अरविंद यादव 28 जुलाई की दोपहर से ही अपने खेत में काम कर रहे थे। मौसम बिल्कुल साफ था। लेकिन, शाम लगभग पांच बजे अचानक आसमान में बादल घिर आया, तेज बारिश हुई और बिजलियां चमकने लगीं।
बिजली की कड़क इतनी तेज थी कि वह डर गये और तेज कदमों से आधा किलोमीटर दूर अपने घर की तरफ लौटने लगे। उनके आसपास और भी लोग काम कर रहे थे, लेकिन वे लोग वहीं रह गये।
अरविंद कुमार ताड़ के एक पेड़ के पास पहुंचे थे कि जोर की आवाज के साथ वज्रपात (आकाशीय बिजली) हुआ और ताड़ के पेड़ पर ही बिजली गिर पड़ी। वज्रपात का झटका उन्हें भी लगा और गश खाकर वह गिर पड़े। स्थानीय लोगों की मदद से उन्हें अस्पताल ले जाकर इलाज कराया गया।
40 वर्षीय अरविंद कुमार बिहार के नवादा जिले के भौर गांव के रहने वाले हैं। “अभी तो उनकी तबीयत ठीक है, लेकिन शरीर में काफी ज्यादा कमजोरी महसूस हो रही है। वह काफी डरे हुए भी हैं,” अरविंद के भाई महेश्वर यादव ने डाउन टू अर्थ को बताया, “बिजली की कड़क इतनी तेज थी कि हमारे गांव तक साफ आवाज आ रही थी।”
भौर गांव में जिस वक्त वज्रपात हुआ, ठीक उसी वक्त पड़ोस के गांव में भी वज्रपात हुआ, जिसमें एक किसान राजो यादव की मौत हो गई।
स्थानीय मुखिया मुकेश कुमार ने डाउन टू अर्थ से कहा, “वह आर्थिक रूप से गरीब परिवार से आते थे। उनके पास मामूली खेत है। इन्हीं में से एक प्लॉट में वह धान रोप रहे थे। उसी वक्त तेज आवाज के साथ वज्रपात हुआ और उनकी मौत हो गई।”
बिहार में वज्रपात की ये नई घटनाएं नहीं हैं। पिछले दो महीने में दर्जनों बार वज्रपात हुआ है और लोगों की जान गई है।
सरकारी आंकड़े बताते हैं कि इस साल सिर्फ जून और जुलाई में ही वज्रपात से अलग-अलग जिलों में 84 लोगों की मौत हो चुकी है जबकि इस साल जनवरी से लेकर अब तक 170 से ज्यादा लोग वज्रपात की बलि चढ़ चुके हैं। इनमें ज्यादातर किसान थे।
वज्रपात सुरक्षित भारत अभियान और जलवायु रेजिलिएंट अवलोकन प्रणाली संवर्धन परिषद की तरफ से संयुक्त रूप से जारी वार्षिक वज्रपात रिपोर्ट – 2021-22 के अनुसार, साल 2021-2022 में वज्रपात की 269266 घटनाएं हुई हैं, जो साल 2020-2021 के मुकाबले 23.4 प्रतिशत कम है, लेकिन मृत्यु की घटनाएं लगातार बढ़ रही हैं। मसलन अप्रैल 2020 से मार्च 2021 तक बिहार में 401 लोगों की मृत्यु वज्रपात से हुई थी, जो किसी भी राज्य से ज्यादा थी।
वज्रपात से मौतें क्यों बढ़ रहीं
जानकारों का कहना है कि मॉनसून के सीजन में दो तरह के बादल बनते हैं, लेकिन हाल के वर्षों में यह दिख रहा है कि वज्रपात की वजह बनने वाले बादल ज्यादा बनने लगे हैं।
उनके मुताबिक, मॉनसून में दो प्रकार के बादल बना करते हैं। एक बादल वो होता है, जिसकी वजह से हफ्ते व 10 दिनों तक लगातार बारिश हुआ करती है, जिसे ग्रामीण इलाकों में झपसी कहा जाता है। एक बादल वो होता है, जिसकी वजह से एक दो घंटे तक बारिश होती है और फिर आसमान साफ हो जाता है।
साउथ बिहार सेंट्रल यूनिवर्सिटी के स्कूल ऑफ अर्थ, बायोलॉजिकल व एनवायरमेंटल साइंसेज के डीन प्रो. प्रधान पार्थ सारथी ने डाउन टू अर्थ को बताया, "हाल के वर्षों में दिख रहा है कि वो बादल, जिससे लगातार 7-8 दिनों तक बारिश होती थी, उसका बनना कम हो गया है और वैसे बादल ज्यादा बन रहे हैं, जिससे आधे एक घंटे की बारिश होती है। वज्रपात की घटनाएं इन्हीं बादलों से होती हैं। यह बादल देखने में बिल्कुल डार्क होता है और आसमान में देखेंगे तो यह फूलगोभी या टावर की तरह दिखेगा।"
इस तरह के बादल बनने के पीछे प्रो. प्रधान पार्थ सारथी, जमीन के इस्तेमाल के पैटर्न में अंधाधुन बदलाव और शहरीकरण में तेजी को वजह मानते हैं।
