ग्राउंड रिपोर्ट: चार धाम मार्ग और रेलवे लाइन की भेंट चढ़ गया उत्तराखंड के तीन दर्जन गांवों का पानी

विकास के साइड इफेक्ट: पहले चार धाम मार्ग परियाेजना और अब ऋषिकेश-कर्णप्रयाग रेल परियोजना ने दोगी पट्टी के गांवों में पीने का पानी का संकट खड़ा कर दिया है
ऋषिकेष-कर्णप्रयाग रेल परियोजना के तहत गूलर गदेरे पर पुल का निर्माण किया जा रहा है। फोटो: त्रिलोचन भट्ट
ऋषिकेष-कर्णप्रयाग रेल परियोजना के तहत गूलर गदेरे पर पुल का निर्माण किया जा रहा है। फोटो: त्रिलोचन भट्ट
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ऋषिकेश-बदरीनाथ हाईवे करीब 90 किमी गंगा नदी के किनारे टिहरी जिले से होकर गुजरता है। यहां सड़क के किनारे कुछ जगहों पर एक-दो दुकानें और कुछ ढाबों के अलावा बाकी कुछ नजर नहीं आता। लेकिन, सड़क के ठीक ऊपर सैकड़ों किमी तक एक विस्तृत और दुर्गम भूभाग फैला है, जिसमें सैकड़ों गांव हैं। इसे टिहरी जिले की दोगी पट्टी कहा जाता है। टिहरी रियासत के दौर से ही दोगी पट्टी उपेक्षा का दंश झेलती रही है।

आजादी के बाद भी इस पट्टी के लोग पीने के पानी के लिए परंपरागत जलस्रोतों पर निर्भर रहे हैं। लेकिन, अब इस पट्टी के करीब 3 दर्जन गांवों के परंपरागत जलस्रोत विकास की भेंट चढ़ गये हैं। कहने को तो यहां के कई गांवों को जल जीवन मिशन और राज्य सरकार की हर घर नल योजना से जोड़ा गया है, लेकिन इसके बावजूद लोगों को पीने का पानी नहीं मिल पा रहा है।

ऋषिकेश से करीब 45 किमी दूर एक छोटा सा कस्बा है कोडियाला। यहां कुछ होटल और दूसरी दुकानें हैं। उत्तराखंड पर्यटन निगम इसे ऋषिकेश तक की जाने वाली रिवर राफ्टिंग के बेस कैंप के रूप में रूप में इस्तेमाल करता है। रिवर राफ्टिंग के कारण कोडियाला काफी प्रसिद्ध हो चुका है। लेकिन, इस कस्बे से सिर्फ 200 मीटर ऊपर करीब 50 परिवारों वाला दोगी पट्टी का सिंगटाली गांव प्यासा है।

इस गांव के लिए बिछाई गई पाइप लाइन कुछ समय पहले चार धाम सड़क परियोजना की भेंट चढ़ गई थी। गांव वालों ने किसी तरह प्लास्टिक के पाइप जोड़कर फिर से पानी की अस्थाई व्यवस्था की, लेकिन अब कर्णप्रयाग रेलवे लाइन के लिए बन रही सुरंग ने गांव के जलस्रोत को प्रभावित कर दिया है।

सिंगटाली की ग्राम प्रधान कुसुम राणा और उनके पति सामाजिक कार्यकर्ता सुनील राणा बताते हैं, एक प्राकृतिक गदेरे से उनके गांव तक एक पाइप लाइन बिछाई गई थी, इस पाइप लाइन से ही पूरे गांव के लिए पानी सप्लाई होती थी, लेकिन जब चार धाम मार्ग परियोजना शुरू हुई तो इस परियोजना के चलते यह पाइप लाइन टूट गई। कई महीने तक लोग 4 किमी दूर से पानी ढोते रहे। हमने अपने संसाधनों से किसी तरह प्लास्टिक पाइप जोड़कर फिर से पानी गांव के मुहाने तक पहुंचाया।  अब सभी लोग यहीं से पानी भर रहे हैं। लेकिन, इस बीच गांव के ठीक नीचे बन रहीं रेलवे लाइन की सुरंग और गांव के पास बन रहे रेलवे ब्रिज के कारण मुख्य स्रोत में भी पानी कम हो गया है।

कोडियाला से कुछ पहले एक और छोटा सा कस्बा है गूलर। गूलर में एक पहाड़ी नाला गंगा से मिलता है। इस नाले का नाम है गूलर गदेरा। गूलर से अब दोगी पट्टी के करीब दो दर्जन गांवों को जोड़ने वाली एक सड़क बन गई है। पहले इस पट्टी के लोग गूलर गदेरे के साथ-साथ पूरे-पूरे दिन पैदल चलकर अपने गांव पहुंचते थे। इसी नई बनी सड़क पर करीब पांच किमी चलकर ठीक नीचे करीब 500 मीटर की खाई में गूलर गदेरे पर इन दिनों रात-दिन काम चल रहा है। यहां रेलवे लाइन का पुल बन रहा है। गदेरे के दोनों तरफ पहाड़ियों पर रेलवे लाइन की सुरंग के मुहाने हैं। दोनों पहाड़ियों की सुरंगों को मिलाने के लिए यहां पुल बन रहा है।

