प्रकृति जितनी सुंदर है उतना ही सुंदर हमारा आज है। हमारा कल भी बहुत सुंदर हो, इसकी चिंता हम करते हैं किन्तु पृथ्वी का दुर्भाग्य है कि उस पर रहने वाले हमारे सबसे प्रज्ञावान लोग अपनी पृथ्वी को बचाने में असहाय से लग रहे हैं। पृथ्वी के साथ जल-क्षेत्र भी आज हमारी चिंता का विषय बन गया है। जल क्षेत्र और पृथ्वी पर जल की जरूरतों के लिए बड़े व्यापक स्तर पर बहस हो रही है। इस बहस में शामिल है हमारे भविष्य का सुंदर-पक्ष। पूरी दुनिया पानी के लिए अचानक से चिंतित नहीं हुई है अपितु यह संकट बहुत लंबे समय से हमें आने वाले संकटों की ओर ध्यान दिला रहा था और अब दुनिया के अधिकांश देश जब जल संकट से जूझने लगे हैं तो हमें अपने आने वाले भविष्य का सुंदर-पक्ष विकृत सा होता दिख रहा है। संयुक्त राष्ट्र-2023 जल सम्मेलन से पहले जारी की गई है। संयुक्त राष्ट्र विश्व जल विकास रिपोर्ट साझेदारी और सहयोग के जुड़ाव विषयों पर केंद्रित है। इसमें यह बताया गया है कि वैश्विक स्तर पर, दो अरब लोगों के पास सुरक्षित पेयजल उपलब्ध नहीं है। 3.6 अरब लोग, सुरक्षित रूप से प्रबन्धित स्वच्छता सुविधाओं तक पहुँच से दूर हैं। यद्यपि 2016 में पानी की कमी का सामना कर रही वैश्विक शहरी आबादी 93 करोड़ थी, जो 2050 में बढ़कर, सम्भवत: 1.7 से 2.4 अरब तक पहुँचकर दोगुनी हो सकती है।
सूखते जल स्रोत से उपजी निराशा
ये जल सूख रहे हैं। इनका सूखना, जीवन का सूखना है। इनके सूखने से वनस्पतियों के मिट जाने की आशंका है। प्रत्याशा यह भी है कि जल-स्रोत से हमारे गले सूख जाएंगे और हम तड़पकर भी अपना जीवन बचाने में अक्षम हो जाएंगे। क्या आपको पता है कि संयुक्त राष्ट्र सतत विकास लक्ष्य हासिल करने के लिए कितना ज़ोर लगा रखा है लेकिन यह आज स्वीकार करना पड़ेगा कि सबसे अहम जल है और इसको यदि प्राथमिकता से ज्यादा निवेश करके नहीं बचाया गया तो सतत विकास लक्ष्य हम हासिल नहीं कर सकेंगे। यह भी बहुत बड़ा सत्य है कि इस तरह के एजेंडे और निवेश में कोताही की गयी तो भारत समेत दुनिया भर को, संयुक्त राष्ट्र के सतत विकास लक्ष्य के 17 में से किसी भी लक्ष्य को हासिल करना मुश्किल हो जाएगा। रिपोर्ट के प्रधान सम्पादक, रिचर्ड कॉनर ने इस रिपोर्ट में बहुत ज़ोर देकर चेताया है कि हम बेफिक्र हो रहे हैं और यह बेफिक्री हमें और हमारी आने वाली पीढ़ियों को काफी मुश्किल में डाल सकती है।
रिपोर्ट के प्रधान सम्पादक, रिचर्ड कॉनर ने संयुक्त राष्ट्र विश्व जल विकास रिपोर्ट में बताया है कि सहयोग टिकाऊ विकास के केंद्र में है। और जल उन्हें जोड़ने का एक बेहद शक्तिशाली माध्यम है। हमें पानी पर मोल-भाव नहीं करना चाहिए। हमें 1 ट्रिलियन डॉलर का निवेश उदारभाव से करना चाहिए और पानी बचाना ही चाहिए साथ ही रिचर्ड यह भी कहते हैं कि हमें इस पर विचार-विमर्श करना चाहिए कि आख़िरकार जल एक मानवाधिकार है।
देशों के पास चुनौतियाँ ज्यादा हैं
क्या आपको पता है कि दुनिया भर में लगभग 900 नदियों, झीलों एवं जल-आधारित प्रणालियों का 153 देश मिलकर उपभोग करते हैं? ये नदियां न होतीं, झीलें न होती, जल-स्रोत के दूसरे साधन न होते, गाँव-गाँव तालाब और कुएं न होते तो क्या होता, जरा इस पर विचार करें। सबसे बड़ी बात यह है कि आधे से अधिक देशों ने इसके लिए विभिन्न समझौतों पर हस्ताक्षर किए हैं कि इन सभी के प्रबंधन में हम कोई कोताही नहीं करेंगे और अपने सीमा-क्षेत्र में रह रहे लोगों के जीवन में शुभत्व का बोध कराएंगे। लेकिन गरीबी, भुखमरी, अनेकों बीमारियों और अंतर्कलह में डूबे देश जल पर ध्यान कम दे रहे हैं बल्कि वे इन समस्याओं से ही लड़ने के लिए परेशान हैं। आकंठ भ्रष्टाचार में अनेकों डूबे देशों की हालत बहुत ही खराब है। वे यह समझ ही नहीं पा रहे हैं कि हमें निवेश कहाँ करना है? हमें जीवन को कैसे बचाना है? हर देश के पास अपनी चुनौतियाँ हैं। हर देश की अपनी सोच है। अपने संविधान और एजेंडे से काबिल देश, कल्याणकारी देश खुद को घोषित किए जा रहे हैं लेकिन सच तो यह है कि वे उदास हैं और उदासीन हैं।
