नाइट्रोजन प्रदूषण से बढ़ता जल संकट, भारत में पहले ही गंभीर रूप ले चुकी समस्या

आशंका है कि 2050 तक भारत सहित वैश्विक स्तर पर नदियों के एक तिहाई उप-बेसिनों को नाइट्रोजन प्रदूषण के चलते साफ पानी की भारी किल्लत का सामना करना पड़ सकता है
भारतीय नदियों में बढ़ता प्रदूषण एक बड़ी समस्या बन चुका है जो पर्यावरण के साथ-साथ स्वास्थ्य को भी नुक्सान पहुंचा रहा है; फोटो: आईस्टॉक
भारतीय नदियों में बढ़ता प्रदूषण एक बड़ी समस्या बन चुका है जो पर्यावरण के साथ-साथ स्वास्थ्य को भी नुक्सान पहुंचा रहा है; फोटो: आईस्टॉक
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एक नए अध्ययन से पता चला है कि बढ़ते नाइट्रोजन प्रदूषण के चलते अगले 26 वर्षों में दुनिया भर में पानी की भारी किल्लत हो सकती है। वैज्ञानिकों का अंदेशा है कि 2050 तक वैश्विक स्तर पर नदियों के एक तिहाई उप-बेसिनों को नाइट्रोजन प्रदूषण के चलते साफ पानी की भारी कमी का सामना करना पड़ सकता है।

शोधकर्ताओं ने चेताया है कि पानी की यह कमी और गुणवत्ता में आती यह गिरावट 2050 तक पहले की अपेक्षा 300 करोड़ से ज्यादा लोगों को प्रभावित कर सकती है। आशंका है कि बढ़ते प्रदूषण के कारण नदी स्रोत इंसानों और अन्य जीवों के लिए "असुरक्षित" हो जाएंगे। मतलब की दुनिया जो पहले ही जल संकट के दौर से गुजर रही है, उसके सामने मुश्किलें कहीं ज्यादा बढ़ जाएंगी।

बता दें कि अपने इस अध्ययन में अंतराष्ट्रीय वैज्ञानिकों के एक दल ने वैश्विक स्तर पर नदियों के 10 हजार से ज्यादा उप-बेसिनों का विश्लेषण किया है। इस विश्लेषण के मुताबिक बेतहाशा बढ़ते नाइट्रोजन प्रदूषण ने न केवल पानी की कमी का सामना करने वाले नदी बेसिनों की संख्या में इजाफा किया है, साथ ही पानी की गुणवत्ता पर भी असर डाला है।

गौरतलब है कि नदियों के यह उप-बेसिन एक प्रकार की छोटी घाटियां होती हैं, जो स्वच्छ पानी का एक बड़ा स्रोत होती हैं। इन नदी घाटियों में बड़े पैमाने पर शहरी आबादी और आर्थिक गतिविधियां केंद्रित होती हैं। ऐसे में इनके जलमार्गों के दूषित होने का खतरा भी हमेशा बना रहता है।

जर्नल नेचर कम्युनिकेशन्स में प्रकाशित इस अध्ययन के जो नतीजे सामने आए हैं उनके मुताबिक 2010 में वैश्विक स्तर पर करीब एक-चौथाई यानी 2,517 उप-बेसिन पानी की कमी और गुणवत्ता में आती गिरावट से जूझ रहे थे। हालांकि यदि सिर्फ पानी की किल्लत की बात करें तो यह आंकड़ा 984 दर्ज किया गया था।

भारत के समस्या से निजात पाने के आसार कम

बता दें की जल गुणवत्ता में आती गिरावट के चलते भारत पहले ही उन हॉटस्पॉट में शामिल है जो पानी की गंभीर कमी से जूझ रहे हैं। वहीं अनुमान है कि आगे भी यह समस्या इसी तरह बनी रहेगी।

हाल ही में जारी इकोलॉजिकल थ्रेट रजिस्टर 2020 के अनुसार भारत में करीब 60 करोड़ लोग आज पानी की जबरदस्त किल्लत का सामना कर रहे हैं। भविष्य में यह आंकड़ा बढ़कर 140 करोड़ पर पहुंच जाएगी, जोकि आबादी के लिहाज से दुनिया में सबसे ज्यादा है।

यदि पानी का सबसे ज्यादा उपभोग करने वाले देशों की बात करें तो उसमें भी भारत शामिल है, जोकि हर साल 40,000 करोड़ क्यूबिक मीटर से भी ज्यादा पानी का उपभोग कर रहा है। जबकि हाल ही में एक्वाडक्ट वाटर रिस्क एटलस में भी जल संकट का सबसे ज्यादा सामना कर रहे 17 देशों की लिस्ट में भारत को 13वां स्थान दिया है। जो देश में बढ़ते जल संकट को दर्शाता है।

वहीं नाइट्रोजन प्रदूषण के प्रभावों को ध्यान में रखते हुए वैज्ञानिकों ने पाया है कि 2050 तक पानी की किल्लत और गुणवत्ता में आती गिरावट का सामना करने वाले इन नदी बेसिनों का यह आंकड़ा बढ़कर 3,061 पर पहुंच जाएगा।

वैज्ञानिकों का अनुमान है कि नाइट्रोजन प्रदूषण और बढ़ते दबाव के चलते इन सबबेसिनों में या तो पीने के लिए पर्याप्त पानी नहीं होगा और यदि होगा तो वो इतना दूषित होगा कि इंसानों और दूसरे जीवों के उपयोग के लायक नहीं रहेगा।

