1980 के बाद से तीन गुणा बढ़ गया है भीषण गर्मी का कहर

अनुमान है कि शहरी क्षेत्रों में बढ़ती गर्मी दुनिया की लगभग एक चौथाई और शहरों की 46 फीसदी आबादी को प्रभावित कर रही है।
1980 के बाद से तीन गुणा बढ़ गया है भीषण गर्मी का कहर
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1980 से पिछले कुछ दशकों में भीषण गर्मी का सामना करने वालों का आंकड़ा बढ़कर तीन गुणा हो गया है। शहरी क्षेत्रों में बढ़ती गर्मी दुनिया की लगभग एक चौथाई आबादी को प्रभावित कर रही है। यह जानकारी हाल ही में कोलंबिया विश्वविद्यालय द्वारा किए एक शोध में सामने आई है।

 वैज्ञानिकों ने इसके लिए वैश्विक तापमान में हो रही वृद्धि और शहरी क्षेत्रों में बढ़ती आबादी को जिम्मेवार माना है। साथ ही यह चेतावनी दी है कि इसके घातक परिणाम सामने आ सकते हैं। यह शोध जर्नल प्रोसीडिंग्स ऑफ द नेशनल एकेडमी ऑफ साइंसेज (पनास) में प्रकाशित हुआ है।

शोध के मुताबिक 1983 में शहरों पर मंडराता भीषण गर्मी का खतरा जहां 4,000 करोड़ व्यक्ति-दिवस प्रति वर्ष था, वो 2016 में करीब तीन गुणा वृद्धि के साथ 11,900 करोड़ व्यक्ति-दिवस प्रति वर्ष पर पहुंच गया था। जिसका मतलब है कि इसमें 210 करोड़ व्यक्ति-दिवस प्रति वर्ष की दर से वृद्धि हुई है।

अनुमान है कि इसके करीब दो-तिहाई भाग के लिए शहरी क्षेत्रों में तेजी से बढ़ रही आबादी और तीसरे हिस्से के लिए तेजी से बढ़ता तापमान जिम्मेवार है। गौरतलब है कि 2016 में 170 करोड़ लोगों को कई दिनों तक भीषण गर्मी का सामना करना पड़ा था, जोकि शहरी आबादी का 46 फीसदी और कुल आबादी का 23 फीसदी हिस्सा था।   

इस शोध में दुनिया के 13,115 शहरों में गर्मी के बढ़ते खतरे का अध्ययन किया गया है जिसमें भारत के भी शहर शामिल हैं। पिछले कुछ दशकों में ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले करोड़ों लोग शहरों का रुख कर रहे हैं। जिसके चलते शहरों की आबादी में काफी वृद्धि हुई है।

अनुमान है कि कुल आबादी का करीब आधा हिस्सा अब शहरों में रह रहा है। कंक्रीट के इन जंगलों में जहां एक तरफ पेड़ पौधों का आभाव हैं वहीं दूसरी तरफ कंक्रीट और डामर की सड़कें और मकान हैं। जो बड़ी मात्रा में सूर्य की किरणों को सोख रहे हैं। इस शोध से जुड़े प्रमुख शोधकर्ता कैस्केड तुहोल्स्के ने इस बारे में जानकारी देते हुए बताया कि जिस तरह से शहरों में गर्मी बढ़ रही है उसके व्यापक प्रभाव पड़ेंगे।

एक तरफ जहां यह बीमारी और मृत्युदर के खतरे को बढ़ा रहा है। वहीं यह लोगों के काम करने की क्षमता को प्रभावित करता है, जिसके परिणामस्वरूप आर्थिक उत्पादन में भी गिरावट आ सकती है। वहीं जो लोग पहले से बीमारियों का सामना कर रहे हैं यह उनके लिए खतरे को और बढ़ा रहा है। 

भारत बांग्लादेश सहित दक्षिण एशिया के शहरों पर मंडरा रहा है सबसे ज्यादा खतरा

रिपोर्ट के अनुसार बांग्लादेश, भारत, चीन, पाकिस्तान, म्यांमार और दक्षिण एशिया के कुछ अन्य देशों और अरब प्रायद्वीप के बड़े शहरों में बढ़ती गर्मी का खतरा सबसे ज्यादा है। इनमें से ज्यादातर स्थान कम ऊंचाई पर स्थित हैं। पता चला है कि बांग्लादेश की राजधानी ढाका में इस अवधि के दौरान भीषण गर्मी का खतरा सबसे ज्यादा था। इस दौरान ढाका में भीषण गर्मी के संपर्क में आने का खतरा 57.5 करोड़ व्यक्ति-दिवस बढ़ गया था।

