राजस्थान में बीते एक महीने में जमीन धंसने की दो ऐसी घटनाएं हुई हैं, जिन्होंने भू-वैज्ञानिकों के साथ-साथ आम लोगों को भी आशंकित कर दिया है। संयोग ही है कि दोनों घटनाएं रेगिस्तानी जिलों में हुई हैं। इससे यह शंका गहरा गई कि क्या दोनों घटनाओं का आपस में कोई कनेक्शन है?
16 अप्रेल 2024 को बीकानेर जिले की लूणकरणसर तहसील के सहजरासर गांव में रात के करीब साढ़े तीन बजे डेढ़ बीघा जमीन धंस गई। घटना के वक्त यहां से एक सवारियों से भरी गाड़ी गुजर रही थी। जिसे ट्रैक्टर की मदद से धंसने से बचाया गया। जमीन धंसने से यहां करीब 70 फीट गहरा गड्ढा बन गया। ग्रामीणों के मुताबिक अब यह बढ़कर करीब 80-90 फीट हो गया है।
दूसरी घटना छह मई 2024 को बाड़मेर जिले के नागाणा गांव में हुई। यहां करीब डेढ़ किलोमीटर क्षेत्र में जमीन में दो समानांतर दरार पड़ी हैं। थार रेगिस्तान के दो जिलों में होने वाली इन घटनाओं पर जियोलॉजिकल टीम ने अपनी प्रारंभिक रिपोर्ट प्रशासन को सौंप दी है, लेकिन सवाल यह है कि आखिर रेगिस्तानी इलाकों में हो रही इन भूगर्भीय हलचलों के पीछे क्या कारण हैं?
हालांकि प्रारंभिक रिपोर्ट्स में हैरान करने वाला तथ्य है कि दोनों ही जिलों में घटना के कई कारणों में से समान कारण पानी है। डाउन-टू-अर्थ ने सहजरासर और नागाणा में कई लोगों से बात की और यहां का थोड़ा इतिहास भी खंगाला। इसमें जीएसआई के दावों के साथ-साथ एक अलग तस्वीर भी सामने आई। साथ ही जमीन धंसने की जो दो मुख्य वजहें जीएसआई की प्रारंभिक रिपोर्ट में दी गई हैं, ग्रामीण उन दावों पर सवाल उठा रहे हैं।
पानी के अति दोहन और कम बारिश से बना गड्ढा?
सहजरासर में बने गड्ढे की मुख्य वजह जीएसआई ने अत्याधिक भू-जल दोहन और कम बारिश को बताया है। डाउन टू अर्थ ने जीएसआई के उन अधिकारियों से बात की, जिन्होंने बीकानेर जाकर यह रिपोर्ट तैयार की, लेकिन उन्होंने आधिकारिक रूप से कुछ बताने से इंकार कर दिया। सिर्फ कहा कि प्रारंभिक रिपोर्ट प्रशासन को सौंप दी है। विस्तृत रिपोर्ट अगले कुछ दिनों में पेश की जाएगी, जिसमें सैटेलाइट इमेज, पानी और अन्य तकनीकी तथ्यों के आधार पर रिपोर्ट तैयार की जा रही है।
लूणकरणसर एसडीएम राजेन्द्र सिंह ने डाउन टू अर्थ ने बताया कि रिपोर्ट में भूगर्भीय क्षेत्र के अवलोकनों के साथ भूजल, क्षेत्र में होने वाली वर्षा और अन्य प्रासंगिक डेटा के विश्लेषण से यह पाया गया है कि पिछले कुछ वर्षों में इस क्षेत्र में भूजल की कमी बहुत अधिक हो गई है। इससे उप-सतह कठोर चट्टानों और एओलियन जमा के संपर्क क्षेत्र में पानी को रोकने वाली जलभृत चट्टानें/तलछट सूख सकती हैं। इससे सूखे हुए छेदों /रिक्तियों का संघनन हो सकता है। इसके परिणामस्वरूप उप-सतह परतों का आयतन कम हो सकता है और ढीली रेत वाली भूमि का धंसाव हो सकता है।
बता दें कि बीकानेर जिले की ग्राउंट वाटर की स्थिति बताने वाली एक रिपोर्ट के मुताबिक बीकानेर जिले में मुख्य रूप से हल्की बनावट, कमजोर संरचना वाली रेत से लेकर रेतीली दोमट मिट्टी है।
