बच्चों के लिए आफत बना बढ़ता तापमान, यूरोप और मध्य एशिया में हर दूसरे बच्चे को लू से खतरा

दुनिया भर में करीब 55.9 करोड़ बच्चे लू की मार झेल रहे हैं। वहीं अनुमान है कि अगले 27 वर्षों में दुनिया का करीब-करीब हर बच्चा लू की चपेट में होगा
गर्मी और लू से बचने के लिए स्पेन के मैड्रिड में फव्वारों से निकलते पानी के साथ खेलते बच्चे; फोटो: आईस्टॉक
गर्मी और लू से बचने के लिए स्पेन के मैड्रिड में फव्वारों से निकलते पानी के साथ खेलते बच्चे; फोटो: आईस्टॉक
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यूरोप, मध्य एशिया सहित पूरी दुनिया बढ़ते तापमान से त्रस्त है। इसका असर बच्चों पर भी पड़ रहा है, जो उनके लिए किसी आफत से कम नहीं। संयुक्त राष्ट्र बाल कोष (यूनिसेफ) के मुताबिक यूरोप और मध्य एशिया का हर दूसरा बच्चा गंभीर लू की चपेट में है। मतलब की इन देशों में करीब 9.2 करोड़ बच्चों को बढ़ती गर्मी और लू का सामना करने को मजबूर हैं।

यूनिसेफ की माने तो इन देशों में स्थिति वैश्विक औसत की तुलना में कहीं ज्यादा खराब है। गौरतलब है कि वैश्विक स्तर पर करीब 25 फीसदी बच्चे गंभीर लू के साये में रह रहे हैं। यह जानकारी यूनिसेफ द्वारा जारी नई रिपोर्ट “बीट द हीट: प्रोटेक्टिंग चिल्ड्रन फ्रॉम हीटवेव्स इन यूरोप एंड सेंट्रल एशिया” में सामने आई है। इस रिपोर्ट में यूनिसेफ ने 50 से भी ज्यादा देशों में बढ़ती गर्मी और लू के आंकड़ों का विश्लेषण किया है।

रिपोर्ट के अनुसार, बच्चे लू के प्रभावों के प्रति विशेष रूप से संवेदनशील होते हैं क्योंकि उनके शरीर का तापमान वयस्कों की तुलना में काफी अधिक और तेजी से बढ़ता है, जिससे उन्हें हीटस्ट्रोक के साथ-साथ गंभीर बीमारियों का खतरा भी रहता है। इतना ही नहीं लू बच्चों में ध्यान केंद्रित करने और सीखने की क्षमता में बाधा डालकर उनकी शिक्षा को भी प्रभावित करती है।

इस बारे में यूनिसेफ (यूरोप और मध्य एशिया) की क्षेत्रीय निदेशक रेजिना डी डोमिनिकिस का कहना है कि, “दुनिया के इन हिस्सों में देश जलवायु संकट की तपिश महसूस कर रहे हैं, जिसकी वजह से बच्चों के स्वास्थ्य और कल्याण को सबसे अधिक नुकसान हो रहा है।“

उनका कहना है कि, "क्षेत्र में आधे बच्चे अब गंभीर लू के संपर्क में है। वहीं 2050 तक वहां रहने वाले सभी बच्चे इसकी चपेट में होंगें।" उनके अनुसार ऐसे में इतनी बड़ी संख्या में बच्चों के स्वास्थ्य पर पर पड़ने वाले नकारात्मक प्रभावों को देखते हुए सरकार को तत्काल कार्रवाई करने की जरूरत है। साथ ही इस स्थिति में सुधार लाने के लिए अनुकूलन सम्बन्धी उपायों पर निवेश के लिए प्रेरित करना चाहिए।

यूनिसेफ का कहना है कि अधिकांश वयस्कों को गर्मी का अनुभव अलग तरह से होता है, जिससे माता-पिता और देखभाल करने वालों के लिए बच्चों में खतरनाक स्थितियों या गर्मी से संबंधित बीमारी के लक्षणों की पहचान करना कठिन हो जाता है। हाल के वर्षों में देखें तो यूरोप और मध्य एशिया में लू का कहर लगातार बढ़ता जा रहा है और इसके कम होने के कोई संकेत नहीं दिख रहे। ऐसे में अनुमान है कि आने वाले वर्षों में इसकी आवृत्ति और भी बढ़ने वाली है।