इसका मतलब है कि पानी की कमी और उसकी गुणवत्ता में आती गिरावट से वैश्विक स्तर पर 680 से 780 करोड़ लोग प्रभावित हो सकते हैं, जो पिछले अनुमान से करीब 300 करोड़ ज्यादा है।

वैज्ञानिकों का अंदेशा है कि नाइट्रोजन प्रदूषण के कारण भारत, चीन, दक्षिण पूर्व एशिया, मध्य यूरोप, उत्तरी अमेरिका और अफ्रीका में कई उप-बेसिन पानी की भारी कमी का केंद्र बन सकते हैं। इनमें से कई क्षेत्र तो पहले ही इस समस्या से जूझ रहे हैं।

वैज्ञानिकों के मुताबिक ये उप-बेसिन वैश्विक स्तर पर जमीन का करीब 32 फीसदी हिस्सा कवर करते हैं। इतना ही नहीं कुल आबादी का करीब 80 फीसदी हिस्सा यहां रह रहा है। देखा जाए तो यह क्षेत्र मानव अपशिष्ट की वजह से वैश्विक स्तर पर नदियों में होने वाले 84 फीसदी नाइट्रोजन प्रदूषण के लिए जिम्मेवार हैं।

आमतौर पर इन क्षेत्रों में गहन कृषि की जाती है। यह क्षेत्र दुनिया की करीब 44 फीसदी कृषि भूमि का उपयोग कर रहे हैं। दुनिया भर में उपयोग किया जाने वाला नाइट्रोजन युक्त 84 फीसदी उर्वरक और 53 फीसदी खाद इन्हीं क्षेत्रों में खप रहा है।

बता दें कि संयुक्त राष्ट्र ने 2030 के लिए सतत विकास के जो लक्ष्य (एसडीजी) तय किए थे, उनमें सभी के लिए साफ पानी की व्यवस्था करना भी एक है। हालांकि जिस तरह से दुनिया भर में जल संकट की समस्या गंभीर रूप लेती जा रही है, यह लक्ष्य उतना ही दूर होता जा रहा है।

विश्व मौसम विज्ञान संगठन ने भी दुनिया भर में जल संकट को उजागर करते हुए अपनी रिपोर्ट ‘स्टेट ऑफ ग्लोबल वाटर रिसोर्सेज 2022’ में लिखा था कि वैश्विक स्तर पर करीब 360 करोड़ लोग साल में कम से एक महीने जल संकट का सामना करने को मजबूर हैं। वहीं आशंका जताई गई थी कि यह आंकड़ा 2050 तक बढ़कर 500 करोड़ पर पहुंच जाएगा। देखा जाए तो भारत, दक्षिण अफ्रीका जैसे देश पहले ही साफ पानी की भारी किल्लत से जूझ रहे हैं।

बढ़ती आबादी, जलवायु परिवर्तन और तापमान समस्या में कर रहे इजाफा

वैश्विक स्तर पर बढ़ता तापमान, जलवायु परिवर्तन और पानी की बढ़ती मांग पहले ही जल संकट में इजाफा कर रही है। ऐसे में नाइट्रोजन प्रदूषण का बढ़ता दबाव इस समस्या को कहीं ज्यादा गंभीर बना देगा।

यदि बढ़ते नाइट्रोजन प्रदूषण की वजहों को देखें तो वैज्ञानिकों ने इसके लिए कृषि और बढ़ते शहरीकरण को जिम्मेवार माना है। बता दें कि इन सब बेसिनों को दूषित करने में सीवर का भी बहुत बड़ा हाथ है। आज मानव मानवीय गतिविधियां जल प्रणालियों में बड़ी मात्रा में नाइट्रोजन, रोगजनक, रसायनों और प्लास्टिक को उगल रही हैं। जो लौटकर हमारे अपने स्वास्थ्य और वातावरण पर आघात कर रहे हैं।

देखा जाए तो नाइट्रोजन पौधों और जीवों के विकास के लिए एक बेहद जरूरी पोषक तत्व होता है, लेकिन वातावरण में इसकी बहुत ज्यादा मात्रा पारिस्थितिक तंत्र के साथ-साथ साफ पानी की गुणवत्ता को प्रभावित कर सकती है। कृषि उर्वरकों से प्राप्त यह नाइट्रोजन, शैवाल के विकास में योगदान देता है जो जलमार्गों को अवरुद्ध कर सकता है, और समुद्री जीवन को खतरे में डाल सकता है।

वैज्ञानिकों का यह कहना है कि अभी बहुत देर नहीं हुई है, हमारे पास विकल्प मौजूद हैं और हम स्थिति में सुधार कर सकते हैं। लेकिन फिर भी उन्होंने चेताया है कि मॉडलिंग से प्राप्त सबसे आशावादी अनुमानों में भी, यूरोप, चीन और भारत जैसे महत्वपूर्ण कृषि क्षेत्रों में नाइट्रोजन प्रदूषण गंभीर स्तर पर रहेगा।

देखा जाए तो पानी एक ऐसी बुनियादी जरूरत है, जिसके बिना जीवन संभव नहीं। रहीम जी का दोहा भी है कि 'रहिमन पानी राखिए, बिन पानी सब सून'। मतलब की जल को हमेशा बचा कर रखना चाहिए क्योंकि जल है, तो जीवन है।

लेकिन शायद हमने अपने पुरखों की सलाह को गंभीरता से नहीं लिया है। इसी का नतीजा है कि आज मानवता गंभीर खतरों से घिरी है, जिनमें जल संकट भी एक है। हालांकि अभी भी बहुत देर नहीं हुई है, यदि हम मिलकर प्रयास करें तो स्थिति में सुधार किया जा सकता है। 

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