महेंद्र प्रसाद ने पिछले साल एक एकड़ खेत में दस कुंतल धान का उत्पादन किया था, लेकिन इस बार बारिश की भारी किल्लत के कारण उन्होंने अब एक किलो धान के उपज की भी उम्मीद छोड़ दी है।
52 साल के महेंद्र का गांव झारखंड के हजारीबाग जिले के कटकम प्रखंड में है। उन्होंने डाउन टू अर्थ से कहा, “मेरे गांव बानादाग में पिछली बारिश तो काफी अच्छी हुई थी। 27 जुलाई से पहले ही रोपाई पूरी कर ली थी हमने, लेकिन इस बार बारिश ही नहीं हुई।बिचड़ा डाले हुए 45 दिन हो गए हैं। अब धान रोपने का कोई फायदा नहीं है। क्योंकि खेत में बिचड़ा डालने के 12 दिनों बाद रोपाई कर लेना था।”
उनके गांव में 600 के करीब घर हैं, जिनमें से 300 घरों ने धान की रोपाई तो की है, लेकिन मात्र 20 प्रतिशत तक ही। महेंद्र के पास दो एकड़ जमीन है, जिसमें से वो एक एकड़ पर सब्जी की खेती करते हैं। इनके परिवार के जीविका से लेकर आमदनी तक का जरिया खेती किसानी ही है।
कृषि वैज्ञानिकों के मुताबिक धान की अच्छी उपज के लिए खेत में बिचड़ा डालने से लेकर रोपाई तक का सही समय एक जून से 31 जुलाई तक होता है। यानी खेती के लिहाज से इस बीच अच्छी बारिश होनी चाहिए, पर हजारीबाग में इस दौरान सामान्य से 57 प्रतिशत कम बारिश हुई।
समूचे राज्य में 49 प्रतिशत सामान्य से कम वर्षा हुई है। झारखंड की इस हालत को देखते हुए वैज्ञानिकों का मानना था कि अगर 15 अगस्त तक भी अच्छी बारिश हो गई तो 50 प्रतिशत तक धान की रोपाई हो जाएगी, लेकिन झारखंड के कृषि विभाग के 15 अगस्त तक के आकंड़े कहते हैं कि इस दौरान हजारीबाग में 42 और ओवर ऑल झारखंड में 35 प्रतिशत सामान्य से कम वर्षा हुई है।
बारिश की इस किल्लत का प्रभाव खरीफ की फसलों कितना जबरदस्त पड़ा, इसे भी कृषि विभाग के आकंड़ों से समझा जा सकता है।
2022 में 28,27,460 लाख हेक्टेयर पर खरीफ की फसल (जिसमें धान, दलहन, तिलहन, और मोटे आनाज शामिल हैं) लगाई जाने थी, लेकिन 31 जुलाई तक कुल क्षेत्रफल के 24.64 प्रतिशत खेतों में ही बोआई हो पाई है, जबकि 15 अगस्त तक यह आंकड़ा सिर्फ 37.19 प्रतिशत तक ही पहुंच पाया।
वहीं 2021 में 31 जुलाई तक 56.19 प्रतिशत और 15 अगस्त तक 83.07 प्रतिशत तक रहा। अब अगर धान की रोपाई के बात करें तो 2022 में 18 लाख हेक्टेयर पर धान की बुआई की जाने थी, लेकिन 31 जुलाई तक कुल क्षेत्रफल के 15.78 प्रतिशत ही हिस्से पर बोआई हो पाई, जबकि 15 अगस्त तक यह आंकड़ा 30 प्रतिशत तक ही पहुंच पाया। 2021 में 31 जुलाई तक धान की बोआई 57 प्रतिशत और 15 अगस्त तक 91.04 प्रतिशत तक पहुंच गया था।
पिछले पांच सालों में खरीफ के फसलों की रोपाई राज्य में इस बार सबसे कम हुई है। 1 जून से 31 जुलाई और एक जून से 15 अगस्त तक का जो आकंड़ा है वो क्रमशः इस प्रकार रहा है। 2018 में 41 व 69.75 प्रतिशत, 2019 में 37.30 व 55.35 प्रतिशत रहा, 2020 में 70.99 प्रतिशत रहा।
हालत ऐसी हो गई है कृषि विभाग की ओर से लगातार बैठकें की जा रही हैं और सूखा ग्रस्त इलाकों की पहचान और समीक्षा हो रही है।
