क्या अब नहीं सुनाई देंगे राजस्थान में सूखे और बारिश के गीत?

शुष्क प्रदेश राजस्थान में बारिश के लिए तरसने वाली लोकोक्तियां व गीत बेहद प्रचलित थे, लेकिन अब हालात बदल रहे हैं
जैसलमेर जिले में पोकरण के पास भरा बरसात का पानी। फोटो- अमरपाल वर्मा
जैसलमेर जिले में पोकरण के पास भरा बरसात का पानी। फोटो- अमरपाल वर्मा
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सौ सांडीया सौ करहलां पूत निपूती होय

मेवड़ला बूठा भला होणी होय सो होय

अर्थात चाहे जो हो जाए मगर बरखा का तो हमेशा स्वागत ही होना चाहिए। चाहे बरखा की वजह से सौ ऊंट और ऊंटनियां खत्म हो जाएं। चाहे मां के समस्त पुत्र ही क्यों न काल कवलित क्यों हो जाएं। रेगिस्तान में ऊंट से कीमती सम्पत्ति भला क्या होगी। खेती, आवागमन, दूध, ऊन, ईंधन सब कुछ तो इसी पर निर्भर है। फिर भी लोक जीवन की एक कहावत में वर्षा के आगे सौ ऊंट-ऊंटनियों की अहमियत भी कुछ नहीं है।

वैसे तो कमोबेश समूचा राजस्थान ही बारिश को तरसता था लेकिन राज्य के थार रेगिस्तान में बरसात रूपी रहमत कम ही बरसती थी। धोरां री धरती पर बरखा कितनी दुर्लभ थी, इसका अहसास राजस्थान के लोक जीवन प्रचलित कहावतों से सहज ही हो जाता है। बानगी देखिए:

एक मेह एक मेह करता, बडेरा ही मर गया

अर्थात एक बारिश की कामना करते-करते बुजुर्ग स्वर्ग सिधार गया, लेकिन मेह नहीं बरसे।

रेत के धोरों पर बैठे प्यासे लोगों के दिलो दिमाग मेंं बरसात किस कदर छाई रहती थी, इसका अंदाजा लोकोक्तियों से लग जाता है। वर्षा कब होगी, कहां होगी, कितनी होगी, अनुभवी बडेरों ने इस ज्ञान को लोकोक्तियों की माला में पिरोकर आने वाली पीढिय़ों के लिए सहेज कर रख दिया।

उनकी ये कहावतें सदियों तक लोगों के लिए मौसम की भविष्यवाणी का काम  करती रही हैं। लोक मेंं प्रचलित एक कहावत ‘अम्बर राच्यो मेह माच्यो’ का अर्थ है-लाल हुआ आसमां बरसात आने का संकेत देता है। एक अन्य कहावत में ऊंटनी को होने वाले बरखा के पूर्वाभास का जिक्र है। देखिए:

आगम सूझे सांढणी दौड़े थला अपार

पग पटकै बैसे नहीं, जद मेह आवणहार

यानी ऊंटनी एक जगह टिक कर बैठने के बजाय अपने पांव धरती पर पटकती रहे, इधर-उधर दौड़ती रहे तो बरसात का आना तय मानना चाहिए।

इन कहावतों मेंं आसमान, आंधी, नारी, धरती, पशु, कीड़ों, पक्षियों, चन्द्रमा, सूरज और तारों आदि का जिक्र आता है। एक कहावत जिसमेंं बादलों की तुलना तीतर के पंखों से की गई है, इस प्रकार है:

तीतर पंखी बादली, विधवा काजळ रेख

बा बरसै बा घर करै, ई में मीन न मेख

इस कहावत का अर्थ है कि जिस तरह किसी विधवा औरत की आंखों मेंं काजल की रेखा उसके नया घर बसाने की तैयारियों की सूचक है, उसी प्रकार अगर बादलों का रंग तीतर के पंखों के समान लगे तो उनका बरसना लाजिमी है। यह तय मान लेना चाहिए।

इन लोकोक्तियों मेंं न केवल वर्षा के आगमन का जिक्र है, बल्कि उनमेंं बरसात की रुत के समापन के संकेत भी दिए गए हैं। एक बानगी देखिए:

 छिण छाया छिण तावड़ो, बिरखा रुत कै माय

नित जानो बरसा का जोर,

इण लखणा से जाणज्यो, बिरखा गई बिलाय।

यानी अगर वर्षा काल में एक पल में धूप निकल जाए और दूसरे ही पहल छाया हो जाए तो बरसात की रुत का प्रस्थान मान लेना चाहिए।

अब बदल रहे हालात

लेकिन जिस इलाके में लोग बरखा को तरसते थे और समूचा ज्ञान रेतीले टीलों, भीषण गर्मी और लू तथा अकाल से समन्वय बैठा कर जीवन के निर्वाह तक सीमित था, वहां बदले हालात ने लोगों को असमंजस मेंं डाल दिया है।

सूरज की झुलसा देने वाली किरणों का प्रकोप कैसे झेलें, यह ज्ञान तो थार के लोगों के पास पीढ़ी-दर-पीढ़ी पारंपरिक रूप से आ जाता है मगर पानी से कैसे निपटें, इस बारे में उन्हें नहीं पता है।

उन्होंने तो सदियों से यही सीखा है-पानी बेशकीमती है, जहां भी मिले सहेज कर रखना है। उनके लिए पानी का न मिलना मुसीबत का सबब रहा है। पेयजल का अभाव झेलते रहे स्थानीय बाशिंदों को हमेशा ज्यादा नीर की चाह तो रही है मगर इतने ज्यादा की तो उन्होंने कभी चाह ही नहीं की, जितना बादल बरसा रहे हैं। अब इतना मेह बरसता है कि सहरा समंदर सा दिखने लगता है।

पहले जहां बरखा होती नहीं थी, अब रुकने का नाम नहीं लेती है। बहुत कुछ बदल गया है। रेगिस्तान में बाढ़ सामान्य बात होने लगी है। जो सरकार पहले थार के लिए अकाल प्रबंधन के उपाय सोचती थी, वह अब बाढ़ से बचाव के लिए एहतियाती उपाय करने मेंं जुटी नजर आती है।

राजस्थान स्टेट फ्लड एक्शन प्लान मेंं जोधपुर, पाली, जालोर, बाड़मेर जिलों का नाम भी बाढ़ की आशंका वाले जिलों मेंं शामिल किया जाने लगा है। यह बिना वजह नहीं है।

बाड़मेर मेंं लोग 21 अगस्त 2006 की उस रात को आज तक नहीं भूल पाए हैं, जब मेह काल बनकर बरसा। कवास में बाढ़ में एक सौ लोग काल कवलित हो गए। इसके बाद 2015, 2016-17, 2022 और अब 2024 में भी मरूस्थलीय इलाकों ने अतिवृष्टि का सामना किया है।

साल 2024 की अगर बात करें तो एक जून से 30 सितंबर के बीच मॉनसून सीजन में पूरे राजस्थान में सामान्य से 56 फीसदी अधिक बारिश हुई। इस साल 678.4 मिलीमीटर बारिश रिकॉर्ड की गई। इससे पहले साल 1917 में 844.2 मिमी और 1908 में 682.2 मिमी बारिश रिकॉर्ड की जा चुकी है। खास बात यह है कि थार मरुस्थल वाले पश्चिमी राजस्थान में सामान्य से 71 प्रतिशत अधिक बारिश हुई है।

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