पारंपरिक ज्ञान ही जल संकट का अकेला समाधान नहीं: शेखावत

केंद्रीय जल शक्ति मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत ने डाउन टू अर्थ से कहा कि जल जीवन मिशन के तहत 100 फीसदी का लक्ष्य 2024 तक पूरा कर लिया जाएगा
पारंपरिक ज्ञान ही जल संकट का अकेला समाधान नहीं: शेखावत
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घरों को पाइप के जरिए वाटर सप्लाई पहुंचाने वाली तमाम पुरानी योजनाएं विफल रही हैं। क्या आप सोचते हैं कि जल जीवन मिशन 100 फीसदी वाटर सप्लाई सभी ग्रामीण घरों को पाइपलाइन के जरिए पहुंचा पाएगा? साथ ही यह जल जीवन मिशन पुरानी योजनाओं से कैसे अलग है?

देश में अब तक चाहे केंद्र की सरकार रही हो या प्रदेश की सरकार सभी ने पहले की योजनाओं में सिर्फ इस दृष्टिकोण को ही ध्यान में रखा कि लोगों को अपने आस-पास की परिधि में ही हैंडपंप, स्टैंड पोस्ट्स या भू स्तरीय जलाशयों से पीने का पानी उपलब्ध हो जाए। जबकि पहली बार हम पाइपलाइन के जरिए 100 फीसदी स्वच्छ जल आपूर्ति की बात कर रहे हैं। आंकड़ों के हिसाब से देखें तो आज देश के भीतर सिर्फ 18 फीसदी घरों में पाइपलाइन के जरिए पेयजल की आपूर्ति होती है। इसी आंकड़े के आधार पर यह कहा जाता है कि पहले की योजनाएं विफल हुई हैं। वास्तविकता में पुरानी योजनाओं का मंतव्य सिर्फ लोगों की पानी तक पहुंच को बनाना था। यदि ऐसे देखें तो आज 80 फीसदी आबादी तक पानी की पहुंच बन गई है। हम जनभागीदारी पर जोर दे रहे हैं। इसमें गैर लाभकारी और अन्य संगठन को भी शामिल किया गया है। हमें पूरा विश्वास है कि राज्यों के सहयोग से निश्चित तौर पर स्वच्छ अभियान की तरह इस लक्ष्य को भी पूरा करेंगे।   
जलापूर्ति की ज्यादातर योजनाएं भू-जल या सतह जल पर ही निर्भर हैं ऐसे में मिशन के तहत पानी के स्रोतों की स्थिरता को किस तरह बरकरार रखा जाएगा?
निश्चित रूप से स्थिरता एक चिंता का विषय है। खासकर भू-जल की स्थिरता और भी बड़ा प्रश्न है क्योंकि अब तक का अनुभव जो है उसमें चाहे राज्य की योजनाएं हो या केंद्र के सहयोग वाली योजनाएं सब जगह यह चुनौती सामने आई है। लेकिन पहली बार हमने किसी योजना में जल स्रोत की स्थिरता और ग्रे-वाटर डिस्पोजल (बाथरूम, किचन आदि से निकलने वाला गंदा पानी) का भी ध्यान रखा है। यह सामान्य अनुभव है कि घर में जाने वाला पानी लगभग 75 फीसदी ग्रे-वाटर के रूप में बाहर आता है। इसका उपचार करके या तो सिंचाई या फिर भू-जल रीचार्ज में उसका उपयोग किया जाएगा। पिछले कई वर्षों से महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी कानून (एमजीएनआरईजीए) के तहत प्राकृतिक संसाधनों के प्रबंधन परियोजनाओं के रूप में भी यह काम किया जा रहा था। हालांकि किए जा रहे काम और जरूरी तकनीकी के बीच एक खाई है। हम काम और तकनीकी के कन्वर्जेंस के तहत इस पर और अधिक जोर देंगे। 15वें वित्त आयोग ने भू-जल रीचार्ज परियोजनाओं के लिए अपनी संस्तुति में 30,000 करोड़ रुपये का आवंटन किया है
शौचालय निर्माण के अलग-अलग मिशन के तहत यह देखा गया कि ठेकेदार काम में शामिल होते थे और बेहद निम्न स्तर का काम उनके जरिए किया जाता था। जलशक्ति अभियान में ऐसा न हो इसके लिए क्या किया गया है?
