अगर पर्यावरणविद् सुनील अग्रवाल एनआरआई कॉप्लेक्स, नेरुल, नवी मुंबई की आद्रभूमि (वेटलैंड) को बचाने के प्रयास नहीं करते तो 80 हेक्टेयर में फैले इस वेटलैंड पर एक गोल्फ कोर्स होता और हजारों स्थानीय और प्रवासी पक्षियों के आशियाने हमेशा-हमेशा के लिए दफन हो जाते, मैंग्रोव की हजारों प्रजातियां नष्ट हो जातीं और फिर नवी मुंबई को बाढ़ से बचाने के लिए यहां कुछ नही होता।
कुछ ऐसे ही प्रयास स्वयंसेवी संस्था ‘श्री एकवीरा आई प्रतिष्ठान’ के निदेशक और पर्यावरणविद् नंदकुमार पवार ने कोस्टल टाउन, ऊरन, नवी मुंबई में बसे पंजे वेटलैंड को बचाने के लिए किया। जहां नवी मुंबई स्पेशल इकॉनोमिक जोन (एनएमएसईजेड) बनने जा रहा था। हालांकि उनकी अनेकों शिकायतों और जनहित याचिका के बाद वहां एसईजेड का काम तो शुरू नही हो सका, लेकिन उस वेटलैंड को बर्बाद करने की पूरी कोशिश आज भी की जा रही है।
वर्ष 2016 में सुनील अग्रवाल अपने परिवार के साथ जब एनआरआई कॉम्प्लेक्स में रहने आए जहां से वेटलैंड साफ नजर आता था। एक दिन उन्होंने देखा कि कुछ लोग वेटलैंड में लगे मैंग्रोव (ऐसे वृक्ष जो मीठे और खारे पानी के मिश्रण में उगते हैं) को उखाड़ कर जला रहे थे। उन्होंने तुरंत इस बात की शिकायत पुलिस को की और उसके बाद से आज तक उस वेटलैंड को बचाना उनका लक्ष्य बन चुका है।
सुनील कहते हैं, “इस वेटलैंड को बचाने के लिए हमें कई बार हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट तक जाना पड़ा और उसके सकारात्मक परिणाम हुए। आज इस वेटलैंड को पर्यावरण एवं वन मंत्रालय द्वारा कोस्टल रेगूलेशन जोन (सीआरजेड) घोषित कर दिया गया है और सीआरजेड होने के कारण सुप्रीम कोर्ट ने भी उस जगह पर किसी भी तरह के निर्माण के लिए रोक लगाई हुई है, लेकिन सिटी एंड इंडस्ट्रियल डवलपमेंट कॉर्पोरेशन (सिडको) द्वारा इस वेटलैंड को रेजीडेंशियल जोन बनाने के लिए लगातार प्रयास किए जा रहे हैं। हालांकि हम ऐसा नही होने देंगे। अगर ऐसा कुछ होता है तो हमें फिर से एक बार कोर्ट का दरवाजा खटखटाना पड़ेगा। अपने पर्यावरण को बचाने के लिए हमें कितनी भी लंबी लड़ाई लड़नी पड़े हम उससे पीछे नही हटेंगे”।
हजारों मछुआरों की जीविका का साधन और लाखों स्थानीय और प्रवासी पक्षियों का ठिकाना पंजे वेटलैंड को बचाने के लिए कुछ ऐसा ही प्रण नंद कुमार पवार ने भी लिया है। उनका यह संघर्ष वर्ष 2018 से शुरू हुई था जो आज तक जारी है।
नंदकुमार कहते हैं, “289 हेक्टेयर में फैला पंजे वेटलैंड मैंग्रोव की उपस्थिति के कारण एक इको सेंसिटिव एरिया है जो सीआरजेड1 में आता है, जहां किसी भी तरह की गतविधियां नहीं की जा सकती है। बावजूद इसके उस वेटलैंड पर कंक्रीट की दीवार खड़ी कर दी गई है, स्लूस गेट लगा कर समुद्र के पानी को रोका जा रहा है, जिसके कारण वहां मैंग्रोव सूखने लगे हैं। मछुआरों को वहां मछली पकड़ने नही जाने दिया जा रहा है जो उनकी जीविका का एकमात्र साधन है। इस पर हमारी शिकायत के बाद महाराष्ट्र वन विभाग की ओर से इसे खत्म करने का आदेश सिडको को दिया गया है, बावजूद इसके इन्हें अभी हटाया नही गया है। अगर समय रहते इस वेटलैंड को बचाया नहीं जा सका तो पर्यावरण के लिए इससे बड़ी क्षति कोई नहीं होगी और उसके दुष्परिणाम आम इंसान को भुगतने पड़ेंगे”।
नवी मुंबई में सिर्फ एनआरआई या पंजे वेटलैंड ही नहीं हैं जिन पर प्रशासन की नजर हैं, बल्कि ऐसे अनेकों वेटलैंड्स हैं जिन्हें बचाने के लिए पर्यावरणविद् एड़ी चोटी का जोर लगा रहे हैं।
लगभग तीन दशकों से वेटलैंड्स और मैंग्रोव को बचाने में जुटे स्वयंसेवी संस्था ‘वानशक्ति’ के निदेशक और पर्यावरणविद डी स्टेलिन का कहना है कि “नवी मुंबई में 15-18 वेटलैंड्स हैं। सिडको की नजर लगभग इन सभी वेटलैंड्स पर है, लेकिन अपने पर्यावरण को हम ऐसे बर्बाद नही होने देंगे। इन्हें बचाने के लिए हमें कितनी भी लंबी लड़ाई लड़नी पड़े, लड़ेंगे”।
ये वेटलैंड्स हर साल स्थानीय पक्षियों के साथ-साथ आर्कटिक, रूस, चीन और यूरोप के कुछ हिस्सों से आने वाले लाखों पक्षियों को शरण देते हैं। यहां हर साल बड़ी संख्या में फ्लेमिंगोज तो डेरा जमाते ही हैं, साथ ही पक्षियों की दुर्लभ प्रजातियां जैसे नॉर्दर्न पिंटेन, रूडी शेल्डक, बार और ब्लैक-टेल्ड गॉडविट्स, रूडी टर्नस्टोन, ग्लॉसी इबिस, कर्लेव सैंडपाइपर आदि बड़ी संख्या में यहां शरण लेते हैं।
बारिश का पानी खुद में समेट कर वेटलैंड्स हमें बाढ़ से बचाते हैं, वहीं सूखे वाले इलाकों में यह जमीन के जल स्तर को बढ़ाते हैं। यह वातावरण से कार्बन डायऑक्साइड की मात्रा को कम करते हैं। मछली, मखाना और अन्य जलीय पौधों की खेती करने वाले लोगों का रोजगार वेटलैंड्स पर निर्भर करता है। इसके साथ ही यह लाखों स्थानीय और प्रवासी पक्षियों को शरण देते हैं।