
पूर्वोत्तर भारत का राज्य मेघालय जिसका अर्थ ही है ‘बादलों का घर’, अब अपने नाम के अनुरूप नहीं रह गया है। यह राज्य दुनिया के सबसे अधिक वर्षा वाले दो स्थानों मासिनराम और चेरापूंजी के लिए प्रसिद्ध है। यहां की 83 प्रतिशत आबादी वर्षा आधारित खेती पर निर्भर है और 48 प्रतिशत भूमि खेती योग्य है।
लेकिन हालिया मानसून और दीर्घकालिक वर्षा रुझानों को देखते हुए अब राज्य के नाम पर फिर से विचार करने की आवश्यकता महसूस हो रही है। यह स्थिति न केवल आजीविका के लिए खतरा है, बल्कि जल सुरक्षा के लिहाज से भी गंभीर चिंता का विषय बनती जा रही है।
मानसून 2025 में सबसे अधिक वर्षा की कमी
2025 के दक्षिण-पश्चिम मानसून सीजन में मेघालय में देश के सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों की तुलना में सबसे अधिक वर्षा की कमी (56 प्रतिशत) दर्ज की गई है। यहां तक कि तुलनात्मक रूप से सूखे राज्य झारखंड में भी इस सीजन में मेघालय से अधिक बारिश हो चुकी है।
दरअसल, मानसून 2025 में कुल सात राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में मेघालय से अधिक वर्षा दर्ज की गई है। इनमें से केवल गोवा ही ऐसा राज्य है, जहां सामान्यतः मेघालय से अधिक वर्षा होती है।
मानक वर्षा सूचकांक (एसपीआई) के आधार पर मेघालय में वर्षा की दशकीय प्रवृत्तियां
मानक वर्षा सूचकांक (एसपीआई) और उसकी व्याख्या:
एसपीआई मान वर्षा की तीव्रता
>2 अत्यधिक आर्द्र
1.50 - 1.99 बहुत आर्द्र
1.00 - 1.49 मध्यम आर्द्र
-0.99 - 0.99 सामान्य
-1.00 - -1.49 मध्यम शुष्क
-1.50 - -1.99 गंभीर शुष्क
मेघालय में 1 जून से 28 जुलाई के बीच मात्र 690.7 मिमी वर्षा हुई, जबकि सामान्य वर्षा 1,555.4 मिमी होनी चाहिए थी। इसके विपरीत झारखंड में 732.6 मिमी वर्षा हुई, जबकि वहां की सामान्य वर्षा केवल 478.3 मिमी है। यानी यहां सामान्य से 53 प्रतिशत अतिरिक्त वर्षा हो चुकी है।
झारखंड में वर्षा की यह अधिकता देश में चौथे स्थान पर रही, जिससे केवल लद्दाख, राजस्थान और अर्ध-शुष्क मध्यप्रदेश आगे हैं।
दीर्घकालिक शुष्क प्रवृत्तियांं
राज्य में सूखापन बढ़ने की जो स्थिति है, वह लंबे समय से देखने को मिल रही है — कुछ आंकड़े तो सौ साल से भी ज्यादा पुराने हैं। जुलाई 2022 में जर्नल ऑफ द इंडियन सोसाइटी ऑफ रिमोट सेंसिंग में प्रकाशित एक शोधपत्र के अनुसार, 1951-1960 के दशक में मेघालय के मध्य भागों में सबसे अधिक वर्षा होती थी।
समय के साथ राज्य के शुष्क क्षेत्रों का विस्तार हुआ। खासकर पश्चिमी, मध्य और उत्तरी भागों में। यह विश्लेषण सिक्किम स्थित सेंट्रल एग्रीकल्चरल यूनिवर्सिटी के कृषि इंजीनियरिंग और पोस्ट-हार्वेस्ट टेक्नोलॉजी कॉलेज के सिंचाई और जल निकासी विभाग के वैज्ञानिकों ने किया।
इस अध्ययन में 1951 से 2020 के बीच हर साल महीने और मौसम के आधार पर वर्षा में होने वाले दशकीय बदलावों का विश्लेषण किया गया। एसपीआई का उपयोग कर यह मापा गया कि किसी खास समय अवधि में किसी क्षेत्र में वर्षा अपने दीर्घकालिक औसत से कितनी अलग हुई।
