27 वर्षों में 80 फीसदी तक बढ़ जाएगी पानी की मांग, भारत के कई इलाकों में काबू से बाहर हो जाएगा जल संकट

अगले 27 वर्षों में शहरों में रहने वाले करीब 240 करोड़ लोग गंभीर जल संकट का सामना करने को मजबूर होंगें। भारत इससे सबसे ज्यादा प्रभावित होगा
दिल्ली के गोविंदपुरी में पानी के लिए लगी लाइन; फोटो: विकास चौधरी
दिल्ली के गोविंदपुरी में पानी के लिए लगी लाइन; फोटो: विकास चौधरी
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हर गुजरते दिन के साथ सिर्फ भारतीय शहरों में ही नहीं बल्कि दुनिया के कई अन्य देशों में भी जल संकट गहराता जा रहा है। अनुमान है कि 2050 तक यह संकट कहीं ज्यादा विकराल रूप ले लेगा। कई शहरों में तो स्थिति इतनी ज्यादा खराब हो जाएगी, जिसको नियंत्रित करना करीब-करीब नामुमकिन हो जाएगा। यह जानकारी संयुक्त राष्ट्र द्वारा जारी नई रिपोर्ट 'वर्ल्ड वाटर डेवलपमेंट रिपोर्ट 2023' में सामने आई है। रिपोर्ट में जारी आंकड़ों के मुताबिक 2050 तक शहरों में पानी की मांग 80 फीसदी तक बढ़ जाएगी।

यदि मौजूदा आंकड़ों पर गौर करें तो वैश्विक स्तर पर शहरों में रहने वाले करीब 100 करोड़ लोग जल संकट का सामना कर रहे हैं। अनुमान है कि अगले 27 वर्षों में यह आंकड़ा बढ़कर 240 करोड़ तक जा सकता है। रिपोर्ट की मानें तो भारत इससे सबसे ज्यादा प्रभावित होगा।

शहरों में ही नहीं गांवों में भी बढ़ रहा है जल संकट

इतना ही नहीं रिपोर्ट के मुताबिक शहरों के साथ-साथ ग्रामीण क्षेत्रों में भी जल संकट की समस्या गंभीर होती जा रही है, जिसके लिए कहीं न कहीं भूजल का गिरता स्तर और नदियों, झीलों आदि में गिरती जल गुणवत्ता जिम्मेवार है।

यदि 2010 के आंकड़ों पर गौर करें तो दुनिया में हर वर्ष करीब 320 करोड़ लोग साल में कम से कम एक महीने पानी की किल्लत का सामना करने को मजबूर हैं। देखा जाए तो यह वैश्विक आबादी का 46 फीसदी हिस्सा हैं। जल संकट का सामना कर रहे इन लोगों में 80 फीसदी एशिया में बसते हैं। विशेष तौर पर इनमें से ज्यादातर लोग भारत, पाकिस्तान और चीन के हैं।

रिपोर्ट की मानें तो आज वैश्विक स्तर पर करीब 26 फीसदी यानी 200 करोड़ लोगों के पास सुरक्षित पेयजल उपलब्ध नहीं है, जबकि 46 फीसदी आबादी (360 करोड़ लोग) ऐसे वातावरण में जी रहे हैं जहां स्वच्छता का आभाव है।

देखा जाए तो पिछले 40 वर्षों से वैश्विक स्तर पर पानी का उपयोग हर वर्ष करीब एक फीसदी की दर से बढ़ रहा है। वहीं जैसे-जैसी जनसंख्या में वृद्धि और विकास हो रहा है इसके और बढ़ने की आशंका है। आज वैश्विक आबादी का करीब 10वां हिस्सा उन देशों में रह रहा है जहां जल संकट विकराल रूप ले चुका है।

देखा जाए तो हमारे पास जो मौजूदा जल संसाधन है उसका हम धड़ल्ले से दुरूपयोग कर रहे हैं। हम जल को दूषित करने से गुरेज नहीं कर रहे हैं। ऊपर से जलवायु में आता बदलाव जल चक्र में बदलाव कर रहा है जो इस संकट को कहीं ज्यादा गंभीर बना रहा है।

इस बारे में पिछले सप्ताह प्रकाशित एक अन्य रिपोर्ट से पता चला है कि यदि ऐसा ही चलता रहा तो अगले सात वर्षों में 2030 तक ताजे पानी की मांग, उसकी आपूर्ति से 40 फीसदी बढ़ जाएगी। नतीजन पानी को लेकर होती खींचतान कहीं ज्यादा गंभीर रूप ले लेगी।

मिलकर करना होगा समस्या का सामना

ऐसे में इस समस्या से बचने के लिए रिपोर्ट में आपसी सहयोग और साझेदारी की बात कही है। इस बारे में यूनेस्को के महानिदेशक ऑड्रे एजोले का कहना है कि सरकारों को पाने के मुद्दे पर आपसी सहयोग करना चाहिए।"

उनके अनुसार इससे पहले वैश्विक जल संकट नियंत्रण से बाहर हो जाए इसे रोकने के लिए वैश्विक स्तर पर मजबूत तंत्र स्थापित करने की तत्काल आवश्यकता है। जल हमारा साझा भविष्य है। इसे बराबर बांटने और इसके स्थाई प्रबंधन के लिए मिलकर काम करना जरूरी है।

गौरतलब है कि इसी उद्देश्य को ध्यान में रखते हुए 1977 के बाद से संयुक्त राष्ट्र इस सप्ताह 22 से 24 मार्च के बीच पहला जल सम्मलेन आयोजित कर रहा है। इस सम्मलेन में पानी से जुड़े वैश्विक मुद्दों पर दुनिया भर के मंत्री और राष्ट्राध्यक्ष चर्चा करेंगें। वो उन मुद्दों पर भी गौर करेंगें जिन्हें सरकारों द्वारा नजरअंदाज कर दिया गया था।

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