उत्तर भारत में इन दिनों शीत लहर कहर बरपा रही है। इससे हो रही मौतों का सही आंकड़ा अभी उपलब्ध नहीं है, लेकिन पिछले कुछ सालों के दौरान शीत लहर से हो रही मौतें चिंताजनक हैं। हालात यह है कि लू की बजाय शीत लहरों से अधिक मौतें हो रही हैं।
आंकड़े बताते हैं कि 1980 से 2018 के दौरान बीते 38 में से 23 वर्ष ऐसे रहे, जब लू की बजाय शीत लहरों से अधिक मौतें हुई। ऐसे में, सरकारों को इन दिनों चल रही शीत लहर को ध्यान में रखते हुए ठोस कार्य योजना बनाने की जरूरत है।
आंकड़ों के मुताबिक 2010 से 2018 तक शीत लहरों के कारण लगभग 4506 लोगों की मौत हो चुकी है, जबकि इसी अवधि के दौरान लू के कारण 5572 लोगों की मौत हुई। हालांकि लू से कुल मरने वालों की तादात अधिक रही, लेकिन 2018 में रिवर्स ट्रेंड देखने को मिला।
2018 में लू के कारण 16 लोगों की मौत हुई, लेकिन शीत लहर के कारण 136 लोगों की मौत हो गई। 38 में से 23 वर्षों (1980-2018) के दौरान लू की बजाय शीत लहर की वजह से मरने वालों की संख्या अधिक रही 2011 में लू की अपेक्षा शीत लहर से मरने वालों की संख्या लगभग 60 गुना अधिक थी। 1992 में भी लू की अपेक्षा शीत लहर से 41 गुना अधिक लोगों की जान गई। 2018 में यह आंकड़ा आठ गुना अधिक था।
क्रम |
वर्ष |
लू से हुई मौतें |
शीत लहरों से हुई मौतें |
1 |
1980 |
156 |
185 |
2 |
1981 |
33 |
192 |
3 |
1982 |
16 |
63 |
4 |
1983 |
187 |
488 |
5 |
1984 |
58 |
155 |
6 |
1985 |
142 |
494 |
7 |
1986 |
156 |
276 |
8 |
1987 |
87 |
105 |
9 |
1989 |
43 |
215 |
10 |
1990 |
2 |
82 |
11 |
1992 |
114 |
303 |
12 |
1993 |
30 |
63 |
13 |
1996 |
20 |
68 |
14 |
1997 |
21 |
140 |
15 |
1999 |
119 |
222 |
16 |
2000 |
55 |
368 |
17 |
2001 |
56 |
490 |
18 |
2004 |
117 |
462 |
19 |
2008 |
111 |
114 |
20 |
2009 |
216 |
79 |
21 |
2010 |
242 |
450 |
22 |
2011 |
12 |
722 |
23 |
2018 |
16 |
136 |
2010 से 2018 के बीच 506 प्रतिशत अधिक शीत लहरें
भारत मौसम विज्ञान विभाग के आंकड़े बताते हैं कि बीते दशक में ठंड बढ़ गई है। 2010 से 2018 के बीच शीत लहरों की संख्या में 506 प्रतिशत की वृद्धि हुई है।
27 दिसंबर 2019 को जारी मौसम विभाग के बुलेटिन के अनुसार, अगले 2 दिनों के दौरान पंजाब, हरियाणा, चंडीगढ़ और दिल्ली, उत्तरी राजस्थान और उत्तर प्रदेश के कई क्षेत्रों में ठंड से दिन के लिए ठंड की स्थिति बनी रहने की संभावना है।
पंजाब, हरियाणा, चंडीगढ़ और दिल्ली, पूर्वी उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड और पश्चिम बंगाल में अधिकांश स्थानों पर इन स्थानों पर अधिकतम तापमान सामान्य से कम (-5.1 डिग्री सेल्सियस या इससे कम) दर्ज किया गया।
विभाग के अनुसार, विदर्भ और छत्तीसगढ़ के अधिकांश स्थानों पर यह अधिकतम तापमान सामान्य से काफी नीचे (-3.1 डिग्री सेल्सियस से -5.0 डिग्री सेल्सियस) था; बाकी मध्य प्रदेश में कई स्थानों पर; गुजरात क्षेत्र में भी कुछ स्थानों पर।
अधिक ठंड के दिनों के साथ, हरियाणा, चंडीगढ़ और दिल्ली, उत्तरी राजस्थान और बिहार के कुछ हिस्सों में भी ठंड का सामना करना पड़ सकता है।
एक ठंडे दिन को अधिकतम दिन के तापमान के आधार पर परिभाषित किया जाता है जबकि एक शीत लहर को लगातार दो रातों पर दर्ज न्यूनतम तापमान को देखते हुए परिभाषित किया जाता है
भारत मौसम विज्ञान विभाग द्वारा उपलब्ध कराए गए आंकड़ों के अनुसार, इस वर्ष भी शीत लहरें कई गुना बढ़ गई हैं। 2010 से 2018 के बीच शीत लहरों की संख्या में 506 प्रतिशत की वृद्धि हुई है।
वरिष्ठ वैज्ञानिक के अनुसार, ये ठंडे दिन और ठंडी लहरें एक लंबे समय तक चल सकती हैं और पूरे उत्तर-पश्चिम भारत को प्रभावित करेंगी। जलवायु परिवर्तन के कारण, निकट भविष्य में ऐसा होने की अधिक संभावना है।
शीत लहर से निपटने की योजनाएं नहीं
2016 में राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (एनडीएमए) ने लू से निपटने के लिए एक कार्ययोजना तैयार की थी, जिसे 2017 में संशोधित भी किया गया था। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने भी गर्मी से संबंधित बीमारी से निपटने के लिए दिशानिर्देश जारी किए थे। 2019 में, सरकार ने 23 राज्यों और 100 शहरों में इस कार्य योजना को लागू करने की दिशा में काम भी शुरू कर दिया, लेकिन क्या शीत लहरों से निपटने और उससे होने वाली मौतों को बचाने की दिशा में काम करने की जरूरत नहीं है?