उत्तराखंड में भूजल कानून की तैयारी, क्या हैं मायने?

नदियों के प्रदेश उत्तराखंड में भी पांच ब्लॉक ऐसे हैं जहां भूजल संकट है। इनमें से दो ब्लॉक हरिद्वार में और तीन ब्लॉक उधमसिंहनगर में हैं।
उत्तराखंड सरकार जल्द ही भूजल कानून लागू करने जा रही है। फोटो: creative commons
उत्तराखंड सरकार जल्द ही भूजल कानून लागू करने जा रही है। फोटो: creative commons
Published on

नदियों के प्रदेश उत्तराखंड में भी पांच ब्लॉक ऐसे हैं जहां भूजल संकट है। इनमें से दो ब्लॉक हरिद्वार में और तीन ब्लॉक उधमसिंहनगर में हैं। इनमें दो ब्लॉक ऐसे हैं जो ओवर एक्सप्लॉइटेज हैं यानी यहां भूजल का अंधाधुंध दोहन किया गया है। जबकि तीन ब्लॉक सेमी क्रिटिकल स्थिति में चिन्हित किए गए हैं, यानी आने वाले समय में यहां समस्या गहरा सकती है।

राज्य में भूजल को नियंत्रित करने के प्रयास वर्ष 2013 से किये जा रहे हैं। लेकिन अब तक सफलता नहीं मिली है। अब एक बार फिर सिंचाई विभाग ने भूजल को नियंत्रित करने के लिए ड्राफ्ट तैयार किया है। जिसे अगली कैबिनेट बैठक में मंजूरी के लिए भेजा जाएगा। कैबिनेट इस प्रस्ताव को पास कर देती है तो राज्य में भूजल के अंधाधुंध दोहन पर लगाम लगायी जा सकेगी।

इस ड्राफ्ट को तैयार करने वाले सिंचाई विभाग के मुख्य अभियंता एनके यादव ने बताया कि भूजल दोहन को लेकर अलग-अलग श्रेणियां निर्धारित की गई हैं। पहले चरण में किसानों को इससे अलग रखा गया है। क्योंकि भूजल निकालने के लिए यदि किसानों पर टैक्स लगाया तो इससे उनकी खेती की लागत बढ़ जाएगी। जबकि होटल, कमर्शियल इमारत, मल्टी स्टोरी बिल्डिंग्स, कोऑपरेटिव सोसाइटी समेत उन सभी को इसमें शामिल किया गया है जो भूजल निकालने के लिए 0.5 हॉर्स पॉवर से उपर का मोटर इस्तेमाल कर रहे हैं।

एनके यादव ने बताया कि पहले चरण में नैनीताल, हल्द्वानी, देहरादून, हरिद्वार, उधमसिंहनगर, टनकपुर जैसे मैदानी हिस्सों में भूजल पर लगाम कसने की तैयारी है। जिसमें मोटर लगाने के लिए लाइसेंस शुल्क दस हज़ार रुपये निर्धारित की गई है। सिंचाई विभाग के इस ड्राफ्ट को यदि कैबिनेट मंजूरी दे देती है तो एक हजार गैलन पानी निकालने पर डेढ़ रुपये रॉयल्टी चार्ज होगा। बोरिंग के दौरान ही पीजोमीटर लगाए जाएंगे। जिससे मोटर के जरिये निकाले गए पानी की मात्रा पता चल सकेगी। राज्य के पर्वतीय हिस्सों को फिलहाल इससे बाहर रखा गया है।

मुख्य अभियंता एनके यादव का कहना है कि इस तरह हम भूजल को नियंत्रित कर सकेंगे। जो लोग आवश्यकता से अधिक पानी निकाल रहे हैं, उनकी निगरानी की जा सकेगी। साथ ही लाइसेंस देते समय इन लोगों को बाध्य किया जाएगा कि ये अपनी इमारतों में वर्षा जल संचयन का प्रबंध करें।

योजना आयोग के सलाहकार एचपी उनियाल कहते हैं कि हमारे पास पूरे राज्य का ठीक-ठीक अध्ययन भी नहीं है कि राज्य में भूजल की स्थिति क्या है। वर्ष 2013 में उत्तराखंड वाटर मैनेजमेंट एंड रेग्यूलेटरी कमीशन बनाया गया था, लेकिन वो कानूनी पेंच में फंसा हुआ है और अब तक अस्तित्व में नहीं आया। इसलिए इस दिशा में बहुत काम भी नहीं हो पा रहा। वे बताते हैं कि अभी हमें ये ही नहीं पता कि बारिश का कितना पानी ज़मीन में समा रहा है। ग्राउंड वाटर कितना रिचार्ज हो रहा है। जिससे ये तय हो सके कि हम कितना भूजल दोहन कर सकते हैं।

सेंट्रल ग्राउंड वाटर बोर्ड के मुताबिक उत्तराखंड में 2.27 बिलियन क्यूबिक मीटर (बीसीएम) पानी सालाना भूजल रिचार्ज के लिए उपलब्ध है। जबकि हमारे पास सालाना 2.10 बीसीएम भूजल उपलब्ध है। हमारे पास 500 प्राकृतिक जलस्रोत हैं, 500 चेकडैम्स हैं, जिन्हें हम रिचार्ज कर सकते हैं। इसके लिए काफी काम करना होगा। बोर्ड की रिपोर्ट के मुताबिक देहरादून, हरिद्वार, ऊधमसिंहनगर के कुछ हिस्से ऐसे भी हैं जहां भूजल में नाइट्रेट की मात्रा 45 मिलीग्राम प्रति लीटर से अधिक है। यानी यहां भूजल भी प्रदूषित हो रहा है।

देहरादून जैसे मैदानी हिस्सों में बड़े पैमाने पर भूजल का दोहन किया जा रहा है। पेयजल के लिए भूजल पर निर्भरता बढ़ती जा रही है। भूजल दोहन के लिए कमर्शियल बोरवेल की संख्या बढ़ती जा रही है। वर्ल्ड रिसोर्स इंस्टीट्यूट की रिपोर्ट ने भी उत्तर भारत में भूजल की खतरनाक स्थिति पर चिंता जतायी है। ऐसे में भूजल पर नियंत्रण के लिए सख्त कानून की जरूरत है। धरती से जितना पानी हम निकाल रहे हैं, उतना वापस नहीं भरेंगे तो एक समय में ये खाली हो जाएगा। जबकि आने वाली पीढ़ियों का भी इस पानी पर हक है।

Related Stories

No stories found.
Down to Earth- Hindi
hindi.downtoearth.org.in