यूरोपियन यूनियन के क्लाइमेट मॉनिटरिंग सिस्टम के अनुसार गत माह इतिहास का सबसे गर्म जनवरी था। जब जनवरी माह का वैश्विक तापमान अपने चरम पर पहुंच गया था। वहीं यूरोप में जनवरी 2020 का तापमान औसत से (1981 - 2010 में जनवरी माह का औसत तापमान) से 3 डिग्री सेल्सियस अधिक रिकॉर्ड किया गया। यह आंकड़े एक बार फिर इस और इशारा कर रहे हैं कि भविष्य में हमें और विकट मौसम का सामना करना पड़ेगा। जब दुनिया भर में हो रही ग्लोबल वार्मिंग हर चीज पर अपना असर डालना शुरू कर देगी। वैसे भी दुनिया भर में कहीं बाढ़ कहीं सूखा और कहीं तूफान के रूप में यह असर दिखने भी लगा है। जिसने इंसानों से लेकर जीव-जंतुओं और पेड़ पौधों पर भी अपना असर दिखाना शुरू कर दिया है।
विश्व मौसम विज्ञान संगठन द्वारा किये विश्लेषण के अनुसार 2019 को मानव इतिहास के दूसरा सबसे गर्म वर्ष के रूप में दर्ज किया गया था। आंकड़ों के अनुसार 2019 के वार्षिक वैश्विक तापमान में औसत (1850 से 1900 के औसत तापमान) से 1.1 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि हो चुकी है। जबकि 2016 का नाम अभी भी रिकॉर्ड में सबसे गर्म साल के रूप में दर्ज है। आंकड़ें दिखाते हैं कि 2010 से 2019 के बीच पिछले पांच साल रिकॉर्ड के सबसे गर्म वर्ष रहे हैं।
विश्लेषण के अनुसार यूरोप में गत जनवरी का औसत तापमान जनवरी 2007 के तापमान से 0.2 डिग्री सेल्सियस अधिक रिकॉर्ड किया गया। गौरतलब है कि इससे पहले जनवरी 2007 यूरोप में इतिहास के सबसे गर्म जनवरी के रूप में दर्ज था। वहीं पूर्वोत्तर में यूरोप नॉर्वे से रूस तक फैले देशों के कई हिस्सों में औसत तापमान सामान्य से कहीं ज्यादा अंकित किया गया। जहां तापमान 1981 से 2010 के जनवरी के औसत से 6 डिग्री सेल्सियस अधिक रिकॉर्ड किया गया था। बढ़ते तापमान को साफ रूप से महसूस किया जा सकता है।
उदाहरण के लिए, पश्चिमी नॉर्वे के सुंदालसोरा में 2 जनवरी को तापमान 19 डिग्री सेल्सियस रिकॉर्ड किया गया जोकि औसत मासिक तापमान से 25 डिग्री सेल्सियस अधिक था। जबकि स्वीडिश शहर ऑरेब्रो में 9 जनवरी 1858 के बाद से जनवरी माह का सबसे गर्म दिन था। वहीं रूस के लगभग सभी क्षेत्रों, संयुक्त राज्य अमेरिका, पूर्वी कनाडा, जापान और पूर्वी चीन के कुछ हिस्सों में तापमान सामान्य से कहीं अधिक रिकॉर्ड किया गया।
इसके साथ ही ऑस्ट्रेलिया के न्यू साउथ वेल्स में तापमान सामान्य से अधिक दर्ज किया गया। जहां बड़े पैमाने पर फैली आग ने राज्य के बड़े हिस्से को तबाह कर दिया है। तापमान में आ रही इस बढ़ोतरी के लिए वैज्ञानिकों ने मुख्य रूप से ग्रीन हाउस गैसों के बढ़ते उत्सर्जन को जिम्मेदार माना है। रिपोर्ट की मानें तो वातावरण में मौजूद कार्बन डाइऑक्साइड का स्तर पिछले 800,000 वर्षों के अपने उच्चतम स्तर पर है। यदि औसत रूप से देखा जाये तो 1959 से लेकर 2018 तक हर वर्ष वायुमंडल में विद्यमान कार्बन डाई ऑक्साइड की मात्रा में 1.57 पीपीएम की दर से वृद्धि हो रही है । संयुक्त राष्ट्र बढ़ते उत्सर्जन के खतरे के बारे में पहले भी चेता चुका है। उसके अनुसार यदि पेरिस समझौते में निर्धारित 1.5 डिग्री के लक्ष्य को हासिल करना है तो ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन में हो रही वृद्धि को सालाना 7.6 फीसदी की दर पर सीमित करने की जरूरत है।