400 साल में बेहद ताकतवर हुआ अल-नीनो, अच्छे मानसून का है दुश्मन

जहां एक ओर अल नीनो अधिक शक्तिशाली हो रहे हैं, वहीं साथ ही इनके पैटर्न में भी बदलाव आ रहा है। एक अध्ययन में यह बात सामने आई है।
Illustration : Getty Images
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जहां एक ओर अल नीनो अधिक शक्तिशाली हो रहे हैं, वहीं साथ ही इनके पैटर्न में भी बदलाव आ रहा है। ऑस्ट्रेलियाई वैज्ञानिकों द्वारा मौसम के 400 साल के रिकॉर्ड का अध्ययन से यह हैरतअंगेज तथ्य सामने आये हैं।

जबकि इस अध्ययन से एक नए तरह के अल नीनो (सेंट्रल पैसिफिक अल नीनो) का भी पता चला है, जो कि पिछले तीन दशकों के दौरान मध्य प्रशांत महासागर में कहीं अधिक सक्रिय हो गया है, जैसा कि पिछले 400 सालों में भी नहीं हुआ था|वहीं दूसरी ओर पारंपरिक अल नीनो अथवा यह कहें कि पूर्वी प्रशांत अल नीनो की घटनाओं में भी वृद्धि हो रही है।

जर्नल नेचर जियोसाइंस में छपे चार-सदियों के इस रिकॉर्ड ने न केवल अतीत में आये अल नीनो और उनमें हो रहे बदलावों पर प्रकाश डाला है, बल्कि इसने भविष्य में अल नीनो के अध्ययन के लिए संभावनाओं के नए दरवाजे खोल दिए हैं। और यह सब शोधकर्ताओं की एक टीम के कारण मुमकिन हो सका जिसमें मैंडी फ्रायंड प्रमुख हैं, जिन्होंने इस परियोजना का नेतृत्व किया और उनके साथ ही जलवायु वैज्ञानिकों और प्रवाल विशेषज्ञों की एक टीम जिसमें बेन हेनली, डेविड कारोले, हेलेन मैकग्रेगर,नेरिली अब्राम और डिटमार डोमेनगेट ने भी इस अध्ययन में अपना योगदान दिया है| 

अतीत में छुपा है भविष्य का राज

गौरतलब है कि यह अध्ययन मेलबर्न विश्वविद्यालय में डॉ मैंडी फ्रायंड के पीएचडी शोध का हिस्सा था। जिसमें प्रशांत महासागर में फैले प्रवालों के कोर में अतीत में आये बदलावों के आधार पर अल नीनो की प्रवृति का विश्लेषण किया गया।

यह इसलिए भी संभव हो पाया, क्योंकि अंदर से प्रवाल, पेड़ के तनों के छल्लों के सामान होते हैं जो की अपने अतीत और विकास के कहानी और सदियों से हो रहे परिवर्तनों को अपने अंदर समेटे रहते हैं, जिनसे हम अतीत में जलवायु में आये बदलाव के बारे में बहुत कुछ जान सकते हैं। इसलिए उष्णकटिबंधीय प्रशांत महासागर में आये मौसमी परिवर्तनों की पहचान करने और अल नीनो रिकॉर्ड को समझने के लिए प्रवाल उस कुंजी की तरह हैं, जो सभी रहस्यों के ताले खोल सकती है । हालांकि, मौसमी समयसीमा में अल नीनो के इतिहास को समझने के लिए कोरल रिकॉर्ड का उपयोग पहले कभी नहीं किया गया और अब तक इस क्षेत्र में काम कर रहे कई लोगों का मानना था की ऐसा कर पाना असंभव है।

सटीक भविष्यवाणी की जरूरत

दुनिया भर में अल नीनो चरम मौसमी घटनाओं से सीधे तौर पर जुड़े हुए हैं। दक्षिण पूर्व एशिया, ऑस्ट्रेलिया और अमेरिका में बारिश और तापमान पर इनका गहरा प्रभाव पड़ता है। यही कारण है कि वैज्ञानिकों को उम्मीद है कि इस अध्ययन से चरम मौसमी घटनाओं की भविष्यवाणी और इनसे निपटने के लिए बेहतर योजना बनाने में मदद मिलेगी।

डॉ मैंडी फ्रायंड के अनुसार, "विभिन्न प्रकार के अल नीनो ने अतीत और वर्तमान में हमें किस तरह प्रभावित किया है, इसकी बेहतर समझ होने से  हम भविष्य में आने वाले अल नीनो और उनके व्यापक प्रभावों का पूर्वानुमान करने और उनसे निपटने के लिए सार्थक योजना बनाने में सक्षम हो सकते हैं।"

पिछली चार शताब्दियों में आये अल नीनो की प्रवृत्ति, उनके प्रकारों में भिन्नता को दर्शाती है। बीसवीं शताब्दी के उत्तरार्ध में जहां मध्य प्रशांत में अल नीनो की घटनाओं में वृद्धि हुई है, वहीं पूर्वी प्रशांत में इनमे कमी आई है।

पिछले 400 वर्षों का रिकॉर्ड दर्शाता है कि गत 30 वर्षों में जहां केंद्रीय प्रशांत क्षेत्र में अल नीनो की संख्या में अभूतपूर्व वृद्धि हुई है। वहीं 100  वर्षों के दस्तावेज और 400 वर्षों के प्रवाल सम्बन्धी रिकॉर्ड के अनुसार इसी समयावधि में पूर्वी प्रशांत क्षेत्र में भी प्रचंड एवं शक्तिशाली अल नीनो की घटनाओं के मामले दर्ज किए गए थे।

फ्रायंड के अनुसार, हाल के दशकों में मध्य प्रशांत महासागर में आने वाली अल नीनो की घटनाएं पिछले 400 वर्षों में असामान्य हैं। रुझान यह भी दर्शाते हैं कि जैसे शक्तिशाली अल नीनो 1997-98 और 2015-16 में आये थे, वैसे ही अल नीनो की तीव्रता में पूर्वी प्रशांत क्षेत्र में वृद्धि हो रही है। विश्व मौसम संगठन के नवीनतम पूर्वानुमानों के अनुसार, विषुवतीय प्रशांत महासागर के ऊपर कमजोर अल नीनो की स्थिति बनी हुई है, जिसके कारण गर्मी के बने रहने की संभावना है।

भारतीय मौसम विभाग (आईएमडी) भी मानसून के पूर्वानुमान के लिए अल नीनो को ध्यान में रखता है । भारत में अल नीनो वर्ष को आमतौर पर कमजोर मानसून और भीषण गर्मी में होने वाली वृद्धि से जोड़कर देखा जाता है। 15 अप्रैल, 2019 को अपने मानसून पूर्वानुमान में आईएमडी ने बारिश के मौसम में कमजोर अल नीनो की स्थिति के बनने की भविष्यवाणी की है, जिसकी तीव्रता में बाद में कमी आने की सम्भावना दर्शायी गयी है। इस साल आईएमडी ने मानसून के सामान्य रहने की भी सम्भावना जताई है। लेकिन स्काईमेट वेदर ने अल नीनो की वजह से मानसून की धीमी शुरुआत की भविष्यवाणी की है।

चार शताब्दी पुराने रुझानों पर आधारित अल नीनो के अतीत और वर्तमान को समझाने वाले इस शोध पर, भारत द्वारा और खोज की जानी चाहिए, जिससे भविष्य में भारत अल नीनो और उसके व्यापक प्रभावों से बचने और उनसे निपटने के लिए सार्थक योजना बनाने में सक्षम हो सकें।

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