राजस्थान के पश्चिमी, पूर्वी और दक्षिणी जिलों में बाढ़ का कहर जारी है। एक समय था जब यहां के लोग बाढ़ जैसे शब्दों से अनजान थे लेकिन अब हालात इसके ठीक उलट हो गए हैं। अब रेगिस्तान में लगभग प्रतिवर्ष ही बाढ़ के हालात पैदा हो रहे हैं।
राज्य का क्लाइमेट एक्शन प्लान आज भी सूखे को ध्यान में रखकर बनाया जाता है। ऐसे में राज्य में बाढ़ के हालात और बदतर होते जा रहे हैं। कहने के लिए तो राजस्थान में पिछले दो दशक में बाढ़ की स्थिति में बहुत अधिक परिवर्तन आए हैं लेकिन पिछले तीन दशक में बाढ़ आने की प्रवृत्ति में तेजी देखी गई है।
इस बार राजस्थान के पश्चिमी, दक्षिणी और पूर्वी जिलों में बाढ़ की स्थिति बनी हुई है। राजस्थान में बढ़ती बाढ़ पर यदि मौसम विभाग द्वारा किए गए पिछले तीन दशक में वर्षा से जुड़े जिला स्तरीय आंकड़ों का विश्लेषण करें तो पाते हैं कि इस दौरान भारी वर्षा दिवस के दिनों की संख्या में तेजी से वृद्धि दर्ज की गई है।
पिछले तीन दशकों के दोरान मौसम विभाग के (वर्ष 1989-2018) वर्षा से जुड़े जिला स्तरीय आकड़ों पर किए गए विश्लेषण में बताया गया है कि दक्षिणी राजस्थान इलाके में “भारी वर्षा दिवस” (एक दिन में 6.5 सेंटीमीटर से ज्यादा बारिश) प्रभावित इलाकों में तेजी से बढ़त दर्ज हुई है।
विश्लेषण में कहा गया है कि मानसून में आ रहे इस बदलाव के कारण जहां मानसून के दौरान बारिश वाले दिनों में कमी आ रही है, वहीं भारी वर्षा वाले दिनों की संख्या बढ़ रही है। यही कारण है कि पिछले कुछ सालों में एकाएक मूसलाधार बारिश से बाढ़ से संबंधित आपदाओं का सिलसिला जोर पकड़ता जा रहा है। यही नहीं भारतीय महासागर से सटे इलाकों में गंभीर चक्रवाती तूफानों की संख्या में भी कुछ सालों के दौरान काफी इजाफा हुआ है।
वहीं दूसरी ओर राजस्थान विश्व विद्यालय के इंदिरा गांधी पर्यावरण विभाग के पूर्व अध्यक्ष टीआई खान ने अपने विश्लेषण में कहा है कि भारत में हर साल होने वाली मानसूनी बारिश की मात्रा में तो वार्षिक रूप से कोई खास फर्क नहीं आया है, लेकिन मानसून के स्वरूप में फर्क जरूर आया है। भारत के वार्षिक वर्षा में जून, जुलाई और सितंबर महीनों में मॉनसूनी बारिश का योगदान घट रहा है जबकि कुछ क्षेत्रों में अगस्त की वर्षा का योगदान बढ़ रहा है।
यहां तक कि भारतीय मौसम विभाग के एक अन्य विश्लेषण में भी कहा गया है कि पिछले एक दशक में राजस्थान विशेषकर पश्चिमी राजस्थान जो कि प्रमुखत: मरुस्थलीय है, में मौसमी और आवधिक बरसात अधिक दर्ज हुई है। पिछले दस सालों में केवल दो ऐसे साल निकले जब मानसून के दौरान औसत से कम बरसात हुई। पश्चिमी राजस्थान में 2010 के बाद से औसत बारिश का सामान्य स्तर 32 फीसदी बढ़ा है जबकि पूर्वी राजस्थान में यह वृद्धि 14 फीसदी रही है।
विश्लेषण में बताया गया कि अकेले 2016 में पश्चिमी राजस्थान के मरुस्थलीय इलाकों में 18 बार बरसात हुई, जिनमें एक दिन की औसत बारिश 120 मिमी को पार कर चुकी थी। जबकि पूर्वी राजस्थान में 126 बार बरसात हुई। हाल के सालों में अधिक बरसात की वजह से ही राजस्थान में बाढ़ के हालात बने हैं।
ध्यान रहे कि पिछले एक दशक में राजस्थान में बाढ़ आम हो चुकी है। इस लिहाज से अहम मोड़ 2006 में बाड़मेर में बाढ़ का आना रहा। इस मरुस्थलीय जिले में अगस्त 2006 के अंतिम हफ्ते में 750 मिमी बरसात हुई, जो कि उसकी औसत वार्षिक बरसात का पांच गुना थी। भयंकर बाढ़ के कारण 300 से अधिक मौतें हुईं। इस बाढ़ को राजस्थान के 200 साल के इतिहास में सबसे खतरनाक बाढ़ बताया गया।
मैक्स प्लैक संस्थान के 2013 के शोध में संस्थान ने उच्च रिजॉल्यूशन वाले मल्टीमॉडल का उपयोग किया था ताकि हाल के सालों में जलवायु परिवर्तन के प्रभाव को स्पष्ट और अवलोकन को परिभाषित किया जा सके। इस अध्ययन का अनुमान है कि 2020-2049 और 1970-1999 के औसत स्तर की तुलना में पश्चिम राजस्थान में 20-35 फीसदी और पूर्वी राजस्थान में 5-20 फीसदी बढ़ोतरी होगी।
जबकि स्विस एजेंसी फॉर डेवेलपमेंट एंड कोआपरेशन की 2009 की रिपोर्ट के अनुसार भविष्य में राजस्थान में सघन बारिश का घनत्व और आवृत्ति बढ़ेगी। वर्ष 2071-2100 के बीच राज्य में एक दिनी बारिश अधिकतम 20 मिमी और पांच दिनी बरसात 30 मिमी तक बढ़ने की आशंका है।
यद्यपि यह अनुमान और वार्षिक रूप से मरुस्थल में बाढ़ आने से यह संकेत स्पष्ट है कि राज्य भारी बरसात के लिहाज से किस दिशा में बढ़ रहा है। लेकिन इस क्षेत्र में गंभीर और गहन शोध और अनुसंधान की फौरी जरूरत है। वहीं दी जर्नल आफ जिओफिजिकल रिसर्च में 2009 में प्रकाशित अध्ययन के अनुसार 1871 से 2000 तक के दौरान किए गए शोध में भी बरसात के वार्षिक और मौसमी औसत में गिरावट की गौण प्रवृत्ति थी।
इस शोधपत्र में कहा गया था कि राजस्थान में जून और जुलाई में ही अधिक बरसात की प्रवृत्ति है। 1970 तक केवल जून में ही अधिक बरसात के संकेत थे। हाल के वर्षों का निचोड़ यह इशारा देता है कि बारिश की प्रकृति बदली है जो जून के बजाए जुलाई और अगस्त पर निर्भर हुई है। इसे संभावित जलवायु परिवर्तन माना जा सकता है, जिससे पूर्वी और पश्चिमी राजस्थान में भारी बरसात और बाढ़ आने लगी है।