जीएसआई की प्रारंभिक रिपोर्ट में इस क्षेत्र में कम बारिश का दावा भी किया गया है। हालांकि जल संसाधन विभाग की ओर से हर साल जारी होने वाली मानसून रिपोर्ट के अनुसार जिस क्षेत्र में जमीन धंसी है, वहां बीते 30 साल में औसत बारिश 17.4 मिलीमीटर (एमएम) बढ़ी है। जल संसाधन विभाग ने साल 2022 में पूरे राजस्थान में 30 साल के बारिश के आंकड़ों का विश्लेषण कर औसत बारिश के आंकड़े संशोधित किए थे। बीकानेर जिले में औसत बारिश को 229.6 एमएम से बढ़ाकर 247 एमएम किया गया है।
बीकानेर जिले में साल 2023 में सामान्य से 30.27% ज्यादा यानी 321.78 एमएम बारिश हुई, जबकि लूणकरणसर में इस साल 240 एमएम बारिश हुई जो कि औसत से 2.8% कम है। 2022 में यहां 371 एमएम यानी औसत से 50.2% ज्यादा बारिश हुई। 2021 में 299 एमएम बारिश दर्ज हुई, लेकिन 2020 में यह घटकर सिर्फ 96 एमएम रह गई। 2019 में लूणकरणसर में 238 एमएम बारिश हुई। लेकिन इस साल पूरे बीकानेर जिले में सामान्य से 8.9% कम बारिश हुई।
बारिश के आंकड़ों से साफ है कि कम बारिश जमीन धंसने का कारण नहीं हो सकती। हालांकि औसत बारिश बढ़ने के बावजूद क्षेत्र में पानी की कमी है। इसका मतलब है कि बारिश का पानी जमीन में अंदर नहीं जा पा रहा। एसडीएम सिंह बताते हैं कि इस क्षेत्र में जमीन के अंदर 150 मीटर तक सिर्फ रेत है। जीएसआई के अधिकारियों ने जो रिपोर्ट भेजी है उसमें भू-जल के अत्यधिक दोहन की बात है।
हालांकि सहजरासर के लोग दोहन और जल रिसाव की बात से इत्तेफाक नहीं रखते। लूणकरणसर में उरमूल संस्था के साथ काम कर रहे सामाजिक कार्यकर्ता रामेश्वर कहते हैं, “सहजरासर में सिर्फ चार बोरवेल हैं। जिनमें काम दो ही कर रहे हैं। इनका इस्तेमाल भी अधिक नहीं होता क्योंकि पानी खारा है। भू-जल 400 फीट से भी नीचे है। आस-पास के गांवों में भी बोरवेल या हैंडपंप नहीं हैं। कुछ साल पहले एक किसान ने बोरवेल खोदा, लेकिन पानी बेहद खारा निकला। इसीलिए ये पानी खेती के काम भी नहीं आता। ऐसे में पानी का बंदोबस्त बाहर से ही होता है। खेती भी सिर्फ मानसून सीजन में होती है। वहीं, अब सिर्फ एक ही पक्का तालाब बचा है। क्योंकि अकाल राहत में तालाबों का गहराईकरण हुआ था। उसके बाद उन तालाबों में पानी रुकना ही बंद हो गया। यानी इन कच्चे तालाबों में आने वाला पानी भी जमीन में रिचार्ज होता है।”
सहजरासर के पूर्व सरपंच नत्थीलाल सिंहोर भी कहते हैं कि प्रशासन और जीएसआई के अत्यधिक भू-जल दोहन का दावा समझ से परे है।
बीकानेर क्षेत्र में पर्यावरण संरक्षण में लगे श्याम सुंदर ज्याणी कहते हैं कि इस इलाके में बहाव का पानी नहीं है। बरसात में भी पानी बहकर कहीं जमा नहीं होता बल्कि रेत में समा जाता है।
करीब 6500 की आबादी वाले सहजरासर गांव में घटना वाली जगह कोई नई नहीं है। रामेश्वर कहते हैं, “गांव के बुजुर्ग कई साल पहले यहां बिजली गिरने और उससे एक गड्ढा बनने की कहानी सुनाते हैं। समय के साथ यह गड्ढा भरता रहा, लेकिन इस जगह में खालीपन बना रहा। सात-आठ साल पहले जब यहां से सड़क निकाली गई तब भी ग्रामीणों ने अपनी बात रखी थी. इसीलिए जहां अभी गड्ढा हुआ है वहां सड़क हल्की घुमाव पर है।”
वह बताते हैं कि सहजरासर और आसपास के गांवों की जमीन बीजणी है। यानी यहां की जमीन हर साल कुछ सेंटीमीटर धंसती है। रेगिस्तान में यह एक सामान्य प्रक्रिया है।
