इस साल पूरे देश में मार्च में ही लू और समुद्री दबावों का सिलसिला शुरू हो चुका है। संभवतः इसके पीछे मुख्य वजह अनापेक्षित जलवायु विसंगतियां हैं, जो ग्लोबल वार्मिंग से जुड़ी हो सकती हैं।
भारतीय मौसम विज्ञान विभाग ने 11 मार्च को ही मौसम की पहली लू व भयंकर लू और उससे पहले तीन मार्च को पहले दबाव का ऐलान किया था। इसके बाद बीस मार्च को एक दूसरा समुद्री दबाव बना था, जिसके बाद इन दोनों दबावों को मार्च के महीने में 130 सालों में पहली बार बनने वाले दबावों के रूप में चिन्हित किया गया था।
इन दोनों दबावों की पहचान गहरे दबावों के तौर पर की गई थी और 20 मार्च वाले दबाव को लेकर यह आशंका भी जाहिर की गई थी कि वह मार्च के पहले चक्रवात में भी तब्दील हो सकता है।
मौसम से जुड़ी दूसरी घटनाएं तीन अजीब धूल भरी आंधियों की श्रंखलाएं थीं, जिन्होंने इस साल जनवरी और फरवरी में मुंबई शहर और उसके आसपास के क्षेत्र को प्रभावित किया। इन धूल भरी आंधियों की उत्पत्ति पाकिस्तान और अफगानिस्तान के सीमावर्ती क्षेत्रों से हुई और उन्होंने अरब सागर के रास्ते मुंबई पर असर डाला।
जल्द चलने वाली लू, समुद्र में जल्दी आने वाले दबावों और अजीब धूल भरी आंधियों के पीछे का कारण उत्तर-दक्षिण निम्न दबाव पैटर्न का लगातार बने रहना है, जो सर्दियों के दौरान भारत के ऊपर तब बनता है, जब भूमध्यरेखीय प्रशांत महासागर में ला-नीना की घटना होती है।
ला-नीना के दौरान पूर्वी और मध्य प्रशांत महासागर में समुद्र की सतह का तापमान औसत से अधिक ठंडा हो जाता है। यह हवा के दबाव में बदलाव के माध्यम से समुद्र की सतह पर बहने वाली पूर्वी हवाओं को प्रभावित करता है।
ये हवाएं मौसम के इस खलल को कहीं और ले जाती हैं और दुनिया के बड़े हिस्से को प्रभावित करती हैं। भारत में, यह घटना ज्यादातर गीली और ठंडी सर्दियों से जुड़ी होती है। यही वजह है कि ला-नीना का ताजा असर पूरी तरह से अप्रत्याशित है।
मैरीलैंड विश्वविद्यालय के जलवायु वैज्ञानिक रघु मुर्तुगुडे के मुताबिक, ‘ ला-नीना ने सर्दियों के दौरान भारत पर उत्तर-दक्षिण दबाव पैटर्न तैयार किया था, लेकिन ऐसा लगता है कि यह किसी न किसी रूप में अभी तक बना हुआ है। अजीब धूल भरी आंधी, शुरुआती गहरे दबाव, जिनमें से एक से चक्रवात बनने की आशंका थी और मार्च में चल रही लू जैसी घटनाएं इसी का हिस्सा हैं।’ ला-नीना की यह अजीब जड़ता दुनिया के दूसरे क्षेत्रों को भी प्रभावित कर रही है।
मुर्तुगुडे विस्तार से बताते हैं - “ फरवरी के दौरान पश्चिमी रूस में कजाकिस्तान और पाकिस्तान, अफगानिस्तान, स्पेन और पुर्तगाल में तापमान 10 डिग्री सेल्सियस से अधिक गर्म था। पिछली बार ला-नीना तीन साल के लिए 1998-2000 के दौरान बना था और साल 2000 में भी मार्च में एक चक्रवात आया था। इस तरह ला-नीना और उच्च अक्षांश पैटर्न, एक-दूसरे को प्रभावित कर रहे हैं। मुझे लगता है कि मुख्य रूप से इसी वजह के चलते, गर्म आर्कटिक क्षेत्र वायुमंडलीय तरंगों को नीचे भेज रहा है।’ यदि ला-नीना और गर्म आर्कटिक वास्तव में एक-दूसरे को प्रभावित कर रहे हैं तो यह ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जन से प्रेरित ग्लोबल वार्मिंग का असर है।