रक्षा पर बज़ट उनका ज्यादा है। अपनी संप्रभुता के लिए सेना, रक्षा और ततसंबंधी संसाधन के लिए धन निवेश करना उनके लिए आम बात है किन्तु जल जैसी चुनौती से निपटने के लिए निवेश करने को तैयार नहीं हैं। युद्ध के लिए उनके पास धन है लेकिन जल के लिए नहीं हैं। हथियारों की खरीदी के लिए धन हैं लेकिन जल-निधि के लिए निवेश के नाम पर साँप सूंघ जाते हैं।
यदि जल हमारे मानव अधिकारों से जुड़े हैं तो जल के लिए कल का इंतज़ार क्यों? पहली आवश्यकता यह हमारी है कि हर जीवन की रक्षा के लिए हम ज्यादा से ज्यादा सोचें, कार्य करें, लोगों को जागरूक करें। संयुक्त राष्ट्र महासभा के अध्यक्ष चबा कोरोसी ने स्पष्ट शब्दों में कहा है जलवायु स्मार्ट जल प्रबंधन हमें जैव विविधता के लिए हमारे नीतिगत ढाँचे पर पुनर्विचार करने और उसे मजबूत करने में मदद कर सकता है। इस बात को लोग आखिर समझेंगे कब?
भारत का जल सवाल
भारत की बात करें तो जल शक्ति मंत्रालय की रिपोर्ट 2021-22 कहती है कि ‘प्रति व्यक्ति जल की उपलब्धता देश की जनसंख्या पर निर्भर है और भारत के संदर्भ में देश में प्रति व्यक्ति पानी की उपलब्धता उत्तरोत्तर कम हो रही है।’ भारत यद्यपि संसार के अनेक देशों की तुलना में ठीक स्थिति में है। दुनिया के अनेकों देश आर्थिक रूप से बहुत ही कमजोर हैं वे जल क्या बचाएंगे? वर्तमान में राष्ट्रीय जल नीति-2012 प्रभावी है। राष्ट्रीय जल नीति का मुख्य उद्देश्य जल क्षेत्रों की वर्तमान स्थिति का संज्ञान लेना, कानूनों और संस्थानों की एक व्यवस्था तैयार करने की रूपरेखा और योजना, प्रबंधन और जल संसाधनों के उपयोग में एकीकृत राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य की एक कार्य योजना का प्रस्ताव करना है। यह सब अच्छा है लेकिन बजट को लेकर अभी भी भारत सरकार ज्यादा मुखर होकर आगे नहीं आ रही है जबकि यह सरकार को समझना आवश्यक है कि दुनिया कि सबसे बड़ी जनसंख्या का जल को लेकर दबाव भारत सरकार पर है। विश्व के कुछ देश भी यह उम्मीद करते हैं कि जल संकट आने पर कोविड की भांति भारत हमारी मदद करेगा।
भारत सरकार के लिए एक बड़े संकल्प की यह अवश्यकता महसूस की जा रही है कि वह जल-शक्ति व विशेष जल संरक्षण के लिए विशेष बजट लाये ताकि उसकी आने वाली समस्याओं से सामना हो ही नहीं और देश की जनता में निश्चिंतता का भाव हो।
‘जल-निधि’ व ‘जल-निवेश’ आज की विशेष ज़रूरत
आशंका जताई जा रही है कि एसडीजी-2030 की उपलब्धियां पटरी से उतर जाएंगी और वैश्विक जल संकट को हल करने के प्रयास बाधित होंगे। इसे सच मान लेने की ज़रूरत है। इसे आशंका के रूप में लेने कि मेरी दृष्टि से आवश्यकता नहीं है। महासभा के अध्यक्ष चबा कोरोसी के ही शब्द- ‘आज हम जो निर्णय लेते हैं, वे या तो सक्रिय दीर्घकालिक लचीलेपन के लिए एक मंच तैयार कर सकते हैं या हमें प्रतिक्रियाशील नाजुकता के रूप के पैटर्न में रख सकते हैं। सौभाग्य से, अब तक हमने दो वास्तविकताओं को पहचान लिया है-कि हम केवल ‘पारंपरिक समाधानों को बढ़ाकर वह स्थिरता परिवर्तन नहीं बना सकते हैं, जिसकी हम कल्पना करते हैं और, वह भी हम केवल तभी कम संवेदनशील होंगे जब हम यह सुनिश्चित करेंगे कि ‘जलवायु’ और ‘जल नीतियां’ एकीकृत हैं।’
