क्या हर घर स्वच्छ जल आएगा?

यदि पाइप से भी प्रदूषित जल ही गिरेगा तो फिर पाइप की जलापूर्ति का क्या फायदा होगा
Photo: Vikas Choudhary
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गांव-गांव, घर-घर पहले पाइप और नलके आएंगे और फिर उनमें साफ और पर्याप्त पानी आएगा। लेकिन कैसे? इन नलकों में साफ पानी कहां से आएगा? यह सवाल बजट के ऐलान में बहुत स्पष्ट नहीं है। जल आपूर्ति के लिए बजट में जो कहा गया है उसके परीक्षण की जरूरत है। आपको घर तक पाइप से साफ पानी पहुंचाने का एक स्वपन दिया गया है और बदले में आपसे 2024 तक का समय ले लिया गया है। इस बीच गिरते भू-जल स्तर और भीषण जलसंकट के समय में पानी के लिए सिवाय जमीन में निगाह गड़ा लेने के आखिर क्या रास्ता बचा है। हमने हर वो रास्ता तो बंद कर दिया जिसके चलते तालाब, जलाशय और कुओं को पानी मिलता था। वही पानी हमारे दुख- संकट के समय काम आता था।  अब वापस उन बंद रास्तों को खोलने का वक्त है जहां से पानी अपनी सही मंजिल को निकले। अन्यथा जब-जब बजट खुलेगा तो भारी- भरकम कोई स्वपन परियोजना ही बाहर निकलेगी।   

2011 की जनगणना के मुताबिक देश के कुल 24 करोड़ परिवारों में 7 करोड़ परिवार ही शोधित जल हासिल कर रहे हैं। वहीं, 70 फीसदी परिवारों को दूषित पानी ही मिल रहा है। इस प्रदूषण का इलाज पाइपलाइन कैसे करेगा? बजट में इसका कोई रोडमैप नहीं दिखाई देता। याद करिए देश में कितने चापाकल या हत्था (हैंडपाइप) आज आपके काम के रह गए हैं?  ज्यादातर हिस्सों में भू-जल प्रदूषण की समस्या के कारण इन हैंडपाइप से आर्सेनिक और अन्य भारी धातुओं वाला पानी ही निकल रहा है। यह तस्वीर खासतौर से उत्तर प्रदेश और बिहार के कई इलाकों में है। जहां, पानी के हैंडपाइप के इस्तेमाल पर पूरी तरह मनाही भी करनी पड़ी है। बीते ही वर्ष नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने गैर सरकारी संस्था दोआबा पर्यावरण समिति के एक मामले में पश्चिमी उत्तर प्रदेश के छह जिलों में सभी हैंडपाइप को सील करने का आदेश सुनाया था। साथ ही ग्रामीणों को स्वच्छ जल मुहैया कराने का आदेश दिया गया था। एनजीटी ने यह टिप्पणी भी जोड़ी थी कि संविधान के अनुच्छेद 21 में यह स्पष्ट है कि स्वच्छ वातावरण और स्वच्छ जल हासिल करना देश के सभी नागरिकों का बुनियादी अधिकार है। सरकारों को प्रदूषण पर रोक लगाकर इसे तत्काल सुनिश्चित कराना चाहिए।

