श्रावण के महीने में भोले शंकर और माता पार्वती की पूजा और भी जोरों शोरों से की जाती है। इस माह को भगवान् शिव का पसंदीदा महीना बताया जाता है। इसीलिए भगवान् शिव जी की पूजा बेहद उत्साह के साथ की जाती है। सोमवार के दिन सावन के सोमवार के व्रत भी रखे जाते हैं।
शादीशुदा महिलाएं मंगल गौरी व्रत रखती हैं जो मंगलवार को किए जाते हैं। इस महीने में कांवर यात्रा भी होती है और इस महीने के हर एक दिन को अत्यधिक शुभ माना जाता है।
पारम्परिक तौर से इसलिए भी कि सावन के आते ही बारिशें होती हैं। फल, सब्ज़ी, खेती, पहाड़ों से झरने ये आम दृश्य देखने को मिलते हैं। पहाड़ी इलाके भी हरे भरे हो जाते हैं।
इसीलिए श्रावण मास का यह महीना हरियाली का प्रतीक है। इसको वर्षा ऋतु का दूसरा महीना भी माना जाता है। खेत खलिहोनों की हरियाली इस महीने में हर जगह देखने को मिलती है।
यही कारण है कि इस महीने में कृषि और किसानी के कई त्यौहार भी मनाये जाते हैं। उत्तराखंड का हरेला त्योहार, श्रावण के महीने में पड़ने वाला महाराष्ट्र में मनाये जाने वाला पोला उत्सव जिसमे गौ माता, बैलों की पूजा की जाती है, नाग पंचमी, नारियल पूर्णिमा आदि मनाये जाते हैं।
हरियाली तीज, रक्षाबंधन, जन्माष्टमी यह कुछ और त्यौहार हैं, जो इस महीने में धूम धाम से मनाये जाते हैं। इस पूरे मौसम में धान, कपास, तिल, तूर दाल, आदि खेती बहुत जोरों शोरों से चलती है।
तीज, त्यौहार, एवं संगीत सावन के मौसम का सार बताते हैं। इस मौसम के सभी दिन शुभ माने जाते हैं। हरेला और हरेली जैसे त्यौहार किसानों को ख़ास प्रिय हैं। हरेला के नौ दिवस पहले 5-7 प्रकार के बीज उगाये जाते हैं।
ऐसा माना जाता है की इनकी जितनी बेहतरीन उपज होगी उतनी ही हरियाली और समृद्धि होगी। छत्तीसगढ़ का हरेली त्यौहार भी इसी प्रकार कृषि,जंगल, पेड़, पौधों का प्रतीक है। हरियाली तीज की अपनी पारम्परिक मान्यता है। इस त्यौहार पर अविवाहित महिलाएं एवं विवाहित महिलाएं अपनी- अपनी तरह से पूजा करती हैं।
हरे रंग के कपड़े, हरी चूड़ियां, मेहँदी लगाना, सोलह श्रृंगार और व्रत रखना कुछ मान्यतायें हैं। इस दिन भगवान् शिव एवं माता पार्वती की पूजा की जाती है। तीज त्यौहार सावन की मिठाइयों के बगैर तो अधूरे हैं। सावन के मौसम में घेवर ख़ास तौर पर बनाया जाता है। इसको राखी एवं तीज पर भेंट किया जाता है।
घेवर, अनरसा की गोली, फेनी यह सावन की ख़ास, मौसमी मिठाइएं हैं। इस सामान नारियल के लड्डू और लौकी की ख़ास बर्फी भी बनती है और मिठाई की दुकानें इस समय साज सजावट से भरपूर होती हैं।
इस माह में हरी पत्तेदार सब्जियां खाने से मन किया जाता है और कटहल,अरबी, भिंडी की सब्ज़ी बनाने को कहा जाता है। इस मौसम में कांटेदार करेला या ककोड़ा की सब्जी और पकोड़े भी बनते हैं।
ककोड़ा की सब्ज़ी इस मौसम में अत्यधिक लुभावनी लगती है। उसी प्रकार व्रत में फलाहारी खाना जैसे कुट्टू की पूरी, साबूदाना की खिचड़ी, सिंघाड़े के आटे से बनी पूरी और अन्य फलाहार चीज़ों का सेवन किया जाता है। गुर की मठरी और हरयाणवी सुहाली कुछ और मिठाइयां बनायीं जाती हैं। सावन के आसपास पड़ने वाली जन्माष्टमी पर मखाना पाग, धनिया पंजीरी बनायीं जाती हैं।
श्रावण के मौसम या महीने पर पॉपुलर कल्चर में कई गीत भी इस मौसम की आभा को संबोधित कर एवं इसको मानते हुए रचे गए हैं। तानसेन जी के नाम से मशहूर राग 'मिया की मल्हार' मैं अनेकों ऐसे सावन के गीत हैं जो इस माह एवं इस मौसम के रंगों को बखूबी बयां करते हैं।
