बिहार के गया जिले के चुड़ामन नगर की महादलित बस्ती में वर्षा जल संचयन की तैयारी चल रही हैं। फोटो: उमेश कुमार राय
बिहार के गया जिले के चुड़ामन नगर की महादलित बस्ती में वर्षा जल संचयन की तैयारी चल रही हैं। फोटो: उमेश कुमार राय

जल संकट का समाधान: बारिश के पानी को बेकार नहीं जाने देगा ये महादलित टोला

बिहार के गया जिले की महादलित बस्ती में एक टंकी बनाई जा रही है, जिसकी क्षमता 75 हजार लीटर है। इस टंकी में बारिश का पानी इकट्ठा किया जाएगा
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उमेश कुमार राय

डेढ़-दो दशक से फ्लोराइडयुक्त पानी पीने को विवश गया जिले के चुड़ामन नगर की महादलित बस्ती के लोग अब बारिश के पानी का संचयन कर उसे ही पेयजल के रूप में इस्तेमाल करेंगे। इसके लिए इसी टोले में स्थित एक सामुदायिक भवन के नीचे 75 हजार लीटर क्षमतावाली एक टंकी का निर्माण बिल्कुल अंतिम चरण में है और एक हफ्ते के भीतर यह सिस्टम काम करना शुरू कर देगा।

महादलित बस्ती के निवासी हरेंद्र मांझी कहते हैं, ‘इस महादलित बस्ती में पानी की बहुत किल्लत है। अव्वल तो दिनोंदिन भूजल स्तर नीचे जा रहा है और दूसरा जो पानी मिल भी रहा है, उसमें अत्यधिक फ्लोराइड है। टंकी बन जाने से न केवल फ्लोराइडयुक्त पानी से निजात मिलेगी, बल्कि पेयजल की किल्लत भी खत्म हो जाएगी।’

महादलित टोले में 142 घर हैं और इनमें से शायद ही कोई ऐसा घर होगा, जिसमें रहने वाले परिवार का कोई सदस्य फ्लोराइड के कारण विकलांग न हो। स्थानीय लोग बताते हैं कि कम से कम 40 लोग ऐसे हैं, जो पूरी तरह विकलांग हो चुके हैं। वे न तो ठीक से चल पाते हैं और न ही कोई काम ही ठीक से कर सकते हैं। उनके लिए लाठी ही सहारा है।

जानकार बताते हैं कि बारिश के पानी में फ्लोराइड व आर्सेनिक जैसे खतरनाक रसायन नहीं होते हैं, इसलिए न्यूनतम फिल्टर कर इसका इस्तेमाल पेयजल के रूप में किया जा सकता है। स्थानीय लोगों ने बताया कि सामुदायिक भवन की छत की लंबाई और चौड़ाई 30-30 फीट है। इस छत में जगह-जगह पाइप लगाया गया है, जिसके जरिए पानी को टंकी में भेजा जाएगा। टंकी की लंबाई व चौड़ाई 25-25 फीट है और गहराई साढ़े तीन फीट रखी गई है।

हरेंद्र मांझी ने बताया, ‘टंकी की जितनी क्षमता है, उसका आकलन कर हम इस नतीजे पर पहुंचे हैं कि सात से आठ परिवारों को नौ महीने तक 40-40 लीटर बारिश का पानी दिया जा सकता है।’

गया में सलाना औसतन 900 मिलीमीटर बारिश होती है। हालांकि, कई बार औसत से कम बारिश भी हुई है। पिछले साल गया में महज 750 मिलीमीटर बारिश हुई थी। बारिश के पानी के संचयन में स्थानीय लोगों की मदद कर रही प्रगति ग्रामीण विकास समिति से जुड़े आमिर हुसैन ने कहा, ‘अगर औसत बारिश होती है, तो टंकी भर जाने पर हमलोग अतिरिक्त वर्षा जल को पास के ही पुराने डगवेल में डाल देंगे ताकि भूगर्भ जल भी रिचार्ज हो जाए।’

वैसे इस डगवेल पर कुछ लोगों ने अपना दावा ठोंका है। समिति के पदाधिकारियों ने इसको लेकर बिहार सरकार को संपर्क किया है ताकि इसका इस्तेमाल भूगर्भ रिचार्ज करने में किया जा सके। इस इलाके में पहले 25 से 30 फीट खोदने पर ही पानी निकलने लगता था, लेकिन अभी 70 से 80 फीट खोदने पर भी मुश्किल से निकल पाता है।    

भूजल में फ्लोराइड को लेकर बिहार का गया जिला कुख्यात है। पेयजल में फ्लोराइड की सुरक्षित मात्रा 1 मिलीग्राम प्रति लीटर मानी जाती है, लेकिन गया में भूगर्भ जल में फ्लोराइड की मात्रा काफी ज्यादा है। यहां कहीं-कहीं तो पानी में 3 मिलीग्राम से भी अधिक फ्लोराइड मिला है।

बिहार के जनस्वास्थ्य अभियांत्रिकी विभाग की ओर से कुछ साल पहले की गई जांच में दर्जनभर ब्लॉक के गांवों में पानी में फ्लोराइड की मात्रा सामान्य से अधिक पाई गई थी। जांच में आमस, बांकेबाजार, बाराचट्टी, नगर (चंदौती), नीमचक बथानी समेत अन्य ब्लॉक के कई गांवों में पानी में फ्लोराइड की मात्रा सामान्य से अधिक मिली थी।

इस प्रोजेक्ट में आर्थिक मदद प्रगति ग्रामीण विकास समिति कर रही है। चुड़ामन नगर की शोभा देवी ने कहा, ‘हमलोग गरीब हैं, इसलिए पैसे से तो मदद नहीं कर पाए, लेकिन हां, हमने टंकी बनाने में श्रमदान जरूर किया।’ टंकी बन जाने के बाद कुछ समय तक प्रगति ग्रामीण विकास समिति के पदाधिकारी इसकी निगरानी करेंगे और बाद में इसकी देखरेख और रखरखाव का पूरा जिम्मा ग्रामीणों को दे दिया जाएगा। आमिर हुसैन ने कहा, ‘यह प्रायोगिक है और अगर सफल हो जाता है, तो हमारी कोशिश होगी कि इसका विस्तार किया जाए।’

पानी को लेकर काम करनेवाले विशेषज्ञों ने इस पहल की सराहना की है। गंगा मुक्ति आंदोलन से जुड़े रहे सामाजिक कार्यकर्ता अनिल प्रकाश ने इसे शानदार पहल बताते हुए कहा, ‘ये अनूठी पहल है और इसको प्रचारित किया जाना चाहिए। ऐसी ही व्यवस्था दूसरी जगहों पर होनी चाहिए। सरकार को भी चाहिए कि वह इसको प्रोत्साहित करे।’ 

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