40 साल के ओंकारमल नई बात बताते हैं, “यह गड्ढा 50 साल से भी ज्यादा पुराना है। हमारे बुजुर्ग भी इसके बारे में बताते थे। इसके तीन तरफ धोरे (रेत के टीले) हैं। सिर्फ पश्चिम दिशा में समतल जमीन है। मॉनसून का पूरा पानी इसी गढ्ढे से जमीन में जाता था। करीब सात साल पहले जब यहां सड़क बनी तब भी करीब दस फीट गहरा एक गड्ढा था। 2018-19 से हर साल जमीन धंस रही है। पिछले साल बारिश में करीब तीन फुट गहरा गड्ढा हुआ था। तब इसमें मिट्टी के कट्टे डाले गए थे। अभी 16 अप्रेल को भी एक साथ यह घटना नहीं हुई है। बल्कि दो दिन लगातार जमीन धंस रही थी।”
नत्थीलाल भी कहते हैं कि बारिश के दिनों में इस गढ्ढे में पानी भंवर बनकर रिसता था। साथ ही कुछ ही देर में पानी जमीन में समा जाता था।
डाउन-टू-अर्थ ने गूगल अर्थ से घटना वाली जगह की पुरानी तस्वीरें देखीं। सामने आया कि साल 2018 से सड़क के किनारे एक गड्ढा बना हुआ है जो धीरे-धीरे बड़ा हो रहा है। हमने 2018, 2020, 2023 और मई 2024 की तस्वीरें गूगल अर्थ के जरिए निकालीं।
यह पहली तस्वीर साल 2018 की है। तब भी सड़क के घुमाव पर एक छोटा गड्ढा दिखाई दे रहा है।
दूसरी तस्वीर साल 2022 की है और यहां भी एक गड्ढा है। जो 2018 की तुलना में थोड़ा बड़ा हुआ है।
तीसरी तस्वीर दिसंबर 2023 की है। 2022 की तुलना में गड्ढा काफी बड़ा हुआ है और इसमें आसपास की रेत भी समा रही है।
इसके बाद 16 अप्रेल को हुई घटना के बाद की गूगल अर्थ की तस्वीर ऊपर देख सकते हैं, जिसमें साफ पता चलता है कि गड्ढे का आकार बड़ा हुआ है और इसने सड़क को भी चपेट में लिया है।
बाड़मेर में क्यों डेढ़ किमी जमीन में पड़ी दरार?
बीकानेर की घटना के करीब 20 दिन बाद बाड़मेर जिले के नागाणा गांव में डेढ़ किमी जमीन में दो समानांतर दरारें पड़ गईं। घटना यहां कच्चा तेल निकालने वाली मंगला प्रोसेसिंग टर्मिनल के कुएं नंबर 6-7 के बीच हुई है।
दोनों दरारों के बीच की चौड़ाई 6-7 मीटर है। बाड़मेर जीएसआई के अधिकारी भाकर राम के मुताबिक प्रारंभिक जांच में घटना की वजह पानी है।
दरअसल, 2005 में कवास क्षेत्र में बाढ़ आई थी। इस क्षेत्र में जमीन के नीचे खनिज के रूप में मुल्तानी मिट्टी बहुतायत में है। बाढ़ का पानी इसी मिट्टी में घुल गया। इसीलिए जमीन के नीचे खाली जगह बन गई। इसे गुफा (केव) भी कह सकते हैं।
इस केव की वजह से जमीन के नीचे एक वैक्यूम बना है। क्योंकि यहां जमा पानी स्थानांतरित हो गया। इसीलिए नीचे खाली जगह बन गई। यही कारण है कि अब यह दरार के रूप में जमीन के ऊपर दिखने लगा है। साधारण भाषा में समझें तो बाढ़ के वक्त मुल्तानी मिट्टी ने पानी को सोख लिया। अब 18-19 साल बाद जब जमीन में पानी कम होने लगा तो मिट्टी फट रही है। इसीलिए यह दरारें सामने आई हैं।
बता दें कि जीएसआई ने घटनास्थल को अपने निगरानी में रखा हुआ है। बकौल भाकरराम, “अगर भविष्य में यह दरारें बढ़ती हैं तो जीएसआई के वरिष्ठ वैज्ञानिकों से भू-भौतिकी सर्वेक्षण कराएंगे।”
हालांकि स्थानीय लोग कच्चा तेल निकालने वाली कंपनी मंगला पर भू-जल के अतिदोहन का आरोप लगाते हैं। इसके जवाब में भाकरराम कहते हैं कि प्रारंभिक रिपोर्ट में ऐसा सामने नहीं आया है। अगर दरार बढ़ती हैं तो इस एंगल से भी पड़ताल की जाएगी।