लाॅकडाउन के कारण बेरोजगार हुए मोर सिंह पुंडीर ने यहां चाय की छोटी से दुकान खोली है। पुल निर्माण के काम में लगे मजदूर उनके मुख्य ग्राहक हैं। मोर सिंह पुंडीर का गांव यहां से करीब 15 किमी दूर काकड़सैंण हैं। वे कहते हैं कि इस पट्टी के गांवों में मई और जून के महीनों में पानी की समस्या पहले भी होती थी। दूर से पानी ढोना पड़ता था। लेकिन, इस साल पानी फरवरी में ही सूख गया था। जिन स्रोतों पर पहले गर्मी के महीनों में पानी कम होता था, वे फरवरी में ही सूख गये थे। वे बताते हैं कि यहां से करीब 20 किमी दूर तिमली गांव और उसके कई तोकों में पानी के सभी स्रोत सूख गये हैं। सरकारी नलों में पानी नहीं आ रहा है। इस गांव के लोग 8 किमी दूर से खच्चरों में पानी ढो रहे हैं।

करीब 10 किमी आगे चलकर दोगी पट्टी का चमेली गांव है। रास्ते में चमेली ग्राम पंचायत के ठाठ, दस एकड़ और गाल जैसे 5-7 परिवारों के तोक भी मिलते हैं। चमेली गांव के कुछ परिवार सड़क के नीचे और कुछ ऊपर रहते हैं। सड़क में गांव वालों की कुछ दुकानें हैं। इन्हीं में से एक दुकान पर 60 वर्षीय जैंता देवी हैं। पानी की समस्या के बारे में पूछने पर वे कुछ दूरी पर बना पानी का पुराना टैंक दिखाती हैं। जैंता देवी कहती हैं कि इस गांव में पहले 3 धारे (परंपरागत जलस्रोत) थे। इनमें से एक स्रोत से पाइप लाइन के जरिये पानी इस टैंक में आता था और गांव के तोकों में जाता था। जबसे नीचे टनल बनी है, तीनों स्रोत सूख गये हैं। अब टैंक किसी का काम का नहीं रहा।

जैंता देवी की दुकान के सामने एक नल लगा हुआ है। वे नल खोलती हैं, नल में कुछ मिनट गंदला पानी आता है और फिर बंद हो जाता है। वे कहती हैं कि ये सरकारी योजना (हर घर नल) का कनेक्शन है। इस नल को गंगा नदी की पंपिंग योजना से जोड़ा गया है, लेकिन इसमें हफ्ते में दो दिन पानी आता है। बरसात में गंगा का पानी गंदला हो जाता है, जिससे इस योजना का पानी पीने लायक नहीं रहता।

चमेली से वापस लौटकर दूसरी दिशा में करीब 14 किमी पर लोड़सी ग्राम पंचायत के काकड़सैंण और बिलोगी तोक हैं। इन गांवों से होकर गंगा पंपिंग योजना की मेन पाइप लाइन गुजर रही है। लोड़सी के प्रधान अनिल चैहान कहते हैं कि हमें पंपिंग योजना से पानी तो नहीं मिला। लेकिन, जो मिला वह दिखाने के लिए वे सड़क से करीब 100 मीटर नीचे ले गये। यहां करीब 500 मीटर तक बड़ी पाइप लाइन रास्ते के बीचोबीच जमीन से बाहर नजर आ रही है, जिससे रास्ता पूरी तरह से बंद है। अनिल चैहान बताते हैं, पानी तो नहीं आया, लेकिन गांव के गाय-भैंसों के लिए ये रास्ता पूरी तरह बंद हो गया है। जानवरों को एक जगह से दूसरी जगह ले जाना मुश्किल है। कई बार जल निगम से शिकायत कर चुके हैं। कोई सुनवाई नहीं है।

दोगी पट्टी के परंपरागत स्रोतों का पानी आखिर कहां चला गया। इसे रेलवे लाइन के लिए बदरीनाथ हाईवे पर बनाई जा रही सुरंगों के एग्जिट प्वाॅइंट्स के पास जाकर आसानी से समझा जा सकता है। सुरंग के इन निकासी द्वारों से लगातार 10 से 15 इंच पानी बाहर निकल रहा है। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि जो पानी पहले दोगी पट्टी के ऊंचाई वाले क्षेत्रों में चश्मों के रूप बाहर आता था, वह पहाड़ी के नीचे सुरंग बन जाने के कारण अब पहाड़ की तलहटी में जमा होकर एग्जिस्ट प्वाॅइंट से बाहर निकल रहा है।

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