डाउन टू अर्थ आवरण कथा: कितने महीने तक रहेगा अल नीनो का असर?

1997 बीसवीं सदी का सबसे भयावह अल नीनो वर्ष था, हालांकि इसने भारतीय माॅनसूनी वर्षा पर अपना प्रभाव बेहद कम डाला
डाउन टू अर्थ आवरण कथा: कितने महीने तक रहेगा अल नीनो का असर?
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अल नीनो के प्रारंभिक जानकारी आपने पहली कड़ी में पढ़ी। आगे पढ़ें दूसरी कड़ी - 

अल नीनो के जलवायु रिकॉर्ड लाखों साल पुराने हैं। बर्फ के टुकड़ों, गहरे समुद्र की मिट्टी, मूंगा, गुफाओं और पेड़ों के छल्लों में इसके प्रमाण पाए गए हैं। अल नीनो एक स्पैनिश भाषा का शब्द है जिसका अर्थ है छोटा लड़का या क्राइस्ट चाइल्ड। इसे पहली बार 1600 में पेरू और इक्वाडोर के पास दक्षिण अमेरिका के तट पर स्पेनिश मछुआरों द्वारा गौर किया गया था। यह नाम इसलिए रखा गया क्योंकि क्रिसमस के आसपास तट पर गर्म पानी होता था।

अमेरिकी एजेंसी नेशनल ओसिएनिक एंड एटमॉस्फेरिक एडमिनिस्ट्रेशन (एनओएए) के मुताबिक, अल नीनो मध्य और पूर्वी उष्णकटिबंधीय प्रशांत महासागर में समुद्र की सतह के तापमान में वृद्धि से जुड़ी एक प्राकृतिक रूप से घटित होने वाली जलवायु प्रवृत्ति है, जो दुनिया भर में मौसम की प्रवृत्ति, समुद्र की स्थिति और समुद्री मत्स्य पालन व कृषि को काफी हद तक प्रभावित कर सकती है। करीब चार दशक से अल नीनो और ला नीना की घोषणा करने वाले एनओएए के वैज्ञानिक बताते हैं कि औसतन हर दो से सात साल में अल नीनो घटित होता है और एक एपिसोड आमतौर पर नौ से 12 महीने तक रहता है। सर्दियों के दौरान अल नीनो का सबसे अधिक प्रभाव पड़ता है।

आमतौर पर सर्दियों में अल नीनो संयुक्त राज्य अमेरिका के उत्तरी भागों में हल्के ठंड वाला मौसम और दक्षिणी संयुक्त राज्य अमेरिका में आर्द्र स्थिति लाता है। ऐसा देखा गया है कि अल नीनो की वजह से माॅनसूनी वर्षा प्रभावित होती है। वहीं, अल नीनो का विपरीत ला नीना है, जो ठंडा चरण है। यह दुनिया भर में मौसम भी बदलता है। इसके अलावा एक तीसरा चरण भी है जो तटस्थ है। इस चरण में भूमध्यरेखीय प्रशांत क्षेत्र का जल न तो असामान्य रूप से गर्म और न ही ठंडा होता है। इन तीनों चरणों को एक साथ ईएनएसओ या अल नीनो-दक्षिणी दोलन कहा जाता है। एनओएए के मुताबिक, अल नीनो की घोषणा के लिए ओसिएनिक नीनो इंडेक्स (ओएनआई) का इस्तेमाल होता है ।

अल नीनो मतलब सूखा !

अमेरिकन मेट्रोलॉजिकल सोसाइटी (एएमएस) जर्नल में 1 जून, 2000 को एक शोध प्रकाशित हुआ जिसका शीर्षक था “1997 : द अल नीनो ऑफ द सेंचुरी एंड द रिस्पाॅन्स ऑफ द इंडियन समर मॉनसून”। इस शोध के लेखक जेएम स्लाइंगो और एच अन्नामलाई थे। यह शोध बताता है, “20वीं सदी में सबसे शक्तिशाली अल नीनो 1997 में उभरकर आया था, जिसके चलते कई मौसम विसंगतियां पैदा हुई थीं। हालांकि भारत में इस तगड़े अल नीनो के बावजूद सामान्य से दो फीसदी अधिक वर्षा हुई थी। शोधपत्र बताता है कि अल नीनो का सबसे प्रमुख प्रभाव वॉकर सर्कुलेशन के बदलाव पर पड़ता है जो भारत में कम माॅनसूनी वर्षा का कारण बनता है।“ वॉकर सर्कुलेशन दरअसल पूर्वी से पश्चिमी प्रशांत महासागर के बीच घटित होने वाला एक महत्वपूर्ण चक्र है। वॉकर सर्कुलेशन के तीव्र होने पर ला नीना और कमजोर होने पर अल नीनो की स्थितियां बनती हैं। हालांकि, शक्तिशाली अल नीनो के बावजूद 1997 में वॉकर सर्कुलेशन पर ज्यादा प्रभाव नहीं पड़ा था। जबकि 1982 और 1987 के अल नीनो ने माॅनसूनी वर्षा पर प्रभाव डाला।

