ओलावृष्टि होने की घटनाएं खतरनाक होती हैं, कभी-कभी इनके कारण होने वाले नुकसान की भरपाई नहीं हो पाती है। गर्म होती जलवायु में ओलावृष्टि में भी बदलाव देखा जा रहा है।
ऑस्ट्रेलिया की द यूनिवर्सिटी ऑफ न्यू साउथ वेल्स (यूएनएसडब्ल्यू) के द्वारा किए गए एक अंतरराष्ट्रीय शोध में कहा गया है कि ओलावृष्टि पर जलवायु परिवर्तन के होने वाले प्रभाव क्षेत्र के अनुसार अलग-अलग होते हैं। दुनिया के अधिकांश क्षेत्रों में ओले गिरने के आसार बढ़ सकते है, जबकि ऑस्ट्रेलिया और यूरोप में जलवायु परिवर्तन की वजह से ओलावृष्टि के तीव्र होने की आशंका है।
इस अध्ययन में भविष्य में ओलावृष्टि पर पड़ने वाले जलवायु परिवर्तन के प्रभावों का पता लगाया है। यह ओलों पर पिछले बार लगाए गए अनुमानों, रुझान और सिमुलेशन मॉडल से दुनिया भर में भविष्य के रुझानों का एक सार है।
अध्ययन में अनुमान लगाया गया है कि ऑस्ट्रेलिया और यूरोप में आने वाले समय में ओलावृष्टि बढ़ेगी, जबकि पूर्वी एशिया और उत्तरी अमेरिका में ओलावृष्टि कम हो जाएगी और दुनिया के अधिकांश क्षेत्रों में ओलावृष्टि के खतरे बढ़ जाएंगे। शोधकर्ताओं का कहना है कि लंबे समय तक किए गए विश्लेषणों और सीमित मॉडलिंग से पता चला है कि ओलावृष्टि पर वर्तमान और भविष्य में पडंने वाले जलवायु परिवर्तन के प्रभाव अत्यधिक अनिश्चित हैं।
अध्ययन में कहा गया है कि वायुमंडलीय तत्व ओलों को प्रभावित करते हैं, एक अस्थिर वातावरण में, गिरने वाले ओलों की मात्रा और हवा की गति या ऊंचाई से हवा में अंतर, एक गर्म होती जलवायु के साथ बदल जाएगा। ओलावृष्टि बार-बार होने के बजाय अधिक तीव्र होगी।
डॉ. राउप ने कहा हम जानते है कि जलवायु परिवर्तन के चलते वातावरण में अधिक नमी रहेगी और इससे वातावरण में अधिक अस्थिरता पैदा होती है, इसलिए अस्थिर वातावरण के कारण गरज के साथ तेज बारिश होने, ओले पड़ने की आशंका बनी रहेगी।
उन्होंने कहा कुल मिलाकर हवा के झोंके एक ऐसी प्रक्रिया है जो तूफानों को "व्यवस्थित" करती है और उन्हें और खतरनाक बना देती है। इन सबके घटने की उम्मीद है, लेकिन ओलावृष्टि अन्य दो कारकों से अधिक प्रभावित होगी।
डॉ. राउपच ने कहा वायुमंडल में होने वाले परिवर्तनों की वजह से क्षेत्र में अलग-अलग बदलाव हो सकते हैं, इनके कारण ओले पड़ने में भी अंतर होता है। यही वजह है कि अध्ययनों में यूरोप में ओलावृष्टि बार-बार देखी जा रही है, लेकिन पूर्वी एशिया में ओला पड़ने की आवृत्ति घट रही है।
अध्ययन ने अतीत के अवलोकन से ओलावृष्टि के रुझानों पर ध्यान दिया, जैसे कि मौसम विज्ञान स्टेशन आदि जो ओलों को रिकॉर्ड करते हैं। क्योंकि ओलावृष्टि एक छोटे पैमाने की घटना है, नियमित मौसम के मॉडल के साथ इस मॉडल को जोड़ना मुश्किल है।
डॉ. राउपच ने कहा ओलावृष्टि के आकार को हल करने में सफल होने के लिए एक बहुत ही उच्च-रिज़ॉल्यूशन मॉडल की आवश्यकता होती है। इससे जलवायु परिवर्तन के साथ भविष्य में ओलावृष्टि कैसे बदलेगी, इसे समझा जा सकता है।
ओलावृष्टि और जलवायु परिवर्तन के बारे में अनिश्चितता को कम करने के लिए, शोधकर्ताओं ने लंबे समय तक अवलोकन करने के लिए उपकरणों का सहारा लिया। यह अध्ययन नेचर रिव्यूज अर्थ एंड एनवायरनमेंट में प्रकाशित हुआ है। शोधकर्ताओं ने कहा कि कैनबरा में नेशनल कम्प्यूटेशनल इन्फ्रास्ट्रक्चर जैसी उच्च-प्रदर्शन सुविधाओं पर चलने वाले उच्च-रिज़ॉल्यूशन वाले कंप्यूटर मॉडल का उपयोग आगे के शोध में किया जाना चाहिए।
उन्होंने कहा इन प्रणालियों के ऑनलाइन होने के कारण, हम उच्च रिज़ॉल्यूशन अध्ययन करने में सक्षम हैं जो पहले बहुत अधिक महंगे हुआ करते थे। ये मॉडल यह समझने के लिए बेहद उपयोगी हैं कि ओलावृष्टि, जलवायु परिवर्तन में किस तरह बदलेगी।