वैश्विक स्तर पर पलायन में होने वाली 10 फीसदी वृद्धि के लिए जिम्मेवार जल संकट

भारत सहित दुनिया के 17 देश पहले ही भारी जल संकट का सामना करने को मजबूर हैं। इन देशों में दुनिया की करीब 25 फीसदी आबादी रहती है।
फोटो: यूनिसेफ
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वैश्विक स्तर में पलायन में होने वाली करीब 10 फीसदी की वृद्धि के लिए दिन प्रतिदिन गहराता जल संकट जिम्मेवार था । यह जानकरी हाल ही में वर्ल्ड बैंक द्वारा जारी एक नई रिपोर्ट एब्ब एंड फ्लो: वाटर, माइग्रेशन एंड डेवलपमेंट में सामने आई है। आंकड़ों के अनुसार आज दुनिया में प्रवासियों की संख्या 100 करोड़ से ज्यादा है।

देखा जाए तो हम कहां बसते और रहते हैं इसे हमेशा से जल की उपलब्धता ने प्रभावित किया है। पिछले कुछ दशकों में जिस तरह से जलवायु परिवर्तन के चलते दुनिया भर में जल संकट की समस्या विकराल रूप लेती जा रही है, उसने बड़े पैमाने पर लोगों और उनके पलायन को प्रभावित किया है। वैश्विक स्तर पर यदि प्रवासियों से जुड़े आंकड़ों को देखें तो दुनिया भर में करीब 28.1 करोड़ अंतर्राष्ट्रीय प्रवासी हैं जोकि दुनिया की कुल आबादी का करीब 3.6 फीसदी हिस्सा है। वहीं 1990 में इनकी संख्या करीब 15.3 करोड़ थी।

वर्ल्ड बैंक द्वारा दो वॉल्यूम में जारी नई रिपोर्ट के अनुसार पानी की अधिकता के स्थान पर उसकी कमी ने बड़े पैमाने पर पलायन को प्रभावित किया है। इस रिपोर्ट में शोधकर्ताओं ने 1960 से 2015 के दौरान 64 देशों में 189 जनगणनाओं में 44.2 करोड़ लोगों से जुड़े आंकड़ों का अध्ययन किया है।  जिससे पता चला है कि 1970 से 2000 के बीच वैश्विक स्तर पर पलायन में होने वाली करीब 10 फीसदी की वृद्धि वर्षा की कमी से जुड़ी थी। 

वर्षा से जुड़ी आपदाओं को दो भागों में बांटकर देखा जा सकता है पहली वो स्थिति है जब किसी क्षेत्र में औसत से अधिक वर्षा होती है। वहीं दूसरी स्थिति तब बनती है जब वर्षा सामान्य से कम होती जाती है।  वर्षा में आने वाली यह कमी सूखे को जन्म देती है। जब झीलों और जलाशयों में उपलब्ध पानी कम होने लगता है तो इससे जल संकट उत्पन्न हो जाता है। हालांकि देशों की आय के आधार पर वर्षा की कमी के कारण होने वाले प्रवास में काफी भिन्नता हो सकती है। रिपोर्ट से पता चला है कि बारिश की कमी के कारण सबसे गरीब तबके के पलायन की सम्भावना 80 फीसदी तक कम होती है। 