बढ़ते तापमान के साथ खतरे में आने वाले कल का भविष्य

यदि वैश्विक तापमान में होती वृद्धि के सबसे रूढ़िवादी अनुमान के तहत भी देखें तो वैश्विक तापमान 1.7 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि के साथ 2050 तक यूरोप और मध्य एशिया के सभी बच्चों को बढ़ती गर्मी और बार-बार आती लू की गंभीर घटनाओं का सामना करने को मजबूर होना पड़ेगा। वहीं इनमें से करीब 81 फीसदी बच्चे लम्बे समय तक लू का अनुभव करेंगे और करीब 28 फीसदी गंभीर लू की चपेट में होंगें।

गौरतलब है कि यूनिसेफ पहले भी अपनी रिपोर्ट में इस बात को लेकर चेतावनी दे चुका है। "द कोल्डेस्ट ईयर ऑफ द रेस्ट ऑफ देयर लाइव्स" नामक इस रिपोर्ट के अनुसार दुनिया भर में करीब 55.9 करोड़ बच्चे बार-बार आने वाली लू साए में जी रहे हैं। वहीं अनुमान है कि 2050 तक दुनिया का करीब-करीब हर बच्चे पर लू का खतरा मंडराने लगेगा। मतलब की 202 करोड़ बच्चे गंभीर लू का सामना करने को मजबूर होंगें।

कैसे दे सकतें है इस बढ़ती गर्मी को मात

ऐसे में अपने इस विश्लेषण में बच्चों की सुरक्षा के लिए, यूनिसेफ ने यूरोप और मध्य एशिया की सरकारों के लिए छह सिफारिशों की रूपरेखा तैयार की है।

  • बच्चों को सभी योजनाओं के केंद्र में रखते हुए, जलवायु संबंधी प्रतिबद्धताओं (एनडीसी) और आपदा जोखिम न्यूनीकरण (एनएपी) और आपदा जोखिम प्रबंधन सम्बन्धी नीतियों में लू के शमन और अनुकूलन को भी शामिल करना।
  • बच्चों में गर्मी से जुड़ी बीमारियों की रोकथाम, शीघ्र कार्रवाई, निदान और उपचार को सक्षम बनाने के लिए प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल से जुड़ी सेवाओं में निवेश करना। इसमें सामुदायिक स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं और शिक्षकों को प्रशिक्षण देना शामिल है।
  • राष्ट्रीय पूर्व चेतावनी प्रणालियों, स्थानीय पर्यावरण के आकलन के लिए संसाधन आवंटित करना और आपातकालीन स्थिति से निपटने और उसका सामना करने के लिए पहल का समर्थन करना।
  • लू के प्रभावों से निपटने के लिए पानी, स्वच्छता, स्वास्थ्य, शिक्षा, पोषण, सामाजिक सुरक्षा और बाल संरक्षण जैसी आवश्यक सेवाओं को अपनाना।
  • बच्चों और उनके परिवारों को लू के प्रभावों से बचाने वाले उपायों को लागू करने के लिए पर्याप्त धन की व्यवस्था करना।
  • जलवायु परिवर्तन और पर्यावरण सम्बन्धी कौशल में प्रशिक्षण देकर बच्चों और युवाओं को सशक्त बनाना। यह उन्हें जलवायु से जुड़ी चुनौतियों को प्रभावी ढंग से समझने और उसका सामना करने के लिए तैयार करेगा।

वैज्ञानिक प्रमाण भी इसकी पुष्टि कर चुके हैं कि बढ़ता तापमान जलवायु परिवर्तन से जुड़ा है। ऐसे में यूनिसेफ ने यूरोप और मध्य एशिया की सरकारों से अपील की है कि वो बढ़ते तापमान को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित करने के लिए उत्सर्जन में कटौती करें और साथ ही 2025 तक अनुकूलन के लिए दिए जा रहे फण्ड को को दोगुना करने का भी आग्रह किया है।

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