
उत्तराखंड के टिहरी जिले के चमेली, जमनी, लोड़सी, लोयल, नाई, बमुंड, गाल, मुंडाला़ आदि वे गांव हैं जिन्हें राज्य सरकार की 15,647 गांवों को पीने के पानी का कनेक्शन देने वाली ‘हर घर नल’ योजना में शामिल किया गया है। इन गांवों में रहने वाले परिवार राज्य सरकार की ओर से घोषित लक्ष्य के अनुसार उन 1,84,124 परिवारों में शामिल हैं, जिन्हें इस वर्ष 31 मार्च तक पीने के पानी का कनेक्शन दिया जा चुका है।
इस योजना की हकीकत जानने के लिए ‘डाउन टू अर्थ’ ने राज्य के अत्यधिक दुर्गम क्षेत्रों में शामिल टिहरी जिले के दोगी पट्टी के करीब दर्जनभर गांवों का दौरा किया। इनमें से ज्यादातर गांवों में हर घर नल योजना का काम पूरा हो चुका है। योजना के अनुसार हर घर को 16 घंटे पानी दिया जाना है। लेकिन, हकीकत यह है कि दोगी पट्टी के इन गांवों में पानी तीसरे या चैथे दिन मुश्किल से 30 मिनट से लेकर एक घंटे तक के लिए मिल रहा है। यह पानी पीने के लायक नहीं। लोग इसे कपड़े धोने या पशुओं के लिए इस्तेमाल कर रहे हैं। पीने के पानी के लिए लोगों को अपने गांव से 2 से लेकर 8 किमी दूर जाना पड़ रहा है।
राज्य के एक बड़े हिस्से को शेष दुनिया से जोड़ने वाले एक प्रमुख हाईवे से लगता हुआ इलाका होने के बावजूद दोगी पट्टी आजादी से पहले और उसके बाद भी राज्य के सबसे पिछड़े और उपेक्षित इलाकों में शामिल रही है। पीने के पानी का संकट इस क्षेत्र के लिए नया नहीं है। गर्मी के दो महीने हर साल इस पट्टी के दर्जनों गांवों के लोगों को पानी की कमी से जूझना पड़ता है। लेकिन, अब यह संकट बढ़ गया है। क्षेत्र के ठीक नीचे निर्माणाधीन दो बड़ी योजनाओं चारधाम सड़क परियोजना और कर्णप्रयाग रेल लाइन के लिए की गई खुदाई के कारण जलस्रोतों में पानी कम हो गया। नतीजा यह हुआ कि सर्दियों के मौसम में भी लोग पानी की कमी से जूझने लगे।
नई परिस्थितियों ने गंगा नदी में गूलर के पास से पहले से स्वीकृत एक पंपिंग योजना तेजी से पूरी की गई। इस योजना के सहारे दोगी पट्टी के गांवों को राज्य सरकार द्वारा 6 जुलाई 2020 को घोषित ‘हर घर नल’ योजना में भी शामिल किया गया। इस योजना में पहले वर्ष यानी वर्ष 2020-21 में जिन 1, 84,124 घरों में पानी कनेक्शन दिया जाना था, उनमें दोगी पट्टी के गांवों के तमाम परिवारों को शामिल किया गया। ज्यादातर गांवों में योजना का काम पूरा भी हो गया और हर घर के बाहर पानी का नल लग गया। लेकिन, बात इससे आगे नहीं बढ़ पाई।
योजना के तहत हर घर में नल लगाने के साथ ही 16 घंटे पानी की सप्लाई भी दी जानी है, जो यहां संभव नहीं हो पा रहा है। स्थानीय निवासी रमेश चैहान बताते हैं, इस क्षेत्र में पानी के स्रोत सूख जाने या उनमें पानी कम हो जाने के कारण हर घर नल योजना को पंपिंग लाइन से जोड़ा गया। पंपिंग लाइन से हफ्ते में एक या दो बार पानी दिया जाता है। जो घरों में मुश्किल से आधा घंटे ही पहुंचता है। इस योजना का पूरा लाभ न मिल पाने की सबसे बड़ी वजह बिजली आपूर्ति ठीक न होना है। उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्रों में बिजली की आपूर्ति अनियमित बनी रहती है। इसका असर इस पंपिंग योजना भी पड़ रहा है।
ग्रामीण बताते हैं कि हर घर नल योजना से पानी तो मिला नहीं, उल्टे ठेकेदार ने काम करवाकर उनकी मजदूरी भी नहीं दी। काकड़सैंण के मोर सिंह पुंडीर ने बताया कि उन्होंने ठेकेदार के लिए करीब 5 लाख का काम किया था, लेकिन ठेकेदार ने डेढ़ लाख रुपये नहीं दिये। ऐसे में वे कई लोगों को मजदूरी नहीं दे पाये हैं। उन्होंने जल निगम के अधिकारियों से शिकायत की तो उन्होंने ठेकेदार से बात करने को कहा। लेकिन, अब ठेकेदार उनका फोन नहीं उठा रहा है।
पंपिंग योजना के साथ दूसरी बड़ी समस्या यह है कि बरसात के दिनों में नदी का पानी गंदला हो जाता है। इस पानी को इसी रूप में गांवों में पहुंचाया जाता है, जिससे बरसात के पूरे सीजन में पानी पीने के काम नहीं आता। लोग इस पानी को थोड़ा-बहुत इस्तेमाल करके कपड़े धोने या पशुओं के काम में इस्तेमाल करते हैं। चमेली गांव में श्याम सिंह एक दिन पहले बाल्टी में भरा गया पंपिंग योजना का पानी दिखाते हैं। बाल्टी में करीब एक इंच मिट्टी और रेत जमी हुई है। इसके बावजूद पानी गंदला है। वे कहते हैं, सरकार ने मान लिया कि हमें पानी मिल गया है, लेकिन इस पानी का हम क्या करेंगे? पशुओं को पिलाने के लिए भी एक दिन बर्तनों में भरकर रखते हैं, दूसरे दिन कपड़े से छानकर पिलाते हैं।
पहाड़ों के जलस्रोतों पर काम कर रहे प्रेम बहुखंडी का मानना कि दोगी के अलावा राज्य में कुछ अन्य जगहों पर भी इस तरह की पंपिंग योजनाएं बनाई गई हैं या बनाई जा रही हैं। लेकिन, इनकी पहली बड़ी समस्या बिजली आपूर्ति है। पंपिंग सेट लगाना है तो केवल बिजली के भरोसे न रहकर वहां बड़ा जेनरेटर भी लगाया जाना चाहिए। इसके अलावा मशीन में खराबी आने पर उसकी मरम्मत की कोई व्यवस्था नहीं होती। मरम्मत के लिए जरूरी सामान भी नहीं मिलता। ऐसे में एक बार पंप खराब हो जाए तो ठीक होने में कई हफ्ते लग जाते हैं। ऐसे में इस तरह की योजनाओं का तब तक कोई मतलब नहीं, जब तक इनमें बिना रुकावट जलापूर्ति की व्यवस्था करने के लिए सभी जरूरी तैयारियां पहले से न की जाएं।