दुनियाभर में 200 करोड़ से ज्यादा लोग साफ पानी और स्वच्छता जैसी बुनियादी सुविधाओं से वंचित हैं। 19 मार्च को स्विट्जरलैंड के जिनेवा में जारी होने वाली यूनाइटेड नेशंस वर्ल्ड वाटर डेवलपमेंट रिपोर्ट “लीविंग नो वन बिहाइंड” में ऐसे कई चिंताजनक पहलुओं पर रोशनी डाली गई है।
संयुक्त राष्ट्र की आमसभा ने 2010 में अपनाए गए प्रस्ताव में पीने के साफ और सुरक्षित पानी व स्वच्छता को मानवाधिकार का दर्जा दिया गया था। 2015 में स्वच्छता को विशिष्ट मानवाधिकार के तौर पर मान्यता भी मिली थी। ये अधिकार राज्यों को बिना भेदभाव पानी तक वैश्विक पहुंच सुनिश्चित करने की दिशा में काम करने का बाध्य करते हैं। सतत विकास का लक्ष्य भी 2030 तक सभी को पानी उपलब्ध कराने और स्वच्छता सुनिश्चित करने को कहता है।
पिछले 15 सालों में इस दिशा में कार्य हुआ है लेकिन यह लक्ष्य दुनियाभर में पहुंच से दूर बना हुआ है। साल 2015 में दस में तीन (210 करोड़) लोगों के पास पीने का साफ और सुरक्षित पानी नहीं था। वहीं दस में छह लोग (450 करोड़) स्वच्छता से संबंधित सुविधाओं से वंचित थे। यूनेस्को के महानिदेशक आद्रे अजूलाय मानते हैं कि सम्मान से जिंदगी जीने के लिए पानी का अधिकार महत्वपूर्ण है लेकिन अब भी करोड़ों लोग इससे वंचित हैं।
यून वॉटर एवं इंटरनेशनल फंड फॉर एग्रीकल्चर डेवलपमेंट के अध्यक्ष गिलबर्ट एफ हांग्बो के अनुसार, “आंकड़े खुद बोलते हैं। रिपोर्ट बताती है कि प्राकृतिक पर्यावरण के क्षरण और जल संसाधनों पर दबाव इसी तरह बना रहा तो 2050 तक विश्व का 45 प्रतिशत सकल घरेलू उत्पाद और 40 प्रतिशत खाद्यान्न पर खतरा मंडराएगा। गरीब और वंचित तबके इससे बुरी तरह प्रभावित होंगे।”
अफ्रीका के लोगों की हालत बुरी
पीने के साफ पानी के मामले में अफ्रीका के लोगों की स्थिति सबसे दयनीय है। दुनियाभर में जितने लोग असुरक्षित पानी पीते हैं, उनमें आधे अफ्रीका में रहते हैं। सब सहारा अफ्रीका में केवल 24 प्रतिशत लोगों के पास पीने का सुरक्षित पानी उपलब्ध है और केवल 28 प्रतिशत लोग स्वच्छता से संबंधित सुविधाएं हैं। सब सहारा अफ्रीका के आधे लोग असुरक्षित स्रोतों से पानी पीते हैं और यहां पानी का इंतजाम करने की जिम्मेदारी महिलाओं और लड़कियों की होती है। उन्हें हर बार पानी ढोकर लाने में 30 मिनट से ज्यादा वक्त लगता है। असुरक्षित पानी पीने के कारण यहां के लोग स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं और शिक्षा के अभाव से जूझ रहे हैं।
शरणार्थियों से सामने बड़ा संकट
दुनियाभर में शरणार्थियों और देश के भीतर विस्थापित लोगों तक साफ पानी और स्वच्छता की पहुंच बड़ी चुनौती है। 2017 में 6.85 करोड़ लोगों का अपना घर छोड़ना पड़ा। आमतौर पर विस्थापितों का औसत 2.53 करोड़ होता है। अब लोग प्राकृतिक आपदाओं के कारण बड़ी संख्या में विस्थापित हो रहे हैं। यह विस्थापन 1970 के दशक के मुकाबले दोगुणा है। भविष्य में जलवायु परिवर्तन के कारण विस्थापितों की संख्या बढ़ने का अनुमान है। रिपोर्ट बताती है कि जलापूर्ति और स्वच्छता पर निवेश की सख्त जरूरत है।