मॉनसून के सक्रिय होते ही हिमाचल में प्राकृतिक आपदाएं बढ़ी, अब तक 44 की मौत

छह जुलाई 2022 की सुबह बादल फटने के कारण कुल्लू में पांच लोग लापता बताए जा रहे हैं
कुल्लू में बादल फटने के बाद के हालात। फोटो: रोहित पराशर
कुल्लू में बादल फटने के बाद के हालात। फोटो: रोहित पराशर
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हिमाचल प्रदेश में मानसून की दस्तक के साथ ही बादल फटने और बाढ़ की बढ़ती घटनाएं चिंता का विषय बनती जा रही हैं। पिछले एक सप्ताह में हिमाचल प्रदेश में प्राकृतिक आपदाओं में 44 लोगों की जानें जा चुकी हैं और 45 लोग घायल हैं।

छह जुलाई 2022 बुधवार सुबह कुल्लू की छोज पंचायत में एक टूरिस्ट कैंप साइट के पास बादल फटने की घटना में 4 से 6 लोगों के गायब होने की सूचना है। इसके अलावा कुल्लू के ही मलाणा में बादल फटने की घटना में 25 से 30 लोगों के फंसे होने का अनुमान प्रशासन की ओर से लगाया गया है।

कुल्लू में बादल फटने की घटना के प्रत्यक्षदर्शी खेमराज ने बताया कि सुबह 5 बजे के करीब यह घटना हुई और इसमें उनका मछली पालन का फार्म, पर्यटन इकाई, चार गायें और उनके पास काम करने वाले 2 लोग लापता हैं। यह सब इतना जल्दी घटित हुआ कि उन्हें संभलने का भी मौका नहीं मिला।

इससे पहले पांच जुलाई 2022 को राजधानी शिमला के ढली में भूस्खलन के चलते चट्टाने गिरने की वजह से एक वाहन चपेट में आ गया, जिसमें एक लड़की के मौके पर मारे जाने और दो अन्य को घायल होने की सूचना प्रशासन की ओर से जारी की गई है।

तीन दिन पहले कुल्लू जिला के सैंज में एक बस के खाई में गिरने की वजह से 12 लोगों की जान चली गई थी और इसके साथ तीन अन्य लोग घायल हो गए थे। इस दुर्घटना के पीछे भी मुख्य कारण बारिश के कारण हुए भूस्खलन को माना जा रहा है।

स्थानीय लोगों का मानना है कि दुर्घटना वाले स्थान पर भूस्खलन होने की वजह से सड़क तंग हो गई थी, जिसकी वजह से यह बड़ी बस दुर्घटना घटित हुई, जिसमें 12 लोगों की मौत हो गई थी। इसी तरह पिछले एक सप्ताह में भूस्खलन, बाढ़ और बादल फटने की 10 से अधिक बड़ी घटनाएं देखने को मिल चुकी है। जबकि अभी मानसून को सक्रिय हुए भी एक ही सप्ताह का समय हुआ है।

पर्यावरण संरक्षण के लिए काम करने वाली संस्था की संस्थापक और पर्यावरण विशेषज्ञ मानसी अशर ने डाउन टू अर्थ को बताया कि पिछले कुछ समय में पर्यावरण में आ रहे बदलावों की वजह से प्राकृतिक आपदाओं की आवृति बढ़ी है और इसमें जान माल का नुकसान भी अधिक बढ़ गया है।

उन्होंने कहा कि शहरीकरण, तेजी से निर्माण कार्याें को गति देना, सड़कों को चौड़ा करना, उनकी फोर लेनिंग का काम और पावर प्रोजेक्टस के लिए वनों को हटाना और मिट्टी के अपर्दन की वजह से पिछले कुछ समय में जिस तरह की छेड़खानी यहां के संवेदनशील पर्यावरण के साथ हुई है। उसकी वजह से प्राकृतिक आपदाओं की स्थिति में नुकसान अधिक हो रहा है।

हिमधारा संस्था की ओर से हिमाचल प्रदेश में हुई प्राकृतिक आपदाओं को लेकर किए गए विश्लेषण में चार जिलों में प्राकृतिक आपदाओं की घटनाओं में बढ़ोतरी देखी गई है। इनमें शिमला, मंडी, किन्नौर और लाहौल स्पिती जिला शामिल है।

यदि पिछले साल के आंकड़े देखें तो तो प्राकृतिक आपदाओं में सबसे अधिक जानें किन्नौर जिले में गई हैं। वहीं बहुत कम वर्षा वाले जिले लाहौल स्पिति में अधिक वर्षा, बाढ़ और भूस्खलन की घटनाओं में पिछले वर्ष काफी घटनाएं देखने को मिली हैं। पिछले वर्ष हिमाचल प्रदेश में मानसून सीजन के दौरान विभिन्न दुर्घटनाओं के चलते 470 से अधिक लोगों की जानें गई थी और प्रदेश को 1,140 करोड़ रुपए से अधिक का नुकसान झेलना पड़ा था।

हिमाचल में मौसम विभाग की ओर से छह व सात जुलाई तक येलो और इसके बाद 8 और 9 जुलाई को ओरेंज अलर्ट जारी किया गया है। इसके अलावा आपदा प्रबंधन विभाग की ओर से लोगों को नदी, नालों से दूर रहने और पर्यटकों व यात्रा करने वालों को सफर के दौरान अधिक सावधानी बरतने की हिदायत दी गई है।

पर्यावरणविद् कुलभूषण उपमन्यू का कहना है कि प्राकृतिक आपदाएं पहले भी होती थी, इनसे इतना नुकसान नहीं होता था, लेकिन जब से पर्यावरण के साथ मानवीय दखल बढ़ा है तब से ये आपदाएं और अधिक खतरनाक हो गई हैं। ऐसे में हमें भविष्य में आपदाओं के जोखिम को कम करने के लिए पर्यावरण के साथ सौहार्द बनाते हुए विकासात्मक कार्याें को करने पर बल देना चाहिए। हमें चाहिए कि हम पर्यावरर्णिय मामलों के प्रति अधिक संवेदनशीलता से सोचें और इसके बाद ही भावी प्रोजेंक्टों को लेकर आगे बढ़ें।

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