मध्य प्रदेश के छतरपुर जिले के भोयरा पंचायत का चौधरीखेड़ा गांव कई दशकों तक एक ऐसे अंधविश्वास में जकड़ा रहा, जिसने इस सूखेग्रस्त इलाके में जल संकट और गहरा कर दिया। दरअसल इस गांव में बने एक चंदेलकालीन तालाब (बाबा तालाब) को कोई ठीक करने का प्रयास नहीं करता था क्योंकि ऐसी मान्यता थी कि जो भी इस तालाब को ठीक कराएगा, उसके वंश का समूल नाश हो जाएगा। इस डर को बल तब और मिल गया जब 30-40 साल पहले गांव के एक शख्स ने इसे ठीक करने का प्रसास किया तो उसके दो बेटों की मृत्यु हो गई।
इस घटना के बाद किसी की हिम्मत नहीं हुई कि गांव में जल संकट का पर्याय बने इस तालाब को ठीक कर सके। फिर साल 2019 आया और इसी साल गांव की जल सहेली बनी गंगाबाई राजपूत ने वह कर दिखाया जो कभी नहीं हुआ। जल सहेली बुंदेलखंड के गैर लाभकारी संगठन परमार्थ समाजसेवी संस्थान द्वारा गठित महिलाओं का कैडर है जो क्षेत्र में पानी के संरक्षण और संवर्धन के लिए समर्पित है।
गंगाबाई ने निश्चय किया कि तालाब को ठीक किया जाएगा, चाहे कुछ भी हो पाए। उन्होंने लोगों को समझाया कि बिना पानी के भी तो मर ही रहे हैं। अगर तालाब ठीक हो गया और पानी उपलब्धता सुनिश्चित हो गई तो ग्रामीणों की दशा बदल जाएगी।
शुरू में जब उन्होंने अपने इस फैसले से गांव वालों को अवगत कराया तो लोगों ने अंधविश्वास के कारण उनका साथ देने से इनकार कर दिया। गांव के पुरुष मुख्य रूप से उनके विरोध में थे। गंगाबाई को परिवार का भी साथ नहीं मिला। लेकिन गंगाबाई ने जल संकट से दंश को झेल रही कुछ महिलाओं को इस काम के लिए राजी कर लिया और मौके पर जाकर खुद पहला फावड़ा चलाया।
एक बेटे और एक बेटी की मां गंगाबाई ने डाउन टू अर्थ को बताया कि तालाब का बंधा फूटा हुआ था, जिससे उसमें पानी नहीं रुकता था। वह बताती हैं कि अंधविश्वास के कारण सरकार ने भी कभी तालाब की मरम्मत नहीं कराई। ऐसे में पानी के लिए सबसे अधिक परेशानी का सामना करने वाली महिलाओं को आगे आने की जरूरत थी। वह बताती हैं कि जब उनके समझाने पर महिलाओं ने आगे बढ़कर इस काम को शुरू किया और कुछ महीनों तक कोई अनहोनी नहीं हुई तो पुरुषों को लगा कि वह अब तक बेवजह डर रहे थे। फिर उन्होंने भी आगे बढ़कर श्रमदान कर अपना योगदान दिया।
गंगाबाई के अनुसार, 2020 की बारिश के बाद जब तालाब में पानी भरा तो पूरा गांव खुश हो गया और उनकी जमकर वाहवाही की। वह बताती हैं कि तालाब में पानी रुकने से गांव के जलस्तर में सुधार हुआ और गांव से होने वाले पलायन में कमी आई। इस तालाब में अब मछलीपालन हो रहा है और यह स्थानीय लोगों की आमदनी बढ़ाने का अहम जरिया बन गया है। गंगाबाई को तालाब से जुड़ा अंधविश्वास तोड़ने के लिए 2023 में राष्ट्रपति पुरस्कार मिला, जिससे उनका मनोबल और बढ़ गया।