वहीं कुछ अन्य प्रमुख शहरों में गर्मी के बढ़ते जोखिम के लिए तेजी से बढ़ता तापमान प्रमुख रूप से जिम्मेवार है। अनुमान है कि इन शहरों में आधे से अधिक जोखिम के लिए वैश्विक तापमान में हो रही वृद्धि सबसे बड़ी वजह थी। इनमें बगदाद, काहिरा, कुवैत सिटी, लागोस, कोलकाता, मुंबई और भारत एवं बांग्लादेश के अन्य बड़े शहर शामिल हैं। यही नहीं जिन शहरों में यह अध्य्यन किया गया है उनमें से करीब 17 फीसदी शहरों में पूरे महीन में भीषण गर्मी दर्ज की गई थी।    

यहां व्यक्ति-दिवस से तात्पर्य किसी वर्ष में शहर की आबादी के भीषण गर्मी के संपर्क में आने वाले दिनों से होता है। वहीं भीषण गर्मी को मापने के लिए शोधकर्ताओं ने वेट-बल्ब टेंपरेचर पैमाने का उपयोग किया, जिसमें अत्यधिक गर्मी को 30 डिग्री सेल्सियस से ऊपर के तापमान के रूप में निर्धारित किया है। गौरतलब है कि इस तापमान पर ज्यादा समय तक रहने से वो स्थिति मानव स्वास्थ्य के लिए नुकसानदेह हो सकती है।   

जलवायु परिवर्तन के कारण बढ़ रहा है भीषण गर्मी का कहर

लंदन स्कूल ऑफ हाइजीन एंड ट्रॉपिकल मेडिसिन और बर्न विश्वविद्यालय द्वारा किए एक अन्य शोध से पता चला है कि 1991 से 2018 के बीच दुनिया भर में गर्मीं के कारण हुई करीब 37 फीसदी मौतों के लिए वैश्विक तापमान में हो रही वृद्धि जिम्मेवार थी।

वहीं हाल ही में द लैंसेट प्लैनेटरी हेल्थ जर्नल में प्रकाशित एक शोध के मुताबिक भारत में हर साल भीषण गर्मी के चलते करीब 83,700 लोगों की जान जा रही है। यही नहीं जहां एक तरफ वैश्विक स्तर पर 2000 से 2019 के बीच ठंड से होने वाली मौतों में 0.51 फीसदी की कमी आई है, वहीं दूसरी ओर गर्मी के कारण होने वाली मौतों में 0.21 फीसदी की वृद्धि हुई है।

जर्नल जियोफिजिकल रिसर्च लेटर्स  में छपे एक शोध के अनुसार भविष्य में तापमान में होने वाली 2 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि के साथ ही लोगों के इसकी चपेट में आने का जोखिम भी 2.7 गुणा बढ़ जाएगा। यही नहीं तापमान में 1.5 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि के साथ ही भारत में लू का कहर आम हो जाएगा।

वैसे भी भारत सहित दक्षिण एशिया पर भीषण गर्मी का खतरा अन्य क्षेत्रों की तुलना में कहीं ज्यादा है। दक्षिण एशिया में दुनिया की करीब एक चौथाई आबादी का घर है। इस क्षेत्र में पहले ही काफी ज्यादा गर्मी पड़ती है, साथ ही मौसम भी नम रहता है। लोग गरीब हैं, घनी आबादी वाले क्षेत्रों में रहते हैं। इस वजह से एयर कंडीशन उनकी पहुंच से बाहर है। यही नहीं यहां की करीब 60 फीसदी लोग कृषि कार्यों में लगे हुए हैं। ऐसे में बढ़ता तापमान उसके लिए एक बड़ा खतरा है।

वैश्विक तापमान में जिस तरह से तापमान में वृद्धि हो रही है, उससे गर्मीं के कारण होने वाली मौतों का आंकड़ा भी बढ़ रहा है। जो स्पष्ट तौर पर यह दर्शाता है कि जलवायु परिवर्तन के कारण भविष्य में स्थिति और खराब हो सकती है।

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