वर्ल्ड रिसोर्स इंस्टिट्यूट (डब्ल्यूआरआई) द्वारा जारी नवीनतम रिपोर्ट के अनुसार, दुनिया की आबादी का लगभग एक चौथाई हिस्सा गंभीर जल संकट का सामना कर रहा है। पानी का गंभीर संकट झेलने वाले 17 प्रमुख देश अपने क्रम के अनुसार क्रमशः कतर, इज़राइल, लेबनान, ईरान, जॉर्डन, लीबिया, कुवैत, सऊदी अरब, इरिट्रिया, यूएई, सैन मैरिनो, बहरीन, भारत, पाकिस्तान, तुर्कमेनिस्तान, ओमान और बोत्सवाना है। डब्ल्यूआरआई की मानें तो पानी की अत्यधिक कमी का सामना कर रहे यह 17 देश जल्द ही 'डे जीरो' जैसी स्थिति का सामना कर सकते हैं ।
गौरतलब है की गंभीर जल संकट को दर्शाने वाला यह शब्द 'डे जीरो ' उस समय से प्रचलित हो गया जब वर्ष 2018 में दक्षिण अफ्रीका का केप टाउन शहर अपने इतिहास के सबसे बुरे जल संकट के दौर से गुजर रहा था।
जहां एक ओर मध्य पूर्व और उत्तरी अफ्रीका सबसे तनावग्रस्त देशों में से 12 का घर है, वहीं भारत, जो की जल संकट के 13 वें पायदान पर है, जिसकी आबादी 16 अन्य देशों की कुल आबादी से भी तीन गुना अधिक है। गंभीर जल संकट का सामना कर रहे इन 17 देशों में कृषि क्षेत्र, उद्योग और नगरपालिकाओं द्वारा हर वर्ष उपलब्ध सतह और भूजल के औसतन 80 फीसदी हिस्से का उपयोग कर लिया जाता है। ऐसे में यदि जलवायु में आने वाले परिवर्तन या अन्य किसी कारण से यदि पानी की मांग और पूर्ति का यह संतुलन बिगड़ता है तो इसके गंभीर परिणाम हो सकते हैं और सूखे जैसी स्थिति बन सकती है ।
गहराता जा रहा है जल संकट, कोई भी नहीं रहेगा अछूता
डब्ल्यूआरआई में जल सम्बन्धी मामलों की वैश्विक निदेशक बेट्सी ओटो के अनुसार, "पानी सभी के लिए बहुत मायने रखता है"। वर्तमान में हम वैश्विक जल संकट का सामना कर रहे हैं। हमारी आबादी और अर्थव्यवस्था बढ़ती जा रही है और जिसकी पानी की आवश्यकता और मांग भी निरंतर बढ़ती जा रही है। लेकिन जलवायु परिवर्तन, पानी की बर्बादी और प्रदूषण ने इसकी आपूर्ति के लिए बड़ा खतरा पैदा कर दिया है।”
डब्ल्यूआरआई की रिपोर्ट में पानी की कमी को लेकर गंभीर चिंता जताई है और माना है कि पानी की कमी से अनेक सामाजिक और राजनीतिक समस्याएं खड़ी हो सकती है। जहां दुनिया भर में इसके कारण आपसी तनाव और संघर्ष बढ़ सकते हैं, खाद्य आपूर्ति प्रभावित हो सकती है, वहीं खनन और विनिर्माण जैसे पानी पर निर्भर उद्योगों के लिए गंभीर जोखिम उत्पन्न हो सकता है।
भारत के कई शहर भी कर रहे हैं गंभीर जल संकट का सामना
गत माह में चेन्नई में भी 'डे जीरो' जैसे हालात देखने को मिले थे, जब नल सूख गए थे, पानी की कमी के चलते स्कूलों को बंद करना पड़ा था। रेस्तराओं और होटलों का व्यवसाय बंद पड़ गया था । जल स्रोतों की सुरक्षा के लिए पुलिस तैनात करने पड़ी थी । वहीं दूर दूर के क्षेत्रों से ट्रेन और टैंकरों के माध्यम से पानी की आपूर्ति की गयी थी । यह स्थिति सिर्फ चेन्नई की नहीं है, देश में दिल्ली, मुंबई, हैदराबाद, भोपाल जैसे अनेक शहर आज जल संकट की गंभीर समस्या से त्रस्त हैं ।
हाल ही में नीति आयोग द्वारा जारी रिपोर्ट में भी यह बात स्वीकार की गयी है कि भारत के कई शहरों में जल संकट गहराता जा रहा है, और आने वाले वक्त में उसके और विकराल रूप लेने के आसार हैं। रिपोर्ट के अनुसार जहां 2030 तक देश की लगभग 40 फीसदी आबादी के लिए जल उपलब्ध नहीं होगा। वहीं 2020 तक देश में 10 करोड़ से भी अधिक लोग गंभीर जल संकट का सामना करने के लिए मजबूर हो जायेंगे।
गौरतलब है की देश के कई राज्यों में जलस्तर तेजी से नीचे गिरता जा रहा है, यदि इसको लेकर ठोस कदम नहीं उठाये गए तो जल संकट की यह स्थिति और भी भयावह रूप ले सकती है । एक ओर जहां कई राज्य सूखे जैसी स्थिति का सामना कर रहे है, वहीं मानसून ओर उसके बाद में बरसने वाला अनमोल जल नदियों का माध्यम से बह कर समुद्र में गिर जाता है, ओर व्यर्थ हो जाता है । यदि वर्षा जल संरक्षण पर जोर दिया जाये तो व्यर्थ हो जाने वाला यह जल, भू जल पर हमारी निर्भरता को कम कर सकता है और साथ ही कृषि के विकास में भी अहम् भूमिका निभा सकता है ।
अक्टूबर 2002 में देश के तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी जी ने भी बाढ़ और सूखे की समस्या से निपटने के लिए महत्वपूर्ण नदियों को जोड़ने की योजना बनायीं थी । प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी अपने पहले कार्यकाल में देश की 60 नदियों को जोड़ने की योजना को अपनी मंजूरी दे दी थी। उम्मीद है की आने वाले वक्त में जल्द ही हम इस योजना को मूर्त रूप लेते देख पाएंगे और भविष्य में बाढ़ एवं सूखे की समस्या पर प्रभावी रूप से नियंत्रण कर लिए जायेगा और देश में जल संकट की समस्या सदैव के लिए समाप्त हो जाएगी ।