दुनिया में 220 करोड़ लोगों को आज भी साफ और सुरक्षित पेयजल नसीब नहीं हो रहा। इनमें से ज्यादातर वो लोग हैं जो ग्रामीण इलाकों में रहते हैं और अक्सर अपनी पेयजल संबंधी आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए छोटी जल आपूर्ति सुविधाओं पर निर्भर रहते हैं। लेकिन समस्या यह है कि यह सुविधाएं अक्सर तकनीकी और संसाधन संबंधी चुनौतियों से जूझती रहती हैं।
इसका असर पानी की सप्लाई, गुणवत्ता और विश्वसनीयता पर पड़ता है। पानी की कमी और गुणवत्ता में गिरावट न केवल बीमारियों के जोखिम को बढ़ा सकती हैं। साथ ही इनका सामजिक और आर्थिक रूप से भी नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
इन चुनौतियों को पार पाने के लिए यह सुनिश्चित करना जरूरी है कि नीतियों और नियमों में छोटी जल आपूर्ति योजनाओं को भी ध्यान में रखा जाए। ऐसे में इन समस्याओं को ध्यान में रखते हुए विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने छोटी जल आपूर्ति योजनाओं को बढ़ावा देने के लिए नए दिशानिर्देश जारी किए हैं।
इनका उद्देश्य छोटी जल आपूर्ति सुविधाओं में पानी की गुणवत्ता में सुधार करने के साथ-साथ सुरक्षित और विश्वसनीय जल आपूर्ति सुनिश्चित करना है। इसके साथ ही कमजोर और संसाधन-सीमित समुदायों में दूषित जल के चलते स्वास्थ्य के लिए पैदा हो रहे जोखिमों का समाधान करना है। इसके साथ ही डब्ल्यूएचओ ने एक नया टूल भी जारी किया है। गौरतलब है कि इन समुदायों में अक्सर पीने का साफ पानी न मिलने के कारण हैजा, दस्त, चर्म रोग जैसी संक्रामक बीमारियों के फैलने का खतरा बना रहता है।
बता दें कि सतत विकास के लक्ष्य 6.1 के तहत 2030 तक दुनिया के हर हिस्से में हर जन तक स्वच्छ और सुरक्षित पानी पहुंचाने का लक्ष्य रखा गया था। इन दिशानिर्देशों का उद्देश्य भी इन लक्ष्यों को हासिल करने में मदद करना है।
इस बारे में विश्व स्वास्थ्य संगठन के पर्यावरण, जलवायु परिवर्तन और स्वास्थ्य विभाग की निदेशक डॉक्टर मारिया नीरा का कहना है कि इन छोटी जल आपूर्ति योजनाओं में निवेश दोहरा लाभ देता है। एक तरफ जहां इससे दूषित पानी से फैलने वाली बीमारियों को रोकने में मदद मिलती है। दूसरी ओर यह बीमारियों और उनके इलाज पर होने वाले खर्च को सीमित करके आर्थिक दबाव को कम करता है।
जलवायु परिवर्तन को लेकर कहीं ज्यादा संवेदनशील हैं छोटी जल आपूर्ति सेवाएं
उनके मुताबिक जलवायु में आते बदलावों से इन छोटी जल आपूर्ति सुविधाओं को अधिक खतरा है। विशेष रूप से जल गुणवत्ता और मात्रा को लेकर यह जलवायु परिवर्तन के प्रभावों के प्रति कहीं ज्यादा संवेदनशील हैं। उनके मुताबिक यह साफ पानी की उपलब्धता को प्रभावित कर सकता है। ऐसे में हर किसी की स्वच्छ और सुरक्षित पेयजल उपलब्ध हो सके यह सुनिश्चित करने के लिए तत्काल प्रयास किए जाने की आवश्यकता है।
इन दिशानिर्देशों में स्वच्छ पेयजल के लिए डब्ल्यूएचओ की योजना को आधार के रूप में उपयोग करते हुए छह सुझाव दिए हैं। बता दें कि ये दिशानिर्देश स्वच्छ जल और स्वास्थ्य आवश्यकताओं पर केंद्रित हैं और स्थानीय परिस्थितियों को ध्यान में रखने पर जोर देते हैं। साथ ही यह स्वास्थ्य आवश्यकताओं के आधार पर नियम निर्धारित करने, समस्याओं को रोकने की योजना बनाने और स्वतंत्र रूप से पानी की गुणवत्ता की जांच करने जैसे मुद्दों को कवर करते हैं।
गौरतलब है कि ये सुझाव अनेक शोधों और धरातल पर जांचे परखे गए उदाहरणों के साथ-साथ दस महत्वपूर्ण सिद्धांतों पर आधारित हैं। इन सिद्धांतों में सार्वजनिक स्वास्थ्य को सर्वोच्च प्राथमिकता देना, जोखिम-आधारित दृष्टिकोण अपनाना और प्रगतिशील सुधार को लक्षित करना शामिल हैं।
डब्ल्यूएचओ की जल, स्वच्छता और स्वास्थ्य इकाई के प्रमुख ब्रूस गॉर्डन का इस बारे में कहना है कि, "राजनीतिक इच्छाशक्ति, जोखिम को ध्यान में रखकर बनाए नियम और अधिक निवेश छोटी जल आपूर्ति योजनाओं के माध्यम से सुरक्षित पेयजल तक पहुंच हासिल करने में प्रभावी साबित हुआ है।" उनके मुताबिक यह दिशानिर्देश छोटी जल आपूर्ति की सुरक्षा और स्थिरता को बढ़ाने के लिए सभी स्तरों पर हितधारकों के प्रयासों का समर्थन करेंगे।
विश्व स्वास्थ्य संगठन ने दुनिया भर में सरकारों और अन्य हितधारकों से नियमों, नीतियों और सहायता कार्यक्रमों में छोटी जल आपूर्ति सुविधाओं को प्रभावी ढंग से संबोधित करने के लिए इन सिफारिशों को अपनाने का आह्वाहन किया है।
क्या हैं यह सिफारिशें