उत्तरकाशी में समुद्र तल से 5006 मीटर ऊंचाई पर स्थित डोकरानी बामक ग्लेशियर क्षेत्र में द्रौपदी का डांडा-2 पर्वत चोटी पर 4 अक्टूबर की सुबह हिमस्खलन (एवलांच) हुआ। नेहरू पर्वतारोहण संस्थान के मुताबिक द्रौपदी चोटी पर पर्वतारोहण के लिए गया 34 प्रशिक्षुओं और 7 प्रशिक्षकों का एक दल आज वापस लौट रहा था। वापसी में यह दल हिमस्खलन की चपेट में आ गया।
उत्तराखंड पुलिस ने मंगलवार शाम करीब 6 बजे जानकारी दी कि इस दल के 17 लोग संभवत: सुरक्षित हैं। 4 शव बरामद कर लिए गए हैं। निम की टीम के साथ जिला प्रशासन, एनडीआरएफ, एसीआरएफ, सेना और आईटीबीपी के जवान राहत एवं बचाव कार्य में जुटे हुए हैं। हिमपात के चलते रेस्क्यू कार्य बाधित हो रहा है।
इससे पहले केदारनाथ में 9 दिनों के भीतर तीन हिमस्खलन दर्ज किए गए। केदारनाथ मंदिर परिसर से करीब 5 किलोमीटर ऊपर चौराबड़ी ग्लेशियर के पास ये हिमस्खलन हुए। 22 सितंबर, 26 सितंबर और फिर 2 अक्टूबर को हिमस्खलन आया।
देहरादून स्थित वाडिया हिमालय भूविज्ञान संस्थान के वैज्ञानिक डॉ मनीष मेहता इन हिमस्खलन को सामान्य घटना बताते हैं। उनके मुताबिक हिमस्खलन आने का मतलब है कि पहाड़ी की वहनीय क्षमता से अधिक बर्फ जमा हो गई है। क्षमता से अतिरिक्त बर्फ फिसलकर गिर जाती है। जिसे हम हिमस्खलन कहते हैं।
वह इसे “पाउडर अवलांच” यानी बर्फ से ढंके पर्वतों पर जमा भुरभुरी बर्फ का गिरना बताते हैं। उनके मुताबिक ग्लेशियर की सेहत के लिहाज से यह अच्छी खबर है और उस क्षेत्र में अच्छी बर्फ़बारी का संकेत है।
वाडिया संस्थान से सेवानिवृत्त ग्लेशियोलॉजिस्ट डॉ डीपी डोभाल भी उत्तरकाशी और केदारनाथ क्षेत्र में आए हिमस्खलन को सामान्य प्राकृतिक घटना बताते हैं। डॉ मेहता की तरह वह भी मानते हैं कि इस बार मॉनसून में बर्फबारी ज्यादा हुई है। “ऊंचाई वाले क्षेत्रों में अतिरिक्त बर्फ गिरी है। बर्फबारी की मात्रा और बर्फ का वजन हिमस्खलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। बर्फबारी के चलते जहां पहाड़ पर ढलान 40-45 डिग्री से ऊपर हो जाए और बर्फ का जमाव दो-ढाई फीट हो जाए तो वजन और गुरुत्वाकर्षण के चलते वह हिस्सा नीचे खिसक जाता है”।
“ये बर्फ एक दूसरे जुड़ी होती है और पूरी की पूरी सतह नीचे गिर जाती है जिससे हिमस्खलन होता है। केदारनाथ में पिछले हफ्ते पाउडर अवलांच आए। इसमें ज्यादातर ताजा बर्फ ही होती है”। डॉ डोभाल बताते हैं कि पिछले वर्ष फरवरी में चमोली में हुए हिमस्खलन में जमी हुई बर्फ का एक भारी हिस्सा टूटकर नीचे गिरा था। जो अपने साथ काफी मलबा लेते हुए नीचे आया। ये दोनों हिमस्खलन एक-दूसरे से अलग हैं।
उत्तराखंड में सितंबर के पहले हफ्ते से मानसून सिमटने लगता है। लेकिन इस बार सितंबर के आखिरी हफ्ते में देशभर में सामान्य से अधिक बारिश दर्ज की गई। उत्तराखंड में भी आखिरी हफ्ते में सामान्य से 20-59% तक अधिक बारिश रिकॉर्ड हुई। जबकि पूरे सितंबर महीने में राज्य में सामान्य 182.4 मिलीमीटर से करीब 47% अधिक 267.6% बारिश हुई। वहीं, मानसून सीजन में 1 जून से 30 सितंबर तक राज्य में बारिश सामान्य रही है।
वाडिया संस्थान के वैज्ञानिक आज के हिमस्खलन से जुड़ी ज्यादा जानकारी जुटाने के लिए अध्ययन कर रहे हैं। वहीं मौसम विभाग ने 5 और 8 अक्टूबर तक राज्य में भारी बारिश का अलर्ट जारी किया है। 5 अक्टूबर को यलो अलर्ट है। जबकि 6 को ऑरेंज और 7 को अत्यधिक भारी बारिश का रेड अलर्ट जारी किया है। भूस्खलन और नदियों का जलस्तर बढ़ने की आशंका जतायी जा रही है।
उधर, लगातार हिमपात के चलते उत्तरकाशी में द्रौपदी पीक पर फंसे लोगों को रेस्क्यू करने में कठिनाई आ रही है।