फोटो- अमित जैन
फोटो- अमित जैन

वेटलैंड डे विशेष: उधवा झील से शुरू हुआ झारखण्ड के रामसर का सफर

अब जब उधवा झील को रामसर साईट होने का तमगा मिल जाने से इसके संरक्षण को बल मिलेगा
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विश्व वेटलैंड्स (आर्द्र भूमि) दिवस 2025 के पहले, भारत के चार और वेटलैंड्स को रामसर कन्वेंशन साइट्स के अंतरराष्ट्रीय समूह में स्थान मिला है, जिससे देश में ऐसे विश्व स्तर पर मान्यता प्राप्त वेटलैंड्स की कुल संख्या बढ़ कर 89 हो गई है।

सूची के चार नए वेटलैंड में तमिलनाडु के रामनाथपुरम के सक्करकोट्टई पक्षी अभ्यारण्य और थेर्थंगल पक्षी अभ्यारण्य के साथ-साथ सिक्किम में खेचोपलरी वेटलैंड,और झारखंड में उधवा झील।

खेचोपलरी वेटलैंड,और उधवा झील इसलिए भी खास है कि सिक्किम और झारखण्ड का ये पहला वेटलैंड है जिन्हें रामसर वेटलैंड की सूची  में शामिल किया गया हैं। 89 रामसर स्थलों में से, 20 वेटलैंड्स के साथ तमिलनाडु भारत में सबसे अधिक रामसर स्थलों वाला राज्य बन गया है। विश्वभर के, 2,529 ऐसी नामित वेटलैंड्स में एशिया में भारत में ऐसे रामसर वेटलैंड्स की संख्या सबसे अधिक है और यूके (176) और मैक्सिको (144) के बाद दुनिया में तीसरी सबसे अधिक है। 

वेटलैंड्स जिन्हें आर्द्र भूमि भी कहा जाता है वैसे क्षेत्र हैं जो अस्थायी/मौसमी या स्थायी रूप से पानी से  ढंके रहते हैं। ये महत्वपूर्ण पारिस्थितिकी तंत्र हैं जो पारिस्थितिक संतुलन, जैव-विविधता संरक्षण, बाढ़ नियंत्रण, जल-आपूर्ति, भोजन, और कच्चे माल जैसी विभिन्न पारिस्थितिकी तंत्र सेवाएं सुनिश्चित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

रामसर साइट, रामसर कन्वेंशन के तहत अंतरराष्ट्रीय महत्व का एक आर्द्रभूमि क्षेत्र है। रामसर कन्वेंशन एक अंतर्राष्ट्रीय संधि है जिसे 2 फरवरी, 1971 को कैस्पियन सागर के दक्षिणी तट पर ईरानी शहर रामसर में अपनाया गया था, जो 1 फरवरी, 1982 को भारत के लिए लागू हुआ। वे वेटलैंड्स जो अंतरराष्ट्रीय महत्व के हैं, उन्हें रामसर साइट घोषित किया जाता है।

मल्टी-टेम्पोरल सैटेलाइट डेटा के एक अध्ययन के अनुसार, झारखण्ड राज्य में 2436 वेटलैंड्स को चिन्हित किया गया, जो कुल 1568.27 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैले हुए हैं, जो राज्य के क्षेत्रफल का दो प्रतिशत ही है। इनमें छोटे वेटलैंड्स (2.25 हेक्टेयर से छोटे) की संख्या 13,327 पाई गई है। राज्य के वेटलैंड्स का अधिकतर क्षेत्र नदियों और जलाशयों के अंतर्गत आता है, जो कुल वेटलैंड क्षेत्र के 90% से अधिक है। जिलेवार सबसे ज्यादा वेटलैंड्स साहेबगंज (15636 हेक्टेयर) में है और के बाद सरायकेला-खरसावां (11,325 हेक्टेयर) और हज़ारीबाग (10,718 हेक्टेयर) का स्थान है। महत्वपूर्ण वेटलैंड्स में उधवा झील पक्षी अभयारण्य, गेतलसुद, तेनूघाट, पंचेत, कोनार, तिलैया, मैथन और मसांजोर जलाशय शामिल हैं। ये सारे क्षेत्र अपने गर्भ में जैव-विविधता के साथ पर्यटन और रोजगार का बीज संजोये हुए हैं।

