“अपने गांव को पानीदार गांव बना कर रहेंगे”

विश्व जल दिवस पर आयोजित वेबिनार में देशभर के जलयोद्धाओं का ऐलान
डाउन टू अर्थ ने मध्य प्रदेश के टीकमगढ़ जिले के नादिया गांव का दौरा किया।
डाउन टू अर्थ ने मध्य प्रदेश के टीकमगढ़ जिले के नादिया गांव का दौरा किया।
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“हम अपने गांव को पानीदार बना कर रहेंगे, भले इसके लिए हमें कितनी ही मेहनत क्यों न करनी पड़े।” यह ऐलान उत्तर प्रदेश के टीकमगढ़ जिले के नादिया गांव के जल योद्धा रूप सिंह के हैं। वह कहते हैं कि मनरेगा ने हमारे सूखे इलाके में पानी ला दिया यानी हमें जीवन दे दिया।

मनरेगा ने “जल ही जीवन है” की कहावत को न केवल जमीन पर उतारा बल्कि भविष्य में भी गांव में रोजगार के अवसर बनते रहें, इसकी भी व्यवस्था कर दी। रूप सिंह बताते हैं कि मनरेगा शुरू होने के पहले बड़ी संख्या में लोग गांव छोड़ पलायन कर जाते थे लेकिन अब घर पर ही रह कर ही खेतीबाड़ी कर रहे हैं। यह हमारे गांव का अब तक सबसे बड़ा परिवर्तन है।

वह बताते हैं कि अब तक गांव में 55 तलैयों का निर्माण किया जा चुका है और भविष्य में इसे और तेजी से बढ़ाना है। हर हाल में भविष्य में अपने गांव को पानीदार बना कर छोड़ेंगे।

रूप सिंह विश्व जल दिवस के मौके पर सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरमेंट (सीएसई) और डाउन टू अर्थ द्वारा आयोजित वेबिनार में अपनी बात रख रहे थे। उन्होंने सीएसई की महानिदेशक सुनीता नारायण को इस बात के लिए आश्वस्त किया है कि हम अपने गांव को पानीदार बना कर रहेंगे।

वहीं केरल के पुकुटुकाबू गांव की जल योद्धा विषमाया सुकुमार ने मनरेगा के तहत अपने गांव में हुए जल संरक्षण कार्यों के बारे में बताया कि महिलाओं ने इस गांव में पूरी की पूरी एक नदी को ही जीवित कर दिखाया। वह बतातीं हैं कि उनके गांव में कुएं खोदने का सबसे बड़ा समूह महिलाओं का ही है और इनका लक्ष्य है कि गांव में दो सौ कुंएं खोदने की योजना है।

गांव में सैकड़ों जल संरक्षण कार्यों का निर्माण महिला समूहों द्वारा किया गया है। गांव की महिला समूहों ने केवल एक नदी को ही जीवित नहीं किया, बल्कि कई जल धाराओं को भी जीवित किया। 

अकेले केरल ही नहीं, उत्तर प्रदेश के जालौन जिले के हिम्मतपुरा के जल योद्धा राजेश कुमार ने बताया कि पिछले डेढ़ दशक में हमारे गांव ने जलस्तर के मामले में आशातीत सफलता अर्जित की है।

ओडिसा के बालांगीर जिले के भुआंपाडा गांव के सरपंच ने वेबिनार में बताया कि पिछले सालों में मनरेगा के तहत हुए कार्यों के चलते जल स्तर में बढ़ोतरी दर्ज हुई है लेकिन हम इसे और भी अधिक बढ़ाना चाहते हैं।

उन्होंने बताया कि हमारा गांव 2006 में सबसे अधिक पलायन करने वालों गांवों की श्रेणी में आता था। अब हालात पूरी तरह से बदल चुके हैं। यहां तक कि महामारी के दौर में अपने गांव लौटने वाले सभी श्रमिकों को रोजगार मिला। इस गांव में 2021 मार्च तक पांच हजार से अधिक खेत तालबों का निर्माण किया जा चुका है। वहीं इस गांव के लोग सामुदायिक तालाब के लिए अपनी ओर से जमीनें भी दान कर रहे हैं।    

वेबिनार में डाउन टू अर्थ द्वारा तैयार की गई जमीनी रिपोर्ट के सभी बिन्दुओं पर चर्चा की गई है, जिसमें बताया गया है कि गांवों ने कैसे मनरेगा की मदद से खुद को सुखा प्रभावित से समृद्धि की यात्रा तय की। ध्यान रहे कि इस वेबिनार में उन गांवों के जलयोद्धा यानी वे प्रतिनिधि शामिल हुए, जिन्होंने अपने गांवों को सूखे से ऊबार कर समृद्ध बनाने में बड़ी भूमिका निभाई।

वेबिनार में शामिल डाउन टू अर्थ के प्रबंध संपादक रिचर्ड महापात्रा ने कहा, “डाउन टू अर्थ के 14 पत्रकार कोविड-19 महामारी के बीच देश के दूरदराज के इलाकों में गये और जानने की कोशिश की कि देश के ग्रामीण इलाकों में इस एक्ट के क्या मायने हैं।”

रिपोर्ट के सिलसिले में पत्रकारों ने भारत के हिन्दी भाषी प्रदेशों के सात जिलों के गांवों का दौरा किया, जिनमें कैमूर (बिहार) जिले का जमुनवा, सिरसा जिले का भरोखां, पाकुड़ (झारखंड) का झेनागरिया, मध्यप्रदेश के टिकमगढ़ जिले का नदिया गांव व सीधी जिले का बरमनी गांव, डुंगरपुर (राजस्थान) का बटका फला और जालौन (उत्तर प्रदेश) का हिम्मतपुरा गांव शामिल हैं।

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