झारखंड कृषि विभाग की निदेशक निशा उरांव ने डाउन टू अर्थ को बताया, “राज्य के 24 जिलों के फिलहाल 180 प्रखंड में सूखे जैसी स्थिति है। चार जिलों में माध्यम, सात जिलों में गंभीर और 13 जिलों में अत्यधिक सूखा है।
सबसे ज्यादा संथाल परगना के इलाके प्रभावित हुए हैं। साहिबगंज, पाकुड़, गोड्डा और जामताड़ा में सामान्य से 67-71 प्रतिशत कम वर्षा हुई है। हालांकि जुलाई के बाद कुछ इलाकों में बारिश ठीक हुई, लेकिन इस दौरान किसानों ने धान के जो बिचड़े लगाए हैं वो फसल भी प्रभावित होगी, क्योंकि बिचड़ा डेढ़ से दो महीने पुराना है।”
निशा उरांव का यह भी कहना है कि इन प्रखंडों में फिर से पंचायत स्तर पर सूखे की स्थिति जायजा लिया जाएगा, जिसमें सूखे ग्रस्त इलाकों की संख्या बढ़ या घट सकती है.
पिछली बार राजधानी रांची में सामान्य (1400 मीमी) से काफी अधिक(2150 मीमी) बारिश हुई थी. लेकिन इस बार 31 जुलाई तक 42 प्रतिशत और 15 अगस्त तक 22 प्रतिशत सामान्य से कम वर्षा हुई है। इस कम वर्षा ने रांची से 45 किलोमीटर दूर स्थित बेड़ों प्रखंड के रहने वाले बिशेश्वर मिंज की परेशानी को बढ़ा दिया है।
दस एकड़ पर धान की खेती करने वाले बिशेश्वर ने पिछले साल 25 जुलाई तक पूरे खेत में धान रोप दिया था, लेकिन इस बार क्या हुआ?
इस सवाल के जवाब में उन्होंने डाउन टू अर्थ से कहा, “एक क्यारी में भी धान नहीं रोप पाएं। 15 अगस्त को बारिश ठीक हुई थी तो जैसे तैसे करके धान रोपे हैं, जो बिचड़ा 22 दिन में रोप देना था, उसे 50 दिन बाद रोपेंगे तो क्या धान होगा। हमको उम्मीद नहीं है कि पिछली बार की तरह आधा भी धान हो पाए।”
40 साल के बिशेश्वर का घर बेड़ों के चिदरी डंगरा टोला में पड़ता है। चार भाई और परिवार में 15 सदस्य हैं। खेती किसानी ही इनका प्रमुख पेशा है। टोले में 105 घर हैं, लेकिन खेती का हाल इस बार सभी के यहां बेहाल है। बिशेश्वर बताते हैं कि उन्हें पिछली बार 350 बोरा (एक बोरा=50 किलो) से ज्यादा धान हुआ था।
पिछली बार अच्छी बारिश का नतीजा ये रहा था कि राज्य में धान की बंपर खेती हुई थी। 2021 में 17.63 लाख हेक्टेयर में धान लगाया गया था. जिसमें 50 लाख मीट्रिक टन धान का उत्पादन हुआ था। वहीं 2020 में भी 49 लाख मीट्रिक टन धान की खेती हुई थी।
मौसम विभाग के मुताबिक खेती किसानी पर मानसून की मार दरअसल, जलवायू परिवर्तन के कारण पड़ी है। पिछले तीस साल में मौसम काफी बदला है।
रांची स्थित भारतीय मौसम विज्ञान केंद्र के निदेशक अभिषेक आनंद कहते हैं, “पिछले दस साल में जुलाई में सबसे कम बारिश इस बार राज्य में हुई है। मौसम और मानसून में काफी बदलाव आ गया है। 1961-2010 तक राज्य में सालाना औसतन 1054.7 मिमी सामान्य वर्षा हुई, जबकि 1971- 2020 तक यह सामान्य वर्षा का 1022.9 मिमी दर्ज की गई। जलवायु परिवर्तन के कारण बारिश में निरंतर कमी आने पर नॉर्मल क्राइटेरिया को बदलना पड़ता है।