झारखण्ड का उधवा झील ना केवल राज्य का पहला रामसर वेटलैंड घोषित हुआ है बल्कि इसे पूरे राज्य का पहला और एक मात्र पक्षी अभ्यारण होने का भी गौरव प्राप्त है साथ ही यह पूर्वी भारत में स्थित इकलौता पक्षी अभ्यारण भी है। 1991 में तात्कालिक बिहार सरकार ने साहेबगंज जिले में गंगा किनारे स्थित तीन बैकवाटर झीलों को मिलाकर उधवा पक्षी अभयारण्य का दर्जा देकर आसपास के इलाके को प्रतिबंधित क्षेत्र घोषित कर दिया था। केंद्रीय पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने 2019 में एक अधिसूचना जारी कर इस झील को इको सेंसिटिव जोन घोषित कर दिया।

साहेबगंज जिले के उधवा प्रखण्ड में स्थित गंगा नदी और राजमहल की पहाड़ियों के बीच 5.65 वर्ग किलोमीटर में फैला उधवा पक्षी अभ्यारण्य गंगा नदी की तीन बैकवाटर झीलों पटौड़ा ,बरहेल या ब्रह्म जमालपुर और पुरुलिया से मिलकर बना है, जिसमे बरहेल झील अपेक्षाकृत बहुत बड़ा है। वही पुरुलिया झील जो आकार में सबसे छोटा है पर पारिस्थितिकी रूप से सबसे महत्वपूर्ण है और पीट लैंड होने के कारण बायो मास से पूर्ण क्षेत्र है जो समृद्ध जैव विविधता के लिए उपयुक्त हैं। उधवा पक्षी अभ्यारण्य के पानी का मुख्य स्रोत गंगा नदी है। वैसे उधवा का यह क्षेत्र ऐतिहासिक रूप से भी काफी महत्वपूर्ण रहा और बंगाल के नबाब मीर कासिम और ईस्ट इण्डिया कंपनी के बीच 1763 में हुए उधवा नाला की लड़ाई का गवाह भी रहा है।

कर्नल मालिसन के अनुसार अगर अंग्रेज उधवा नाला की लड़ाई नहीं जीतते तो उन्हें भारत में एक फीट जमीन भी नहीं मिलती। मिथकों के अनुसार यह भूमि भगवान कृष्ण के सखा उद्धव की भूमि है लोग कहते हैं उद्धव मुनि ने इसी क्षेत्र में रहकर गीता के ज्ञान को आम जन तक प्रसारित किया था। यह सच ही प्रतीत होता है कि जल और पक्षियों के कलरव से गुंजायमान धरा से कर्म की बात आगे बढ़ती हुई नज़र आती है।

यह अभयारण्य जैव विविधता की दृष्टि खास कर पक्षियों के प्रवास के दृष्टिकोण अत्यंत महत्वपूर्ण है। यह क्षेत्र सेंट्रल एशियन फ्लाई वे के पूर्वी भाग में स्थित है जिस रस्ते से सुदूर मध्य एशिया और साइबेरिया की भीषण सर्दी से बचने के लिए अनेको पक्षी दक्षिण का रुख करती है और इस झील को कुछ महीनो के लिए अपना आशियाना बनती है जिनमे साइबेरियन क्रेन, बार-हेडेड गीज़, पिंटेल, कॉमन टील, ब्राह्मणी डक, एग्रीट, हेरॉन, कॉर्मोरेंट और किंगफिशर जैसे पक्षियों शामिल हैं।

सिटिजन साइंस प्रोजेक्ट के अंतर्गत इबर्ड पोर्टल पर उधवा झील के लिए जुटाये गए पक्षियों के आँकड़े झील की समृद्ध जैव-विविधता की ओर इशारा करते हैं। इस झील क्षेत्र में 130 अलग-अलग किस्म की पक्षियाँ पाई गयी है, जिसमें सर्दी और गर्मियों के लगभग 40 प्रवासी, पक्षियों जिसमे लालसर, सुर्खाब, दिघोंच, चहा, बघेरी, मछरंग, धोमरा, नकता, गरुड़, लगलग, किलकिल्ला,,चैता, गैरी, संखार, मंजीठा, टिटवारी, चौबाहा, टिमटिमा आदि प्रमुख हैं, के अलावा पनकौवा, डेबचिक, बानकर जैसे जलीय पक्षी झील के किनारों रहने वाले टिटहरी, बटान, खंजनू, बगुला, आंजन, लकलक और आश्रयणी क्षेत्र में कबूतर, बगेरी, गौरेया, बुलबुल, पहाड़ी मैना, दरियायी मैना, नीलकंठ, तोता पक्षी भी दिखते हैं।