उन्होंने कहा, “तेजी से हो रहे शहरीकरण के चलते आबोहवा का संतुलन बिगड़ रहा है। इसे हम सीधे तौर पर जलवायु परिवर्तन का असर तो नहीं कह सकते, लेकिन इसे जलवायु परिवर्तन के संकेत में रूप में देख सकते हैं।”
सरकार का काम कितना प्रभावी
वज्रपात से निबटने के लिए बिहार सरकार सीमित विकल्पों पर ही काम कर रही है। इनमें से एक है अर्ली वार्निंग सिस्टम। आपदा प्रबंधन विभाग के एक अधिकारी बताते हैं कि इस सिस्टम में अमरीकी कंपनी अर्थ नेटवर्क इंक. मदद कर रही है। इसके अंतर्गत अलग-अलग जिलों में लाइटनिंग सेंसर लगाये गये हैं। ये सेंसर संभावित वज्रपात को लेकर सूचना भेजता है, जिन्हें बिहार सरकार अपने मोबाइल ऐप इंद्रवज्र के जरिए लोगों तक पहुंचाती है। इसके अलावा अर्ली वार्मिंग सिस्टम से आये संदेशों को एसएमएस, वाट्सएप और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के माध्यम से लोगों तक पहुंचाया जाता है।
आंकड़े बताते हैं कि अब तक एक लाख से अधिक लोगों ने इंद्रवज्र ऐप को डाउनलोड किया है। लेकिन इस ऐप से लोगों को बहुत शिकायतें हैं। ऐप डाउनलोड करने वाले एक यूजर का कहना है कि यह ऐप काफी धीमा चलता है और वज्रपात की जानकारी लेने के लिए कई तरह के सूचनाओं पर क्लिक करना पड़ता है। कुछ यूजरों का कहना है कि यह ऐप काम ही नहीं करता है।
वहीं, एसएमएस के जरिए पूर्व सूचना को लेकर भी आमलोगों की तरफ सकारात्मक जवाब नहीं आये। नवादा में जिन दो किसानों पर वज्रपात का कहर टूटा, उनमें किसी के पास भी एसएमएस के जरिए वज्रपात होने का पूर्वानुमान नहीं भेजा गया था।
क्या तड़ित चालक से घटेंगी मौतें
पिछले दिनों बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने वज्रपात से लोगों की मौतों पर अंकुश लगाने के लिए एक बैठक की और सभी सरकारी भवनों पर तड़ित चालक (लाइटनिंग कंडक्टर) लगाने का निर्देश दिया। उन्होंने हर सरकारी भवन व स्कूलों पर जल्द से जल्द तड़ित चालक लगाने को कहा।
तड़ित चालक एक उपकरण है, जो वज्रपात होने पर उसे अपने अंदर समाहित कर जमींदोज कर देता है।
हालांकि, जानकारों का कहना है कि तड़ित चालक वज्रपात से होने वाली मौतों को कम करने में बहुत फायदेमंद नहीं होगा।
वज्रपात सुरक्षित भवन अभियान के संयोजक कर्नल संजय श्रीवास्तव ने डाउन टू अर्थ को बताया, “आंकड़ों से साफ पता चलता है कि वज्रपात से मरने वालों में अधिकांश लोग गरीब किसान हैं, जिनकी मौत तब होती है, जब वे खेतों में काम कर रहे होते हैं। ऐसे में सरकारी भवनों और स्कूलों पर तड़ित चालक लगाने से उनकी मौत कैसे रुक सकती है?”
इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ ट्रापिकल मेटरोलॉजी (पुणे) के साइंटिस्ट वी गोपालकृष्णन ने डाउन टू अर्थ से कहा, “सरकारी भवनों व स्कूलों पर लाइटनिंग कंडक्टर लगाने से स्कूल और सरकारी भवन निश्चित तौर पर सुरक्षित हो जाएंगे, लेकिन इससे मृत्यु की घटनाओं में कमी आने की संभावना नहीं है।” “यहां तक कि अगर भवन के ऊपर लाइटनिंग कंडक्टर लगा हुआ है और कोई व्यक्ति भवन के बाहर है, तो वज्रपात होने पर वह व्यक्ति बच नहीं सकता। उसके बचने के लिए उसे भवन के भीतर होना होगा,” उन्होंने कहा।
वी गोपालकृष्णन यह भी बताते हैं कि देश में कहीं भी ऐसा कोई मॉडल अब तक नहीं दिखा है, जिसके बारे में पुख्ता तौर पर कहा जा सके कि उससे वज्रपात से होने वाली मौतें कम हुई हैं। “मुझे लगता है कि वज्रपात से होने वाली मौतों को टालने का एक ही उपाय है कि लोगों को ज्यादा से ज्यादा जागरूक किया जाए और उन तक वज्रपात की सही पूर्व सूचना समय के भीतर पहुंचाई जाए,” उन्होंने कहा।
वहीं, संजय श्रीवास्तव कहते हैं, “लोगों को जागरूक करने और समय के भीतर उन तक सूचनाएं पहुंचाने के साथ साथ यह भी जरूरी है कि हम ऐसी गतिविधियों पर रोक लगाएं, जो जलवायु परिवर्तन का कारण बन रहे हैं।”