शोधकर्ताओं ने दिसंबर माह को चुना क्योंकि इस महीने राज्य में ऐतिहासिक रूप से बहुत कम वर्षा होती रही है। उन्होंने 'मानसून पूर्व' मौसम को अक्टूबर से फरवरी तक माना (भारतीय मौसम विभाग की परिभाषा अक्टूबर से दिसंबर की है)। यह मौसम इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि स्थानीय फसलें इसी अवधि में काटी जाती हैं।
हाल के दशकों में राज्य के दक्षिणी और दक्षिण-पूर्वी हिस्से जैसे पूर्वी खासी हिल्स और जयंतिया हिल्स अपेक्षाकृत अधिक वर्षा वाले क्षेत्र रहे हैं। सबसे अधिक बारिश दक्षिण-पश्चिम खासी हिल्स में दर्ज की गई है।
1989 से 2018 के बीच मानसून के दौरान वर्षा में गिरावट
भारतीय मौसम विभाग द्वारा 1989 से 2018 के बीच दक्षिण-पश्चिम मानसून के दौरान किए गए विश्लेषण में पाया गया कि मेघालय उन पांच राज्यों में शामिल है, जहां इस मौसम में वर्षा में महत्वपूर्ण गिरावट आई है। इसके अलावा अन्य राज्य हैं- नागालैंड, पश्चिम बंगाल, बिहार और उत्तर प्रदेश।
ये पांच राज्य, अरुणाचल प्रदेश और हिमाचल प्रदेश के साथ मिलकर सालाना वर्षा में भी गिरावट दर्ज कर चुके हैं। इस तथ्य को केंद्रीय पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय ने लोकसभा में एक प्रश्न के उत्तर में प्रस्तुत किया था, जो बाद में 26 जुलाई, 2023 को प्रेस सूचना ब्यूरो की प्रेस विज्ञप्ति के रूप में प्रकाशित हुआ।
चेरापूंजी में भी वर्षा घट रही है
चेरापूंजी, जो अब दुनिया का दूसरा सबसे वर्षा वाला स्थान है, वहां 1872 से 2007 तक यानी 135 वर्षों की अवधि में सात महीनों फरवरी, मार्च, अप्रैल, मई, जून, अगस्त और सितंबर में वर्षा घटने की प्रवृत्ति देखी गई है। यह शोध फरवरी 2021 में जर्नल ऑफ एप्लाइड एंड नेचुरल साइंस में प्रकाशित हुआ था और इसे गुवाहाटी के कॉटन विश्वविद्यालय की सांख्यिकी विभाग की सुरोभी डेका ने तैयार किया।
प्राकृतिक संपदा और आजीविका पर खतरा
भले ही मेघालय में अभी भी आसपास के पूर्वोत्तर राज्यों की तुलना में अधिक वर्षा होती है, लेकिन वर्षा की घटती प्रवृत्ति वहां की समृद्ध जैव विविधता और पर्यावरण के लिए खतरा बन सकती है, जो हर साल अत्यधिक वर्षा के अनुरूप ढली हुई है। यह राज्य इंडो-बर्मा जैव विविधता हॉटस्पॉट का हिस्सा है, जो भारत के चार और दुनिया के कुल 34 हॉटस्पॉट्स में से एक है।
वर्षा में आई यह कमी किसानों की आजीविका के लिए भी संकट बन सकती है। इसके प्रभावों को पूरी तरह समझने के लिए और अधिक शोध की आवश्यकता है।
जलवायु परिवर्तन की स्पष्ट चेतावनी
इस तरह दशकों से लेकर हालिया समय तक, वर्षा में कमी का यह रुझान (वह भी दुनिया के सबसे अधिक वर्षा वाले क्षेत्रों में) स्पष्ट रूप से यह दर्शाता है कि वैश्विक तापमान में वृद्धि (ग्लोबल वार्मिंग) और उसके कारण हो रहे जलवायु परिवर्तन का सीधा प्रभाव कृषि-आधारित और जैव विविधता-समृद्ध क्षेत्रों पर पड़ रहा है, जैसे कि मेघालय।