इसके अलावा, यहां की जल निकायों में विभिन्न प्रकार की मछलियाँ और जलीय वनस्पतियां पाई जाती हैं, जो पारिस्थितिकी तंत्र को संतुलित बनाए रखती हैं। यह झील मत्स्य पालन और स्थानीय समुदायों के आजीविका स्रोत के रूप में भी कार्य करती है।

पक्षियों के साथ-साथ यहाँ पाये जाने वाले पेड़ों और जलीय पौधों की विविधता काफी समृद्ध है, जिसमें जल लिली, कमल, जलकुंभी और विभिन्न प्रकार के जलमग्न और तैरने वाले पौधे, नरकट, सेज, रश और दलदली घास जैसे आद्र्भूमि के पौधे, बरगद, पीपल, नीम और विभिन्न प्रकार के बबूल, लैंटाना और अन्य कांटेदार अश्रायी झाड़ियां और अभयारण्य के अंदर और आसपास खुले घास के मैदान और घास के मैदान शामिल है। उधवा झील के समृद्ध जैव विविधता का एक प्रमुख हिस्सा जंतु विविधता भी है जिसमे आस-पास के जंगलों और घास के मैदानों में पाए जाने वाले लंगूर, कस्तूरी बिलाव, हिरन, जंगली सूअर, अजगर, मोनिटर लिजार्ड शामिल है।

उधवा झील का जल विज्ञान और पर्यावरणीय भूमिका भी महत्वपूर्ण है। यह जलाशय प्राकृतिक बाढ़ नियंत्रण में सहायता करता है, भूजल पुनर्भरण में योगदान देता है और जल की गुणवत्ता बनाए रखता है। इसके अलावा, यह पर्यटन और स्थानीय मछुआरों के लिए आजीविका का साधन प्रदान करता है। हालांकि, यह स्थल कई चुनौतियों का सामना कर रहा है, जैसे अतिक्रमण, कृषि विस्तार, प्रदूषण, अत्यधिक मछली पकड़ना और अवैध शिकार।

हाँलाकि अब जब उधवा झील को रामसर साईट होने का तमगा मिल जाने से इसके संरक्षण को एक जरुरी बल मिलेगा पर इस घोषणा के पहले ही इसे नेशनल मिशन फॉर क्लीन गंगा के तहत् उधवा पक्षी अभयारण्य में झीलों का सीमांकन, जल भंडारण संरक्षण, जल प्रबंधन, जैव विविधता संरक्षण, स्थायी संसाधन विकास, आजीविका सशक्तीकरण, और संस्थागत विकास कार्य का प्रकल्प लागू हो चुका था।

अवैध खनन के लिए बदनाम जगह साहेबगंज के लिए उधवा पक्षी अभयारण्य जैसे प्राकृतिक क्षेत्र के रामसर सूची में शामिल होने से इसे अंतरराष्ट्रीय महत्व और विरासत स्थल का दर्जा मिल गया है जो इसे बचाने के साथ-साथ झारखण्ड में वेटलैंड संरक्षण को एक नयी गति देगी। क्योंकि उधवा झील समृद्ध पारिस्थितिकी के साथ-साथ पारंपरिक औषधीय पौधों का खजाना भी है अतः उधवा झील जैसे महत्वपूर्ण स्थलों का समुदाय-आधारित वैज्ञानिक तरीके से संरक्षण न केवल पर्यावरणीय संतुलन को बनाए रखने में मदद करेगा, बल्कि यह राज्य की पारिस्थितिकीय संरक्षण के लिए एक उदहारण भी बनेगा। अंततः, झारखंड के वेटलैंड्स का संरक्षण न केवल राज्य की पारिस्थितिकीय संतुलन और स्थिरता के लिए आवश्यक है, बल्कि यह स्थानीय समुदायों के जीवनयापन और जैव-विविधता संरक्षण में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते है।  

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