अल नीनो का भारतीय माॅनसून पर पड़ने वाला प्रभाव अभी अध्ययन के दायरे में है। हालांकि, वैज्ञानिकों में एक आम सहमति यह बनी है कि ज्यादातर अल नीनो वर्ष भारत में सूखा लाते हैं। भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (आईएमडी) की ओर से जारी किए गए आंकड़ों के मुताबिक बीती दो सदी में 1902, 1905, 1951, 1965, 1972, 1982, 1987, 2002, 2004, 2009 और 2015 ऐसे वर्ष रहे जब माॅनसूनी वर्षा सामान्य से 10 फीसदी कम रही। वहीं, 1972 में 24 फीसदी, 2002 में 22 फीसदी, 1965 में 19 फीसदी और 2009 में 18 फीसदी सामान्य से कम वर्षा रिकॉर्ड की गई। यह सारे वर्ष अल नीनो वर्ष रहे हैं( देखें, भारतीय माॅनसून और अल नीनो)।



हालांकि, अल नीनो निश्चित रूप से वर्षा पर प्रभाव डालेगा, यह नहीं कहा जा सकता। आईएमडी पुणे के वैज्ञानिक केएस होसालिकर के मुताबिक, ऐसे कई अल नीनो वर्ष हैं जब माॅनसूनी वर्षा बेहतर हुई है। वर्षा आंकड़े यह बताते हैं कि 60-40 फीसदी संभावना रहती है कि अल नीनो भारतीय माॅनसून चक्र को प्रभावित करे। अल नीनो का प्रभाव भारतीय माॅनसून चक्र पर बेहद जटिल है ऐसे में सटीक भविष्यवाणी करना चुनौतीपूर्ण है। माॅनसून और अल नीनो के आंकड़ों के विश्लेषण से पता चलता है कि 1965, 1972, 2002 और 2009 ऐसे अल नीनो वर्ष रहे जब भयंकर सूखा पड़ा। कैनबेरा में ऑस्ट्रेलिएन नेशनल यूनिवर्सिटी की रिसर्च फेलो निकोला माहेर और मानोआ में यूनिवर्सिटी ऑफ हवाई के डिपार्टमेंट ऑफ ओसिएनोग्राफी एंद द इंटरनेशनल पैसिफिक रिसर्च सेंटर विभाग के मालटे स्टुएकर 360 इन्फो के लिए लिखे संयुक्त लेख में बताते हैं, “अनुमान है कि इस सदी के अंत तक कमजोर होने से पहले अल नीनो और ला नीना की घटनाएं मजबूत हो सकती हैं। वहीं लगातार तीन वर्षों से ला नीना जारी है, जिसके बाद अल नीनो की घोषणा की गई है। इससे दुनिया के कई हिस्सों में तापमान बढ़ सकता है।” उष्णकटिबंधीय प्रशांत क्षेत्र में सबसे गर्म अल नीनो समुद्री सतह का तापमान पूर्व से मध्य प्रशांत की ओर अधिक बार बढ़ेगा और अल नीनो के बाद मजबूत और लंबी ला नीना घटनाएं होंगी।

अर्थव्यवस्था पर प्रभाव

अल नीनो की स्थितियों में भयंकर आर्थिक नुकसान का भी सामना करना पड़ता है। 2023 में बन रही अल नीनो की स्थितियों के आधार पर साइंस जर्नल में प्रकाशित एक ताजा शोध में अनुमान लगाया है कि 2029 तक पूरी दुनिया में 3 खरब ( ट्रिलियन) डॉलर का नुकसान हो सकता है। यह आंकड़ा भारतीय जीडीपी के करीब है। इस वक्त भारतीय जीडीपी 3 ट्रिलियन से ज्यादा है, जो 2023 के अंत तक 3.75 ट्रिलियन तक पहुंच सकती है। डार्टमाउथ के पीएचडी स्कॉलर किस्टोफर डब्ल्यू काल्हा डाउन टू अर्थ को बताते हैं कि 1982-83 और 1997-98 में अल नीनो के बाद पांच वर्षों तक वैश्विक अर्थव्यवस्था की रफ्तार सुस्त रही। 1982-83 के बाद पांच वर्षों में 4.1 खरब डॉलर और 1997-98 के पांच वर्षों के बाद बाद 5.7 खरब डॉलर वैश्विक अर्थव्यवस्था को नुकसान पहुंचा। वहीं, भारत में 1982-83 और 1997-98 में अल नीनो की घटना के बाद जीडीपी पर क्रमशः 3 और 1.5 फीसदी का प्रभाव पड़ा था। काल्हा के मुताबिक, “यह दर्शाता है कि अन्य देशों के मुकाबले भारत जलवायु परिवर्तनशीलता के मामले में ज्यादा नाजुक है।”

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