टूटी थी और 24 पुल क्षतिग्रस्त हुए थे। कुल 14,826.58 रुपये का नुकसान हुआ था।