भारत में सामान्य वर्षा का एक नया आंकड़ा सामने आया है, जिसके अनुसार दक्षिण-पश्चिम मॉनसून के मौसम (जून-सितंबर) के दौरान देश के लिए नई सामान्य औसत वर्षा में 12 मिलीमीटर की कमी आई है। जिसका मतलब है कि जहां नए आंकड़ों के मुताबिक बारिश को 'सामान्य' कहा जाएगा। वहीं देखा जाए तो देश में दक्षिण-पश्चिम मॉनसून के दौरान एक दशक पहले की तुलना में कम बारिश होगी।
गौरतलब है कि दक्षिण-पश्चिम मॉनसून भारत में होने वाली वार्षिक वर्षा में 74.9 फीसदी का योगदान देता है, जो भारत की आधे से अधिक कृषि भूमि की सिंचाई में मददगार होती है। वर्षा की मात्रा या इसकी विफलता देश में कृषि, विशेष रूप से खरीफ के मौसम को सीधे तौर पर प्रभावित करती है। जो मॉनसून पर बहुत ज्यादा निर्भर है।
भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (आईएमडी) ने 14 अप्रैल को 2022 के दक्षिण पश्चिम मॉनसून के लिए जारी अपने पूर्वानुमान में कहा है कि 868.6 मिलीमीटर बारिश का नया सामान्य आंकड़ा है, जो 1971 से 2020 के आंकड़ों पर आधारित है। इससे पहले 1961से 2010 के आंकड़ों के आधार पर सामान्य बारिश की गणना 880.6 मिमी की जाती थी।
इतना ही नहीं, नए आंकड़ों के अनुसार देश में होने वाली सामान्य वार्षिक वर्षा की माप में भी 16.18 मिलीमीटर की कमी आई है। जहां पहले देश में सामान्य की परिभाषा में यह बारिश 1176.9 मिलीमीटर थी उसे अब 1160.1 मिलीमीटर रह गई है।
आईएमडी ने इस कमी को देश में बारिश के सूखे और गीले युगों की एक प्राकृतिक "बहु दशकीय युग परिवर्तनशीलता" का हिस्सा करार दिया है और यह कहा है कि वर्तमान में दक्षिण-पश्चिम मॉनसून 'शुष्क युग' से गुजर रहा है जो 1971 से 80 के दशक में शुरू हुआ था। वहीं अगले दशक यानी 2021 से 2030 के तटस्थ होने की उम्मीद है और इसके बाद 2031-40 के दशक से दक्षिण-पश्चिम मॉनसून गीले युग में प्रवेश करेगा।
देखा जाए तो पश्चिम मध्य भारत के लिए 1971 से 2020 पर आधारित नई सामान्य वार्षिक वर्षा, 1961 से 2010 के आधार मापी गई सामान्य वर्षा की तुलना में ज्यादा है। जबकि यह उत्तर प्रदेश, अरुणाचल प्रदेश, नागालैंड, मणिपुर मिजोरम और त्रिपुरा में पहले के मुकाबले कम है। इस बीच, पूरे देश में 2022 में दक्षिण-पश्चिम मॉनसून की बारिश सामान्य दीर्घावधि औसत (एलपीए) का 96 से 104 फीसदी रहने की संभावना है।
आईएमडी ने अपने पूर्वानुमान में कहा है कि “मात्रात्मक रूप से, मॉनसून मौसमी (जून से सितंबर) में ± 5% की मॉडल त्रुटि के साथ लंबी अवधि के वर्षा के औसत (एलपीए) का 99% होने की संभावना है। वहीं 1971 से 2020 की अवधि के लिए पूरे देश में मौसमी वर्षा का एलपीए 87 सेमी है।
कुल मिलाकर देश में बारिश "सामान्य" रहेगी। वहीं पूर्वोत्तर, उत्तर पश्चिम भारत के कुछ हिस्सों और दक्षिण प्रायद्वीप के दक्षिणी हिस्सों में इस साल सामान्य से कम बारिश होने की संभावना है। आईएमडी का यह भी कहना है कि वर्तमान में भूमध्यरेखीय प्रशांत क्षेत्र में ला नीना की स्थिति बनी हुई है और इसके मॉनसून दौरान भी जारी रहने की संभावना है।
ला नीना का मतलब है कि मध्य और पूर्वी भूमध्यरेखीय प्रशांत महासागर में समुद्र की सतह के तापमान का बड़े पैमाने पर ठंडा होना, साथ में उष्णकटिबंधीय वायुमंडलीय परिसंचरण मतलब हवा, वर्षा और दबाव में बदलाव आना।
चूंकि प्रशांत और हिंद महासागरों में सतह के तापमान (एसएसटी) की स्थिति को भारतीय मॉनसून पर पड़ने वाले मजबूत प्रभाव के लिए जाना जाता है, ऐसे में आईएमडी इन महासागर घाटियों में समुद्री सतह की स्थिति में आते बदलावों की सावधानी पूर्वक निगरानी कर रहा है।