स्वच्छ भारत मिशन लोगों की भागीदारी से शुरू हुई पहल थी। पहली बार इस छोटे से कदम से महिला सशक्तिकरण भी दिखा। इसी तरह जल जीवन मिशन में समुदाय स्तर पर पानी समितियां ही परियोजना को लागू कराने वाली संरक्षक हैं। इससे समुदायों के बीच स्वामित्व का भाव पैदा होगा और परियोजनाएं टिकाऊ होंगी। परियोजना में वस्तुओं की गुणवत्ता और दरों की सीमाएं तय होने से न सिर्फ सरंचनाएं गुणवत्तापूर्ण होंगी बल्कि ठेकेदारों की नजर में यह एक मुनाफे का स्रोत नहीं होगा।
हमारे देश में जल प्रबंधन का मॉडल विकसित करने वाले कई प्रतीकात्मक गांव थे लेकिन रुचि खत्म होने और सहयोग न मिलने के कारण यह लुप्त हो रहे। जल शक्ति अभियान कैसे इस समस्या का समाधान करेगा?
देश में कई ऐसे क्षेत्र हैं जिनमें बेहतर काम हुए हैं। कुछ ऐसे भी क्षेत्र हैं जहां उन्हें प्रेरणा नहीं मिली है। ऐसे कई प्रतीकात्मक गांव भी विफल हुए जिन्होंने बिना तकनीकी ज्ञान के काम किया। अनुकूल परिणाम न मिलने के कारण वे हतोत्साहित हो गए। हमें भू-गर्भ संरचनाओं के अध्ययन और उन्हें पहचानने की जरूरत है। अनुकूल परिणाम से ही प्रेरणा मिलती है, इसलिए तकनीकी ज्ञान की भी जरूरत है। हमने कुल 25 लाख वर्ग किलोमीटर भू-जल संकट क्षेत्र में 11 लाख वर्ग किलमीटर जलभर (एक्विफर) की मैपिंग की है। मैपिंग का काम पूरा होते ही हमें सही तकनीकी के इस्तेमाल और उपयोग का पता चलेगा। सही तकनीकी से ही परियोजनाएं प्रभावी होंगी। साथ ही समुदाय, गांव और जिले एक साथ इससे प्रेरित होंगे और प्रतिस्पर्धी रूप से काम करेंगे।
जानकारों का मानना है कि पारंपरिक ज्ञान से ही जलसंकट का समाधान निकल सकता है। जलशक्ति अभियान इस ज्ञान को प्रेरित करने के लिए क्या कर रहा है?
यह कहना सही नहीं है कि पारंपरिक ज्ञान ही जलसंकट का अकेला समाधान है। लेकिन हां हमारे पूर्वजों ने कई वर्षों के अनुभव और अभ्यास से किसी खास क्षेत्र के लिए खास तकनीकी विकसित की थी। मिसाल के तौर पर जलसंकट वाले बुंदेलखंड में बुंदेला और चंदेला राजों ने हजारों तालाब बनाए। इन तालाबों ने पूरे क्षेत्र को जलसुरक्षित क्षेत्र बनाया। इतन लंबे समय अंतराल में कुछ तालाब नष्ट हो गए तो कुछ लुप्त हो गए। ऐसे जलाशयों का पुनरुद्धार किया गया है जिसके काफी बड़े परिणाम आए हैं। ऐसे उदाहरण जैसलमेर और बाड़मेर में भी मिलते हैं। जलशक्ति अभियान 256 जलसंकट वाले चिन्हित जिलों में किया गया। इसमें पानी के इस्तेमाल की जागरुकता, जलाशयों के पुनरुद्धार, वर्षा जल संचय और समुदायों की क्षमता को बढ़ाने का काम था। अभी तक मिशन से लाखों लोग जुड़े हैं। साथ ही कई पारंपरिक जलस्रोतों का पुनरुद्धार किया गया है। यह गतिविधियां हमें जल सुरक्षा देंगी।
इस मिशन में बड़ी संख्या में समुदायों की क्षमता विकसित करने के लिए निवेश की जरूरत है। केंद्र राज्यों के साथ मिलकर किस तरह काम की योजना बना रही है?
स्वच्छ भारत मिशन के दौरान हमने समुदायों के व्यवहार परिवर्तन पर काम किया। एक बार समुदायों के भीतर परियोजनाओं के लिए स्वामित्व भाव और जागरुकता पैदा होगी तो समाजिक शक्ति खुद-ब-खुद बढ़ेगी। इसके अतिरिक्त पिछले वर्ष हमने अटल भूजल योजना लांच की जिसे जल जीवन मिशन के तहत चलाया जा रहा है। इसमें निम्न भू-जल क्षेत्रों में सुधार के लिए 6,000 करोड़ रुपये क्षमता विकास कार्यक्रमों और मांग आधारित परियोजनाओं के लिए हैं।

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