पिछले पांच सालों और 50 सालों का औसत देखेंगे तो दोनों में 0.8 डिग्री सेल्सियस का अंतर होगा। इसका मुख्य कारण है औसतन तापमान में लगातार वृद्धि हो रही है। हीटवेव (लू) का मतलब होता है एक जगह पर कुछ समय तक गर्मी का लगातार बने रहना। 2017 में भारतीय मौसम विभाग ने (आईएमडी) ने एक नया इंडेक्स बनाया है। इसके अनुसार वे निश्चत करते हैं हीटवेव की ताकत कितनी है। कौन सी चीज कितनी खतरनाक है। दिनों के हिसाब से बनाया गया है। हीटवेव का असर शहरों में अधिक दिखता है। कारण कि शहर में कंक्रीटीकरण तेजी से बढ़ रहा है। काली डामर की सड़कें, इमारतों में बड़े-बड़े सीसे आदि ये सभी कारक हीटवेव को शोषित करने वाली चीजें हैं। ये चीजें हीट को पकड़ कर रखती हैं। और यदि इन स्थानों पर वृक्ष होता है तो जमीन पर हीट अधिक शोषित नहीं होता है। शहरों में चार से पांच डिग्री हमेशा अधिक तापमान होता है।
हीटवेव का सबसे महत्वपूर्ण कारक है शरीर पर इसका प्रभाव। इससे आम लागों को क्या असर पड़ता है या कितने लोगों की मृत्यु हुई हीटवेव के कारण, यह कैसे गिना जाता है। हीटवेव से बड़ी संख्या में लोग मरते हैं लेकिन यह नंबर दिखता नहीं है। कारण कि इसे सीधे-सीधे सिद्ध नहीं किया जा सकता है कि ये हीटवेव से मरे हैं। गर्मी के कारण आप नहीं मरेंगे बल्कि इसके कारण आपके शरीर में जैसे पेट में पानी कम हो गया, किडनी ,फेफड़े आदि में समस्या आती है तो ये कारण गिने जाएंगे। अस्पताल आपको यह नहीं बताएगा आप के रिश्तेतार हीटवेव के कारण मरे बल्कि वह बताएगा उनकी कीडनी फैल होने के कारण मरे हैं। कोई यह नहीं बताएगा कि गर्मी के कारण ऐसा हुआ है। ऐसे में यह एक बड़ा सवाल उठता है कि जब हीटवेव से मृत्यु का मुख्य कारण के रूप में सामने ही नहीं आएगा तो क्यों कोई राज्य सरकार इसके लिए किसी प्रकार से पैसे या योजना बनाएगी। आखिर नंबर से ही पता चलता है कि समस्या कितनी बड़ी है। हीटवेव से नहीं हीट स्ट्रोक से मृत्यु है। यह एक मात्र कारक है, जिसे हीटवेव से जोड़ा जा सकता है लेकिन डी-हाईड्रेशन से मृत्यु हो गई तो तो कोई नहीं बताएगा कि हीटवेव से मृत्यु हुई है।
यह स्थिति तो भारत में है, लेकिन दुनिया के दूसरे हिस्सों में हीटवेव से होने वाली मौतों का आंकड़े दूसरे तरीके से गिने जाते हैं। जैसे एक से पांच अप्रैल के बीच कितने लोग मरे हैं, इसके बाद यह देखते हैं कि सामान्य स्थित में इसी दौरान कितने लोगों की मौतें हुई हैं। इसमें यदि अंतर है तो वे यह बताते हैं इतने लोग गर्मी के कारण मरे हैं। भारत में हीट स्ट्रोक को ही हीटवेव से जोड़ा जाता है। यह एक बड़ी समस्या है। दूसरी समस्या है, मरने वालों को मुआवजा नहीं मिलता है। कारण कि कोई यह बता ही नहीं सकता है कि यह गर्मी के कारण मृत्यु हुई है। इन्हीं सभी कारणों से सरकारें इस मामले में मुआवजा की न तो व्यवस्था करती हैं और न ही राजनीतिक दल इसके लिए कोई मांग करते हैं।
हीटवेव कहने के लिए तो सदियों से दिख रहा है लेकिन हीट वेव अभी आपदा के रूप में भारत में नहीं देखा जाता है। पिछलें बीस सालों में लगातार हीट वेव से मरने वालों की संख्या में लगातार बढ़ रही है। कारण कि अब इसके ताप में लगातार इजाफा हो रहा है। यही कारण है कि अब इस पर चर्चा हो रही है। अब सामान्य से अधिक तापमान देखने को मिलता है। लेकिन हीट वेव को तभी देखा जाता था, जब सूखा पड़ा हो तो एक लिंक है सूखे और हीट वेव के बीच का। हालांकि अब यह लिंक कमजोर हो रहा है। अब सूखे के बिना भी हीटवेव दिखाई देगा। जैसे कि इस बार सामान्य बारिश हुई है लेकिन इस साल हीटवेव दिखाई देगा। जबकि सूखे की स्थित नहीं है। हीटवेव के लिए जो कुछ भी करना है वह स्थानीय निकाय को करना है। जैसे नगर पालिका या निगम या राज्य सरकार लेकिन केंद्र सरकार के पास बस आंकड़े एकत्रति करने की ही जिम्मेदारी होती है। अहमदाबाद, भवुनेश्वर, आंध्र प्रदेश आदि स्थानों पर हीटवेव का इंडिकेशन मिलता है तो वे जागरूकता अभियान चलाते हैं। जैसे एक से चार बाजे तक बाहर न निकलें और लोग लगातार पानी पीते रहें। किसी भी प्रकार के काम को दोपहर को अवाइड करें। प्याऊ आदि बनाए जाते हैं। हीट एक्शन प्लान का मुख्य कारक है जागरूकता बढ़ाना। इस जागरूकता का असर भी पड़ा है। यदि नंबर के तौर पर देखेंगे तो अहमदाबाद, भुवनेश्वर और हैदराबाद में पहले जितनी मौतें होती थीं, अब उतनी नहीं होती है। इसका कारण है कि इन राज्यों में एक्शन प्लान चालू किया है। इसके अलावा इमरजेंसी सर्विस के लिए अस्पताल लगातार चौकसी बनाए रखते हैं। एक्शन प्लान राज्य सरकार सरकार ही लागू करती हैं। इसे गांव-गांव में नहीं लागू कर सकते हैं। हीटवेव समाज की असमानता को भी इंगित करता है। जैसे इससे सबसे अधिक से प्रभावित दिनभर काम करने वाले परिवहन और निर्माण कार्यों में लगे मजदूर होते हैं। हीटवेव वास्तव में सामाजिक असमानता भी प्रभावित होती है। यही वर्ग हीटवेव का सबसे अधिक शिकार होता है। कारण कि इनकी न्यूट्रीशन भी कम होता है ऐसे में हीटवेव के सबसे अधिक शिकार यही लोग होते हैं।