अब वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने 2019-20 का बजट पेश करते हुए अपने भाषण में कहा है कि देश के प्रत्येक नागरिक को सुरक्षित और पर्याप्त जल मुहैया कराना सरकार की प्राथमिकता है। उन्होंने जल संसाधन और गंगा मंत्रालय को जलशक्ति मंत्रालय में तब्दील किया जाना इस दिशा में एक बड़ा कदम करार दिया है। वैसे नाम बदलने से पहले पुराने वाले जल संसाधन मंत्रालय को भी यही काम करना था।  अब जलशक्ति मंत्रालय ही जल संसाधन और जलापूर्ति के मामले का सर्वेसर्वा है। जल शक्ति अभियान के तहत यह मंत्रालय राज्यों में पाइपलाइन के सहारे हर घर जल पहुंचाएगा। बजट के दौरान कहा गया है कि खासतौर से ग्रामीण क्षेत्रों में यह काम ज्यादा ध्यान देकर किया जाएगा। 2024 तक प्रत्येक ग्रामीण परिवार तक पाइप से जलापूर्ति कर दी जाएगी। इस जलापूर्ति के लिए भू-जल का ही सहारा होगा। समस्या सिर्फ इतनी है कि पाइप बिछा देने का ऐलान तो नया है लेकिन भू-जल रीचार्ज करने का दावा नया नहीं है। साल-दर-साल प्यास गहरी हो रही है, जल हासिल करने के लियेे बोरिंग भी गहरी होती जा रही है। पूरी स्वछन्दता से निजी कम्पनियां बोतल बन्द कारोबार फैला रही हैं। पर क्या हम उतनी ही उन्मुक्तता से यह जल पी भी रहे हैं? कुछ तो अनमना सा होता है या होता होगा?  

2018 में तैयार हुई थी जलापूर्ति अभियान की भूमिका

नीति आयोग के पूर्व कार्यकारी अधिकारी अमिताभ कांत ने 14 जून, 2018 को पानी की स्थिति पर एक रिपोर्ट जारी की। इस रिपोर्ट का शीर्षक था "कंपोजिट वाटर मैनेजमेंट इंडेक्स (सीडब्ल्यूएमआई) ए नेशनल टूल फॉर वाटर मैनेजमेंट,मैनेजमेंट एंड इंप्रूवमेंट" इस रिपोर्ट में इस बात पर जोर दिया गया था कि पानी की आपूर्ति सीमित है और उसकी गुणवत्ता बेहद खराब। रिपोर्ट के मुताबिक देश में 60 करोड़ लोग भीषण जलसंकट का सामना कर रहे हैं। 75 फीसदी के पास जल के लिए उनके घर में कोई व्यवस्था नहीं है। 84 फीसदी ग्रामीणों के पास पाइप का पानी नहीं है। साथ ही देश का 70 फीसदी पानी प्रदूषित है।  

 बजट के मुताबिक जल जीवन अभियान की प्रगति और इसकी देखरेख पेजयल और स्वच्छता विभाग करेगा। इस विभाग का पूरा ध्यान स्थानीय स्तर पर पानी की एकीकृत मांग और आपूर्ति के लिए रहेगा। विभाग स्थानीय स्तर पर वर्षा जल संचयन (रेनवाटर हार्वेस्टिंग), भू-जल को रीचार्ज करने के साथ ही गंदे जल का इस्तेमाल कृषि में किया जा सके, इस पर भी ध्यान देगा। हालांकि गन्दे जल का शोधन कैसे होगा?  समूचे देश में जल जीवन मिशन के मकसद को पूरा करने के लिए अन्य केंद्रीय और राज्य सरकार की योजनाओं का भी समायोजन किया जाएगा।

हर घर जल अभियान के लिए खर्च होंगा जंगल का पैसा

सरकार ने जल शक्ति अभियान के तहत पहले चरण में देश के 256 जिलों में 1592 ब्लॉक ऐसे चुने हैं जहां भू-जल की स्थित संवेदनशील है या फिर अतिसंवेदनशील है। इस अभियान को पूरा करने के लिए विभिन्न योजनाओं के फंड का इस्तेमाल होगा साथ ही सरकार वन क्षतिपूर्ति फंड प्रबंधन और योजना प्राधिकर (कैंपा) का पैसा भी इसमें इस्तेमाल करेगी। जबकि कैंपा के पैसे का इस्तेमाल वनक्षतिपूर्ति के लिए है न कि अन्य अभियान के लिए। इस मुद्दे पर बाद में बहस भी छिड़ सकती है।