पिछले दिनों ही 'साज़' (1997) फिल्म देखी। साईं परांजपे के द्वारा निर्देशित, एवं भूपेन हज़ारिका जी, राज कमल जी, यशवंत देओजी, ज़ाकिर हुसैन जी के द्वारा दिया गया संगीत।
पूरी ही फिल्म में बारिशों के मनमोहक करने वाले दृश्य हैं। फिल्म को शायद मैंने दोबारा देखा था। पहले कभी बचपन में देखा था जब मैं खुद ही संगीत सीखती थी। अरुणा ईरानी और शबाना आज़मी पर फिल्माए गीत 'बादल चांदी बरसाए' की 'रुमझुम' 'रुमझुम' कानों में देर तक गूंजती रहती है।
इस गीत की कुछ पंक्तियाँ सावन के मनमोहक दृश्यों को आंखों के सामने लाकर प्रकट कर देती हैं:
'बगिया में भंवरे
आये पेड़ों पर झूले आये
डाली पर चिड़िया आये
लेहरो में लेहरे आये
बरखा हर दिन आ जाए
हर दिन बस यह दोहराये
बरखा हर दिन आ जाए
हर दिन बस यह दोहराये
पानी अपनी पायल धरती
पर झंकाये'
इसी फिल्म का एक और गीत 'फिर भोर भाई जाएगा मधुवन' भी वर्षा ऋतु के एहसास को और भी जीवंत कर देता है। वाकई पूरी फिल्म में ही गांव के सादगी से संपूर्ण दृश्य हैं, हरियाली, गांव की मिट्टी, बारिश, खेत, पेड़-पौधे सभी को बेहद खूबसूरत तरीके से दर्शाया गया है।
उसी तरह चश्मे बद्दूर (1981) का गीत 'कहाँ से आये बदरा' जो की शास्त्रीय संगीत राग 'मेघ मल्हार' पर आधारित है, के. जय येशुदास एवं हैमंती शुक्ल जी के द्वारा गाया गया है। इस गीत में सावन के मौसम की लालसा और उसकी एक बेबस उदासीनता को बेहद मधुरता से पेश किया गया है:
"... उतरे मेघ या फिर छाये
निर्दय झोंके अगन बढ़ाये
बरसे हैं अब तोसे सावन
रोए मन है पगला
कहाँ से आये बदरा ..."
राग मिया की मल्हार का उल्लेख गुड्डी फिल्म (1971) 'बोले रे पपीहरा' के सन्दर्भ के बिना अधूरा है। वाणी जयराम की आवाज़ में जया बच्चन पर निर्देशित इस गीत के बिना सावन या वर्षा ऋतु का उल्लेख अधूरा है। यह राग तानसेन 'मिया की मल्हार' पर आधारित है।
"... पलकों पर इक बूँद सजाए
बैठी हूँ सावन ले जाए
जाए पी के देस में बरसे
नित मन प्यासा, नित मन तरसे
बोले रे पपीहरा, पपीहरा !..."
कई किस्से कहानियां, साहित्य, एवं पेंटिंग जैसे कलाओं में सावन के दृश्य बयां किये गए हैं। जन्माष्टमी के आसपास कदम्ब का पेड़ भी अपने फलों से लद जाता है। मधुबनी चित्र कला में कृष्णा जी और सावन, झूलों पर झूलती सखियां, फूल चुनती सखियाँ, बारिश में नाचते मोर ऐसे कई मनमोहक दृश्यों को बहुत भली भांति बनाया जाता है। उसी तरह पिछवाई चित्रकला में भी सावन के कई दृश्य देखने को मिलते हैं।
गांव-गांव नीम के पेड़ों से लगे रस्सी पर झूले, पहड़ियों पर छोटे-छोटे झरने, ठंडी हवाएं, सड़क पर बिखरे हुए गुलमोहर के फ़ूल और काली जामुन, सदाबहार के हलके बैंगनी फूल, नीम की निम्बोली गली-गली बिकते और कोयले पर सिकते हरे-भरे भुट्टे, और पेड़ों पर लदे खट्टे करोंदें!
सावन का यह महीना सुख, समृद्धि, एवं खुशहाली संजों के हमे प्रस्तुत करता है। इस दौरान पेड़ पौधें लगाना अत्यंत शुभ माना जाता है। इस मौसम में नीम, केले, तुलसी, के पेड़ लगाए जाते हैं। सावन अथवा श्रावण का यह महीना पर्यावरण संरक्षण के लिए भी हमें सचेत एवं प्रोत्साहित करता है।
पहाड़ी इलाकों में ख़ास तौर पर उत्तराखंड में इस समय उनके राजकीय पुष्प 'ब्रह्मकमल' को देखना अत्यंत शुभ माना जाता है। कहते हैं इसको शिव की पूजा में सावन के सोमवार में चढ़ाया भी जाता है।