हमारी समस्या क्या है इसे यदि हम रेखांकित करते हैं तो पता चलता है कि जीवन में उपयोगी वस्तु मात्र हम जल को मान चुके हैं जबकि विशेषज्ञ जो अभी विगत दिनों संयुक्त राष्ट्र की जल पर आधारित रिपोर्ट पेश हुई तो उनका स्पष्ट आह्वान था कि ‘जल को एक समान कल्याण के संसाधन के रूप में प्रबंधित किया जाना चाहिए, न कि एक वस्तु की तरह।’ समस्या यही है कि हमने जल को बस मामूली वस्तु के रूप में मान लिया है तो निवेश की सोच आएगी कहाँ से? जबकि आज सही मायने में देखा जाए तो दुनिया की यही पुकार है कि ‘जल-निधि’ और ‘जल निवेश’ दोनों पर बराबर ध्यान देकर अपने भविष्य को सुरक्षित किया जाए।
आज अत्यधिक सूखे की बढ़ती घटनाएँ, पारिस्थितिक तंत्र पर दबाव डाल रही हैं। जिससे पौधे और पशु प्रजातियों दोनों के लिए गम्भीर परिणाम सामने आने लगे हैं। कृषि समुदायों में निवेश करके, किसान ऐसे लाभान्वित हो सकते हैं लेकिन उन्हें भी पानी कि समस्या ने फिक्र में डाल दिया है कि वे अपने खेतों और खुशहालियों में समनव्य कैसे बैठाएँ? ग्रीन-हाऊस के बढ़ते प्रकोप से हम सभी वाकिफ हैं जो जलवायु संकट को बढ़ाने वाले हैं और पानी जैसे सवाल को और हमारे लिए बहुत बड़ा बनाने वाले हैं। पृथ्वी के देशों एवं हितधारकों को सही मायने में जागने का समय है। यह समय है सही रणनीति के साथ जल-निवेश और उसकी सुरक्षा व जागरूकता को समर्पित करने का। यदि ऐसा नहीं हुआ तो यह मानकर चलिये कि हमने तो चाहे जैसे जीवन जी लिया लेकिन हमारी आने वाली पीढ़ियाँ हमें कोसेंगी।
एक तरफ बाज़ार है दूसरी तरफ वे उपभोक्ता हैं जो निहायत गरीब हैं। वे जल खरीदेंगे कैसे? हमें उनके बारे में सोचना है। हमें उनके बारे में विचार करने की आवश्यकता है जो बहुत मामूली श्रम और प्रकृति पर आश्रित हैं। उनका भविष्य हम अपने सुख के लिए समाप्त नहीं कर सकते। ऐसे में यह हमें स्पष्ट होने कि आवश्यकता है कि ‘जल-निधि’ और ‘जल निवेश’ यदि सरकारें करती हैं तो वे अपने सभी नागरिकों के लिए समान जल-सुविधाएं दे सकेंगी। सबका जीवन सुरक्षित हो सकेगा। मूल चिंताओं पर आज जब उदासीनता बन जाएगी तो हम कभी भी सही सामाजिक जीवन सततता को बनाए नहीं रख पाएंगे।
हमारे पृथ्वी पर रह रहे मनुष्यों को भूलने की आदत है। वे एक समस्या पर एकत्रित होते हैं, उस पर बातें करते हैं फिर उसे भूल जाते हैं। यह भूलने की प्रवृत्ति आज इस सवाल के साथ उपस्थित है हमारे सामने कि जल चिंता की उम्र कितनी है? यदि हम केवल भूलने वाले होकर किसी आयोजन को कर रहे हैं और उसके बाद भूलने वाली आदत में उन विषयों को छोड़ते जा रहे हैं तो जल चिंता की उम्र भी कम लगती है और वह एक हमारे तरफ से अपनी आने वाली पीढ़ी के लिए धोखा है।
आज आवश्यकता इस बात की भी है कि हम जो चिंता कर रहे हैं उसे भूल में शामिल न करें। प्रत्येक अवस्था में उस विषय पर चिंता करें। उसे स्मरण रखें। अच्छी नीतियाँ बनाएँ। अच्छा निवेश करें ताकि हमारा सौभाग्य दुर्भाग्य में न बदले अन्यथा जो जल बहस आज सभी के लिए चिंता बनी हुई है वह घनीभूत होकर हमारे जीवन के लिए अभिशाप बन जाएगी। इन सबके बावजूद हमें सकारात्मक रहना है, सकारात्मक सोचना है। हमें कैसा कल चाहिए उसके लिए हमारी सक्रियता, भागीदारी और निवेश वस्तुतः बहुत कुछ बादल सकता है।
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लेखक भारत गणराज्य के महामहिम राष्ट्रपति जी के विशेष कार्य अधिकारी रह चुके हैं. आप अहिंसा आयोग और अहिंसक सभ्यता के पैरोकार हैं।