मानसून की तैयारी में जुटे मध्य प्रदेश के ग्रामीण, ऐसे बचाएंगे अपने हिस्से का पानी

पानी की कमी झेल रहे मध्य प्रदेश के गांव अब तालाब बचाने की मुहिम चला रहे। ग्रामीणों के प्रयास देखकर सामाजिक संस्थाएं भी आगे आ रही है।
खंडवा जिले में कई गांव इस तरह के छोटे तालाब बना रहे हैं। फोटो: मनीष चंद्र मिश्रा
खंडवा जिले में कई गांव इस तरह के छोटे तालाब बना रहे हैं। फोटो: मनीष चंद्र मिश्रा
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मध्य प्रदेश में गर्मियों के मौसम में हर साल जल संकट की तस्वीरें आम हैं। बारिश अच्छी हो या खराब हर साल गर्मियों में मध्य प्रदेश के ग्रामीण इलाके पानी की कमी से परेशान होते है। रोज पानी के लिए 3 से 4 किलोमीटर का सफर काफी आम हो जाता है। हर साल तकलीफ झेलने के बाद भी आमतौर पर इस किल्लत से निजात पाने का बस एक ही उपाय है, आसमान की तरफ बारिश के लिए उम्मीद भारी नज़रों से देखना। हालांकि लगातार हो रही परेशानी ने प्रदेश के सैकड़ों गांव एक नई तरह की पहल कर रहे हैं। खंडवा, उमरिया, पन्ना, शिवपुरी जैसे जिलों के कई गांव स्व-प्रेरणा से अपने स्थानीय तालाबों को मानसून से पहले तैयार कर रहे हैं। 
खंडवा जिले के मोहिनियागांव निवासी सुनीता पटेल बताती हैं कि ऐसा पहली बार हुआ है कि गांव वाले खुद से ही अपना तालाब ठीक कर रहे हैं। वह बताती है कि पिछले कुछ सालों से हर साल पानी की दिक्कत आ रही है। इस साल तो मई महीने के शुरू में ही गांव के चापाकल सूख गए। गांव वालों ने बैठक में फैसला लिया कि इस बार वे खुद से अपने तालाब ठीक लड़ेंगे ताकि अगली बार बारिश में उसमें पर्याप्त मात्रा में पानी जमा हो सके। 
सुनीता हर सुबह धूप निकलने से पहले ही तालाब जाकर श्रमदान करती हैं। दूसरे गांव वाले भी अपनी सहूलियत के हिसाब से तालाब गहरीकरण का काम करते हैं। 
सामाजिक कार्यकर्ता सीमा प्रकाश बताती हैं कि सुनीता कर गांव के साथ खंडवा के 30 गांव वाले अपने अपने गांवो के तालाब ठीक कर रहे, ताकि मानसून में बारिश की एक एक बूंद सहेजी जा सके। गांव वालों के प्रयास को देखकर कुछ सामाजिक संगठन भी अपना सहयोग कर रहे हैं। पन्ना जिले के तकरीबन 10 गांव अपने तालाबों और कुओं का संरक्षण कर रहे हैं। पन्ना जिले के कल्याणपुर गांव के बद्री गोंड बताते हैं गांव में पानी की समस्या को देखते हुआ गांव वालों ने सामुदायिक बैठक का आयोजन किया और तय किया कि हम लोग दो साल से पानी के लिए दर दर भटक रहे है और हमारी फसले पानी की कमी से खराब हो जाती है। इस तरह पूरे साल भोजन की व्यवस्था कर पाना बड़ा मुश्किल होता है। ग्रामीणों ने इस बार अच्छी खेती के लिए पानी बचाने का फैसला किया है।
सिर्फ गहरीकरण नहीं तालाबों की मरम्मत भी जरूरी
खंडवा को तरह उमरिया जिले में भी तालाब गहरीकरण का काम चल रहा है। उमारिया जिले के करौंदी गांव के बल गोविंद सिंह बताते हैं कि वर्षों पहले उनके पूर्वजों ने तालाब बनवाया था। अब वह तालाब सार्वजनिक उपयोग में आती है। आमतौर पर प्रशासन तालाब को गहरा करता रहा है लेकिन पिछले साल गांव वालों ने महसूस किया कि तालाब पर्याप्त गहरा है फिर भी पानी बारिश के दो महीने में ही खत्म हो जाता है। बल गोविंद सिंह बताते हैं कि गांव वालों ने पाया कि पानी तालाब के किनारों से रिस जाता है। इसबार श्रमदान के तहत गांव के लोग तालाब के किनारे की मिट्टी खोदकर उसमे काली मिट्टी भर रहे हैं। इससे पूरे साल तालाब का पानी बचा रहेगा। 
कानूनी पेचीदगी की वजह से सफल नहीं हो पाया मनरेगा 
उमरिया के वीरेंद्र गौतम मानते हैं कि मनरेगा के तहत तालाब गहरीकरण का काम गंभीरता से नहीं होता है। पिछले तीन साल से मज़दूरों को उनका पैसा ठीक से नहीं मिला है। साथ ही, कई तालाब निजी संपत्ति पर बने हैं और उन्हें मनरेगा के तहत लाने के लिए कैन कानूनी प्रक्रियायों से गुजरना होता है। इस पेचीदगियों की वजह से हर साल बारिश से पहले तालाब का गहरीकरण नहीं हो पाता। श्रमदान की वजह से अब हर तरह के सार्वजनिक तालाबों की मरम्मत हो रही है। 

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