पहले ही गंभीर जल संकट का सामना कर रहा हैं भारत सहित 17 देश

यह भी पता चला है कि सूखे के चलते विकासशील देशों में जो आबादी ग्रामीण क्षेत्रों से शहरों की ओर पलायन करती है वो आमतौर पर कम शिक्षित होती है। रिपोर्ट के अनुसार जल संकट ने न केवल प्रवासियों की संख्या को प्रभावित किया था, साथ ही यह उनके कौशल को भी प्रभावित कर रही है। आमतौर पर वर्षा की कमी और सूखा ग्रस्त क्षेत्रों से प्रवास करने वाले लोग अन्य प्रवासी श्रमिकों की तुलना में कम पढ़े लिखे और कुशल होते हैं। यही वजह है कि जब वो एक स्थान से दूसरे स्थान को प्रवास करते हैं तो उन्हें तुलनात्मक रूप से कम मजदूरी मिलती है। यही नहीं उन्हें मिलने वाली बुनियादी सुविधाएं भी तुलनात्मक रूप से कम होती हैं। रिपोर्ट में यह भी सामने आया है कि जिन मध्यम आय वाले देशों में तेजी से शहरीकरण हो रहा है वहां सूखे के कारण ग्रामीण क्षेत्रों से शहरों की ओर पलायन करने वाले गैर कुशल श्रमिकों की संख्या में इजाफा हुआ है। 

जिस तरह से जलवायु परिवर्तन की समस्या बढ़ रही है उससे जल संकट की समस्या भी विकराल रूप लेती जा रही है। यह संकट पलायन को भी बढ़ावा दे रहा है क्योंकि वर्षा में आने वाली अनियमितता लोगों को कहीं और बेहतर संभावनाओं वाले क्षेत्रों में अवसरों की तलाश में जाने के लिए प्रेरित करती हैं। भारत सहित दुनिया के 17 देश पहले ही भारी जल संकट का सामना करने को मजबूर हैं। इन देशों में दुनिया की करीब 25 फीसदी आबादी रहती है।

गौरतलब है कि चेन्नई (भारत), साओ पाउलो (ब्राजील) और केप टाउन (दक्षिण अफ्रीका) जैसे दुनिया के कुछ बड़े शहर पहले ही 'डे जीरो' का सामना कर चुके हैं। पता चला है कि वर्षा की अनियमितता का सामना करने वाले करीब 85 फीसदी लोग कम और माध्यम आय वाले देशों में रहते हैं। 

हालांकि इसका यह मतलब कतई भी नहीं है कि सूखे से बचने के लिए बड़ी संख्या में लोग पलायन करने लग जाते हैं। वास्तव में गरीब तबके के पास अक्सर पलायन करने के साधन नहीं होते हैं। यह जानते हुए भी कि इससे उनकी आजीविका और स्थिति में सुधार हो सकता है वो लोग पलायन नहीं कर पाते हैं। अनुमान है कि मध्यम आय वाले देशों की तुलना में कमजोर देशों में रहने वाले नागरिकों के पलायन की सम्भावना चार गुना कम होती है।  

क्या है इस समस्या का समाधान

ऐसे में लोगों और उनकी सम्पदा को इन जल संकटों से बचाने के लिए कोई भी एक नीति पूरी तरह से प्रभावी नहीं हो सकती है। ऐसे में रिपोर्ट में बेहतर और स्मार्ट नीतियों की वकालत की है, जो लोगों और स्थान दोनों को लक्षित करती हैं। जिनकी मदद से आजीविका में सुधार करने के साथ-साथ जल सम्बन्धी संकटों को विकास के अवसरों में बदला जा सके।  

इसी तरह क्लाइमेट स्मार्ट एग्रीकल्चर और किसानों के नेतृत्व में सिंचाई व्यवस्था जलवायु परिवर्तन और वर्षा की अनियमितता से ग्रामीण आजीविका को बचा सकती है साथ ही यह पर्यावरण के भी अनुकूल होती हैं। इसके साथ ही जल का पुनर्वितरण जल संकट का सामना कर रहे शहरों के लिए एक समाधान पेश कर सकता है, इसके लिए शहरों का बेहतर नियोजन जरुरी है। 

आज जब पूरी दुनिया कोरोनावायरस जैसी महामारी और उसके कारण उपजे वित्तीय संकट का सामना कर रही है, तो ऐसे में सरकारों के लिए यह जरुरी हो जाता है कि वो ऐसी नीतियों को चुनें जो सीमित संसाधनों के साथ वर्षा में अनियमितता के कारण होने वाले पलायन से निपटने से निपटने में कहीं अधिक प्रभावी हों। 

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