हालांकि बंगाल की खाड़ी में दोनों गहरे दबावों ने भारतीय महाद्वीप को प्रभावित नहीं किया, लेकिन दूसरे दबावों ने म्यांमार की ओर बढ़ने और वहां भूमिगत होने से पहले अंडमान और निकोबार द्वीप समूह पर कुछ बारिश की। जबकि जनवरी और फरवरी में धूल भरी आंधी ने कुछ दिनों के लिए मुंबई की वायु गुणवत्ता को काफी नीचे ला दिया था।
भारतीय मौसम विज्ञान विभाग द्वारा उपलब्ध आंकड़ों का विश्लेषण कर डाउन टू अर्थ ने पाया कि 11 मार्च को पहली लू के बाद से, लू के 13 और दिन (कुल 14) और नौ भीषण लू वाले (कुल 10) दिन हो गए हैं, जो ज्यादातर देश के पश्चिमी और उत्तरी हिस्सों में चल रही है।
आठ राज्यों और एक केंद्र शासित प्रदेश, जम्मू-कश्मीर इस दौरान लू की चपेट में आए हैं। इनमें से पांच राज्यों और जम्मू और कश्मीर ने भीषण लू झेली।
लू का सबसे ज्यादा शिकार गुजरात बना। राज्य के कुछ हिस्से मार्च के 11 दिनों में लू से झुलसे हैं। राज्य में लू का सबसे ज्यादा कहर सौराष्ट्र ओर कच्छ क्षेत्रों में बरपा, जो इस महीने के दस दिनों में इसका शिकार बने। लू से दूसरा सबसे ज्यादा प्रभावित होने वाला राज्य मध्य प्रदेश रहा, जहां मार्च में नौ दिन लू के थपेड़े चले। राज्य का पश्चिमी हिस्से में इसका ज्यादा असर दिखा।
इस मौसम में लू का एक दिलचस्प पहलू हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड और केंद्र शासित प्रदेश जम्मू और कश्मीर जैसे पहाड़ी राज्यों में उसकी मौजूदगी रही है, जो इन क्षेत्रों में बर्फ और ग्लेशियरों के पिघलने की गति को तेज कर देगी। यह घटना, यहां के लोगों के लिए पानी की उपलब्धता पर असर डालेगी। मानव-स्वास्थ्य पर बड़े पैमाने पर प्रभाव डालने के अलावा, जिसमें मौत की आशंका भी है, लू के थपेड़े फसलों की पैदावार को प्रभावित कर सकते हैं क्योंकि लू अक्सर सूखे का कारण बन जाती हैं।
मार्च 2022 के लिए लू की तीव्रता और पैमाने की पुष्टि करने के लिए, डाउन टू अर्थ ने उपमहाद्वीप में 40 डिग्री सेल्सियस से अधिक हवा के तापमान का खाका तैयार किया। इसकी तुलना पिछले साल की जलवायु स्थिति से करने पर दोनों सालों में साफ फर्क है। लू के थपेडे़, पश्चिम में अफगानिस्तान से लेकर पूर्व में म्यांमार तक फैले हुए हैं। भारतीय मौसम विज्ञान विभाग के नवीनतम पूर्वानुमानों के अनुसार, भारत के इन्हीं क्षेत्रों में गर्मी की लहरें अभी भी चल रही हैं और ये कम से कम 31 मार्च तक बनी रहने वाली हैं।
ला-नीना भी अगले कुछ महीनों तक बना रहा सकता है और यह मानसून की बारिश पर भी असर डाल सकता है। विश्व मौसम विज्ञान संगठन का आकलन है कि ला-नीना के मार्च से मई तक बने रहने के 65 फीसदी आसार है। दूसरी ओर नेशनल ओशियानिक एंड एटमॉस्फरिक एडमिनिस्ट्रेशन, के मुताबिक इस बात की 53 फीसदी संभावना है कि ला-नीना इस साल अगस्त तक बना रहेगा। अगर ऐसा होता है तो भारत में अजीब मौसम की घटनाएं बढ़ सकती हैं। यहां तक कि देश के मानसून पर भी इसका असर पड़ सकता है।
मुर्तुगुड्डे के मुताबिक, ‘अगर ला-नीना फिर से आता है तो इस साल हम सामान्य से ऊपर सामान्य मानसून होते देखेंगे।’ उन्होंने इस तथ्य पर भी प्रकाश डाला कि पिछले कुछ सालों में चक्रवातों के निर्माण ने भारत में मानसूनी हवाओं के गठन और प्रगति को बाधित किया है। ऐसा इस साल भी हो सकता है।