वाटर ट्रेन इंसानों की ही नहीं, मगरमच्छों की भी बचाएगी जान

जवाई बांध में जल स्तर अपने न्यूनतम स्तर पर जा पहुंचा, ऐसे में बांध में रह रहे करीब 350 मगरमच्छों के जीवन पर खतरा मंडराने लगा है
जवाई बांध में मगरमच्छों का भी बसेरा है। फोटो: रुद्रप्रताप
जवाई बांध में मगरमच्छों का भी बसेरा है। फोटो: रुद्रप्रताप
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वाटर ट्रेन अब केवल पश्चिमी राजस्थान के पाली जिले के लोगों की ही प्यास नहीं बुझाएगी बल्कि जवाई बांध में रहने वाले लगभग साढ़े तीन सौ से अधिक मगरमच्छों की भी जान बचाएगी।

जवाई बांध का पानी अब अपने सबसे निम्नतम स्तर पर जा पहुंच चुका है यानी जवाई बांध में वर्तमान में मात्र तीन फीट से भी कम पानी बचा हुआ है। इसका कारण है कि पिछले 15 दिनों से बांध के डेड स्टोरेज का पानी भी पाली जिले के लिए सप्लाई किया जाता रहा।

चूंकि इस बार गर्मी वक्त से पहले आ गई और इसका असर यह हुआ कि पाली जिले के अधिकांश जल स्रोत सूख गए और जिले में जल संकट खड़ा हो गया। ऐसे में बांध से पानी अधिक छोड़ा गया। और इसका नतीजा यह हुआ कि बांध का पानी वक्त से पहले ही खत्म हो गया।

ध्यान रहे कि बांध में पानी गतवर्ष अच्छी बारिश नहीं होने के कारण कम स्टोर हुआ था। पाली में विकराल जल संकट की स्थिति में जिला प्रशासन ने रेलवे मंडल से वाटर ट्रेन के माध्यम से पानी सप्लाई करने की मांग की और रेल मंडल ने इसे सहर्ष स्वीकार कर लिया।

इसी का परिणाम है कि वर्तमान समय में पाली और उसके ग्रामीण अंचलों में पानी की सप्लाई के लिए वाटर ट्रेन जोधपुर से प्रतिदिन दो चक्कर कर लगा रही है। यदि जल संकट और बढ़ता है तो भविष्य में इसके चार चक्कर लगाने की उम्मीद है।

पालीवासियों की प्यास तो जैसे-तैसे वाटर ट्रेन ने अस्थायी रूप से बुझाई है लेकिन जवाई बांध में बचे तीन फीट से भी कम पानी में पल रहे लगभग 350 से अधिक मगरमच्छों की हालत दिन-ब-दिन खराब होती जा है। ऐसे में बांध में बचे कम पानी के कारण मगरमच्छों के जीवन पर संकट खड़ा हो गया है।

यही कारण कि जवाई बांध के वन संरक्षक पुष्पेंद्र सिंह राजपुरोहित ने कहा है कि वाटर ट्रेन के पानी कुछ हिस्सा वाइल्ड लाइफ के लिए भी देना होगा यानी जवाई बांध को भी पानी देना होगा।

साथ ही उन्होंने कहा कि यदि वक्त रहते बारिश नहीं हुई तो हर हाल में ट्रेन का पानी बांध के लिए छोड़ना होगा। तभी मगरमच्छों के जीवन सुरक्षित होने की आशा की जा सकती है। उनका कहना है कि कम से कम यहां दस फीट पानी होगा तभी ये मगरमच्छ जैसे-तैसे रह सकते हैं।

हालांकि राजपुरोहित का यह भी कहना है कि ये मगरमच्छ बिना पानी के भी सुषुप्तावस्था में जाकर बिना हिलेडूले चार से छह माह तक अपनी जिंदगी बचा सकते हैं। उनका कहना है कि वर्तमान में पड़ रही तेज गर्मी से बचने के लिए वे जवाई बांध के आसपास के पहाड़ों के खड्डों में घुस जाते है, जहां इनकी ऊर्जा भी कम खर्च होती है लेकिन उनका कहना है कि हर हाल में मानसून का बरसना जरूरी है तभी इनकी जान बचेगी।

ध्यान रहे कि जवाई बांध में मार्श क्राकोडाइल प्रजाति के मगरमच्छ पाए जाते हैं। और इनकी विशेषता होती है कि ये मीठे पानी में ही रहते हैं। इनकी लम्बाई लगभग छह से तेरह फीट होती है और इनकी उम्र करीब 70 से 80 साल रहती है। इस प्रजाति के मगरमच्छ अधिकतर भारत, श्रीलंका, पाकिस्तान, नेपाल और बांग्लादेश में  पाए जाते हैं।

थोड़ा बहुत संख्या में यह प्रजाति पूर्वी इरान में भी पाई जाती है। यह प्रजाति कई इलाकों में विलुप्त हो चुकी है। केवल संरक्षित क्षेत्रों में ही इनकी आबादी बची हुई है। इस मामले में भारत और श्रीलंका सबसे आगे हैं। वर्तमान में भारत में इस प्रजाति के मगरमच्छ लगभग 15 राज्यों में पाए जाते हैं।

इस प्रजाति की सर्वाधिक आबादी वाले इलाकों में मध्य गंगा (बिहार-झारखंड) और चंबल नदी (मध्य प्रदेश, गुजरात और राजस्थान) शामिल है।

वन्य संरक्षण विशेषज्ञों का कहना है कि इनके विलुप्त का प्रमुख कारण है कृषि और औद्योगिक इकाइयों के विस्तार के कारण इनके रहने की जगह धीरे-धीरे खत्म होते जा रही है। यही नहीं इसके अलावा मछली पकड़ने के उपकरणों में फंसना, इनके अंडो का शिकार करना, इनके त्वचा और मांस का अवैध शिकार आदि कारणों से इसकी प्रजाति धीरे-धीरे कम होते जा रही है। 

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