खर्च के लिए खजाना 

अब सरकार के अनुदान और मांगों के ब्यौरों को खंगालिये तो कुछ हद तक इन योजनाओं में कितना पैसा खर्च हो सकता है, इसका अंदाजा भी लगता है। केंद्रीय जल शक्ति मंत्रालय का 2019 - 20 का कुल बजट 8245.25 करोड़ रुपये है। इसमें आधारभूत संरचना पर खर्च करने के लिए पूंजी 391.47 रुपये है जबकि 7853.78 करोड़ रुपये राजस्व के तौर पर है।  जबकि बीते वित्त वर्ष में कुल संशोधित बजट 7612.52 करोड़ रुपये था।  इसके अलावा केंद्रीय जल शक्ति मंत्रालय के ही अधीन जलापूर्ति और स्वच्छता विभाग को इस बार बजट में कुल 20016.34 करोड़ रुपये का प्रावधान है जबकि बीते वित्त वर्ष में इस मद में 19992.97 करोड़ रुपये का संशोधित बजट दिया गया था।

जलापूर्ति और स्वच्छता विभाग के राष्ट्रीय ग्रामीण जलापूर्ति कार्यक्रम में इस वित्त वर्ष 2019-20 में 9150.36 करोड़ रुपये के बजट का प्रावधान किया गया है। जबकि बीते वित्त वर्ष 2018-19 में इस मद में 5391.32 करोड़ रुपये का संशोधित बजट दिया गया था। वहीं,  सामाजिक सेवाओं वाले मद में जलापूर्ति और स्वच्छता के लिए बजट को करीब दस गुना बढ़ाया गया है। इसमें बीते वित्त वर्ष 2018-19 में संशोधित बजट 192.06 करोड़ था जबकि इस बार 1147.93 करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया है।

विदर्भ और हर खेत में पानी पहुंचाने के बजट में 50 फीसदी कटौती

अब इस जल शक्ति मंत्रालय के भीतर अलग-अलग कुछ विशेष मदों की बात करें तो नदी जोड़ने के लिए बीते वित्त वर्ष में एक करोड़ रुपये दिए गए थे, इस बार भी एक करोड़ रुपये का बजट है। वहीं, महाराष्ट्र के मराठवाड़ा और विदर्भ में सूखे और कृषि की समस्या से निपटने के लिए विशेष सिंचाई परियोजना के तहत इस बार बजट घटा दिया गया है। बीते वित्त वर्ष में संशोधित 500 करोड़ रुपये दिए गए थे। इस बार बजट में सिर्फ 300 करोड़ रुपये ही अनुमानित हैं। इसके अलावा नदी संरक्षण के काम के लिए बजट में भी कटौती की गई  है। बीते वित्त वर्ष में 1620 करोड़ रुपये इस मद में दिए गए थे लिकन इस बार 1220 करोड़ रुपये ही आवंटित किए गए हैं।

कम हुआ मनरेगा का बजट 

भू-जल के लिए बजट में कमी की गई है। अटल भूजल योजना में बीते वित्त वर्ष संशोधित 4 करोड़ रुपये थे इस वर्ष महज एक करोड़ रुपये का प्रावधान है। वहीं, हर खेत को पानी योजना के तहत बीते वित्त वर्ष संशोधित बजट 2181.19 करोड़ रुपये था इस बार 1089.55 करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया है। बजट में करीब 50 फीसदी कटौती की गई है। वहीं, केंद्रीय भू-जल बोर्ड के बजट में भी मामूली कटौती हुई है। बीते वित्त वर्ष में बोर्ड के लिए संशोधित बजट 230.63 करोड़ था जो कि इस बार घटकर 229.40 करोड़ रुपये हो गया है।  भू-जल प्रबंधन और नियमन के लिए बजट में कोई अंतर नहीं किया गया है। बीते वित्त वर्ष में भू-जल प्रबंधन और नियमन के लिए 275 करोड़ रुपये दिए गए थे। इसमें बड़ा हिस्सा 195 करोड़ रुपये संरचना के लिए था। इस बार भी इतने ही बजट का प्रावधान किया गया है। बजट भाषण में जल, जल प्रबंधन, नदी की सफाई को सरकार की प्राथमिकता बताया गया है। वहीं, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हाल ही में कहा था कि महात्मा गांधी राष्ट्रीय रोजगार गारंटी कानून (मनरेगा) के बजट का बड़ा हिस्सा (करीब 60 फीसदी) गांवों में जल उपलब्धता के लिए खर्च किया जाएगा। इस बार मनरेगा का बजट 60 हजार करोड़ रुपये है, जबकि बीते वित्त वर्ष में संशोधित बजट 61084 करोड़ रुपये था।

