शहरों में बढ़ते जल संकट के लिए जिम्मेवार है 'अमीरों की जीवनशैली', अपने हिस्से से ज्यादा पानी की कर रहे है खपत

शहरों में रहने वाले करीब 100 करोड़ लोग आज जल संकट का सामना करने को मजबूर है। वहीं आशंका है 2050 तक यह आंकड़ा बढ़कर 237.3 करोड़ पर पहुंच जाएगा
शहरों में बढ़ते जल संकट के लिए जिम्मेवार है 'अमीरों की जीवनशैली', अपने हिस्से से ज्यादा पानी की कर रहे है खपत
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क्या आप जानते हैं कि शहरों में बढ़ते जल संकट की सबसे बड़ी वजह क्या है? कई लोग इसके लिए पानी की घटती उपलब्धता, सूखा और पर्यावरण से जुड़े अन्य कारकों को जिम्मेवार मानते है, लेकिन एक नई रिसर्च से पता चला है कि अमीरों की जीवनशैली और आदतें शहरों में पानी की गंभीर कमी के लिए जिम्मेवार प्रमुख कारकों में से एक हैं।

रिसर्च के मुताबिक आलिशान घरों में रहने वाले यह लोग अपने बगीचों, स्विमिंग पूल और कारों को धोने के लिए बड़ी मात्रा में पानी की खपत करते हैं, जिसकी कीमत शहर के कमजोर तबके को चुकानी पड़ती है। नतीजन शहर में मौजूद कमजोर और वंचित समुदायों को अपनी बुनियादी जरूरतों को पूरा करने के लिए भी संघर्ष करना पड़ता है। यदि कुल मिलकर देखें तो यह सामाजिक असमानताएं क्षेत्र में जल आपूर्ति की दीर्घकालिक स्थिरता को खतरा पैदा कर रही हैं।

जर्नल नेचर सस्टेनेबिलिटी में प्रकाशित इस रिसर्च के नतीजे दर्शाते हैं कि सामाजिक असमानताएं, पर्यावरणीय कारकों, जैसे जलवायु में आते बदलाव या बढ़ती शहरी आबादी की तुलना में शहरों में बढ़ते जल संकट के लिए कहीं ज्यादा जिम्मेवार है।

हालांकि यह अध्ययन दक्षिण अफ्रीका के केप टाउन शहर पर आधारित है लेकिन साथ ही अपने इस अध्ययन में शोधकर्ताओं ने बैंगलोर, चेन्नई, जकार्ता, सिडनी, मापुटो, हरारे, साओ पाउलो, लंदन, मियामी, बार्सिलोना, बीजिंग, टोक्यो, मेलबर्न, इस्तांबुल, काहिरा, मास्को, मैक्सिको सिटी और रोम जैसे 80 शहरों में समान मुद्दों पर प्रकाश डाला है।

यदि केप टाउन को देखें तो वहां अमीर-गरीब के बीच की खाई काफी गहरी है। जहां उच्च और उच्च माध्यम आया वाला परिवार औसतन हर दिन  2,161 लीटर पानी का उपयोग करता है वहीं कमजोर तबके से सम्बन्ध रखने वाला परिवार औसतन हर दिन केवल 178 लीटर पानी ही उपयोग करता है।

इस बारे में यूनिवर्सिटी ऑफ रीडिंग में हाइड्रोलॉजिस्ट और अध्ययन से जुड़ी शोधकर्ता प्रोफेसर हन्नाह क्लोक का कहना है कि जलवायु परिवर्तन और जनसंख्या में होती वृद्धि का मतलब है कि बड़े शहरों में पानी कहीं ज्यादा महंगा संसाधन बनता जा रहा है। लेकिन हमने पाया है कि कमजोर तबके को अपनी रोजमर्रा की जरूरतों को पूरा करने के लिए जल संकट का सामना करना पड़ रहा है, उसकी सबसे बड़ी वजह सामाजिक असमानता है।  

उनका कहना है कि दुनिया में 80 से भी ज्यादा बड़े शहर पिछले दो दशकों में सूखे और पानी के बढ़ते उपयोग के चलते जल संकट से पीड़ित हैं। अनुमान है कि भविष्य में यह संकट कहीं ज्यादा बढ़ जाएगा, क्योंकि दुनिया के कई हिस्सों में अमीर-गरीब के बीच की खाई बढ़ती जा रही है।

उनका कहना है कि यह सामाजिक, आर्थिक और पर्यावरणीय असमानता के बीच मौजूद घनिष्ठ संबंधों को दर्शाता है। ऐसे में जब तक हम शहरों में पानी को साझा करने के उचित तरीके विकसित नहीं करते तब तक सभी को इसके परिणाम भुगतने होंगें।

बढ़ते जल संकट से सबसे ज्यादा प्रभावित होगा भारत

देखा जाए तो पानी का अनुचित उपयोग और जलवायु संकट दोनों ही इस बढ़ती कमी के लिए जिम्मेवार हैं। जलवायु संकट भी आज बड़ा खतरा बनता जा रहा है जो तापमान में वृद्धि करने के साथ-साथ बारिश के पैटर्न को भी प्रभावित कर रहा है, जिससे जल संकट की समस्या और बढ़ रही है।

अनुमान है कि शहरों में आने वाले वर्षों में जल संकट कहीं ज्यादा गंभीर रूप ले लेगा। आज शहरों में रहने वाले करीब 100 करोड़ लोग यानी एक तिहाई शहरी आबादी जल संकट का सामना करने को मजबूर है। वहीं आशंका है 2050 तक यह आंकड़ा बढ़कर 237.3 करोड़ पर पहुंच जाएगा, जो शहरी आबादी का करीब आधा हिस्सा है।

रिसर्च के मुताबिक इससे सबसे ज्यादा प्रभावित भारत की शहरी आबादी होगी। संयुक्त राष्ट्र द्वारा जारी नई 'वर्ल्ड वाटर डेवलपमेंट रिपोर्ट 2023' के मुताबिक 2050 तक शहरों में पानी की मांग 80 फीसदी तक बढ़ जाएगी इस बारे में प्रकाशित एक अन्य रिपोर्ट के हवाले से पता चला है कि यदि ऐसा ही चलता रहा तो 2030 तक ताजे पानी की मांग, उसकी आपूर्ति से 40 फीसदी बढ़ जाएगी। नतीजन पानी को लेकर होती खींचतान कहीं ज्यादा गंभीर रूप ले लेगी।

संयुक्त राष्ट्र प्रमुख एंटोनियो गुटेरेस ने भी पानी की बर्बादी को लेकर कहा था कि "मानवता अपने जल रूपी जीवनरक्त को बर्बाद कर रही है।" उनके अनुसार हम अपने जल संसाधनों का बहुत ज्यादा दोहन कर रहे हैं और उसको बिना सोचे समझे व्यर्थ बहा रहे हैं। ऐसे में इस समस्या से बचने के लिए आपसी सहयोग और साझेदारी जरूरी है। ध्यान रखना होगा कि पानी एक अमूल्य संसाधन है इसकी बर्बादी, खुद हमारे लिए संकट पैदा कर रही है।

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