अब गणित से बाहर निकलकर देश में जल की स्थिति समझिए

देश में प्रति व्यक्ति पानी की उपलब्धता 2001 में जहां 1816 घन मीटर थी वहीं, 2011 में घटकर 1545 घन मीटर पहुंच गई। 2025 तक अनुमान है कि प्रति व्यक्ति पानी की उपलब्धता घटकर 1345 घन मीटर रह जाएगी। भू-जल की स्थित और खराब है। एनजीटी में दाखिल किए गए एक हलफनामे के मुताबिक भारत दुनिया का सर्वाधिक भू-जल दोहन करने वाला देश है। वहीं, 80 फीसदी से ज्यादा भू-जल कृषि कार्यों के लिए किया जाता है। साथ ही अभी तक गलत तरीके से भू-जल दोहन करने वालों पर कोई जुर्माने का स्पष्ट प्रावधान नहीं है, नियम प्रक्रिया में है।

20 जुलाई, 2017 को सरकार की ओर से नेशनल कमीशन ऑन इंटीग्रटेड वाटर रिसोर्स डेवलपमेंट (एनसीआईडब्लयूआरडी) रिपोर्ट के आधार पर भारत में पानी की उपलब्धता का आंकड़ा जारी किया गया था। इस रिपोर्ट के मुताबिक वर्षा से हासिल होने वाले 4000 अरब घन मीटर सालाना पानी में करीब 2131 अरब घन मीटर पानी भाप बन जाता है। इसके बाद शेष 1869 अरब घन मीटर पानी मेंं सिर्फ 1123 अरब घन मीटर पानी सालाना हमारे पीने के लिए बचता है। इस 1123 अरब घन मीटर पेयजल में 699 अरब घन मीटर पानी सतह पर और 433 घन मीटर पानी भूमि जल के रूप में रहता है। 

सिर्फ सतह पर मौजूद साफ पानी का संकट नहीं है बल्कि भू-जल की स्थिति अत्यंत दयनीय है। एनजीटी में बीते वर्ष (2018 में) केंद्र की ओर से दाखिल किए गए हलफनामे में सरकार ने बताया था कि देश के भीतर 2009 में जहां 2700 अरब घन मीटर भूमिगत जल था वहीं अब 411 अरब घन मीटर जल ही धरती के नीचे बचा है। यह गिरावट की बेहद ही भयावह तस्वीर है। तय मानकों के तहत मेट्रो शहर में प्रति व्यक्ति 150 लीटर प्रतिदिन प्रति व्यक्ति जल की आपूर्ति होती है। यदि इसी मानक पर बचे हुए भूमिगत जल को इस्तेमाल करें तो दिल्ली जैसे मेट्रो शहर की 27 लाख आबादी एक दिन में यह जल खत्म कर देगी। 

केंद्रीय जल आयोग के मुताबिक भारत को सालाना 3 हजार अरब घन मीटर पानी की जरूरत होती है, जबकि यहां बारिश से औसत 4000 घन मीटर पानी मिलता है। हम इस वर्षा जल का  तीन चौथाई भी इस्तेमाल नहीं करते हैं। मनरेगा का यह पैसा हमारी इस आदत को बदल पाएगा, यह भी एक सवाल है?

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