भारत में हर साल तीन सेंटीमीटर कम हो रहा है पानी का भंडार

जमीन के ऊपर जमा पानी, मिट्टी में नमी, बर्फ तथा भूजल के कुल संग्रहण में दुनिया भर में कमी रिकॉर्ड की गई है
Photo: Akshay Deshmane
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पानी की कमी से जूझ रही दुनिया के लिए एक और बुरी खबर आई है। खासकर भारत के लिए यह काफी परेशान वाली रिपोर्ट है। 

विश्व मौसम विज्ञान संगठन (डब्ल्यूएमओ) द्वारा जारी एक नई रिपोर्ट, ‘2021 स्टेट ऑफ क्लाइमेट सर्विसेज़’ के अनुसार, 20 वर्षों (2002-2021) के दौरान स्थलीय जल संग्रहण में 1 सेमी. प्रति वर्ष की दर से गिरावट दर्ज की गई है।

सबसे ज्यादा गिरावट अंटार्कटिका और ग्रीनलैंड में देखी गई है। हालांकि रिपोर्ट के अनुसार सघन आबादी तथा कम अक्षांश वाले कई क्षेत्रों में भी जल संग्रहण में गिरावट दर्ज की गई है।

इन क्षेत्रों में भारत भी शामिल है, जहां संग्रहण में कम-से-कम 3 सेमी प्रति वर्ष की दर से गिरावट दर्ज की गई है। कुछ क्षेत्रों में यह गिरावट 4 सेमी. प्रति वर्ष से भी अधिक रही है।

यदि अंटार्कटिका और ग्रीनलैंड में जल संचयन की गिरावट को छोड़ दिया जाए तो सबसे अधिक गिरावट भारत ने दर्ज किया है। अतः डब्ल्यूएमओ के विश्लेषण के अनुसार, भारत 'स्थलीय जल संग्रह में गिरावट का सबसे बड़ा हॉटस्पॉट' है। भारत के उत्तरी भाग में सबसे ज्यादा गिरावट दर्ज की गई है।

मानचित्र में लाल रंग से प्रदर्शित क्षेत्र उक्त समयावधि के दौरान जल संचयन में व्यापक गिरावट को इंगित करते हैं। ये क्षेत्र जलवायु परिवर्तन और/या मानवीय गतिविधियों के कारण बुरी तरह से प्रभावित हैं। गौरतलब है कि इस मानचित्र में ग्रीनलैंड और अंटार्कटिका शामिल नहीं हैं, क्योंकि इनके जल संचयन में आई गिरावट के समक्ष अन्य महाद्वीपों के जल संचयन में गिरावट की प्रवृत्तियाँ तुच्छ प्रतीत होती हैं।

स्थलीय जल संग्रहण को भू-सतह के ऊपर और उपसतह में उपलब्ध जल अर्थात्, मिट्टी में नमी, बर्फ तथा भूजल के योग के रूप में परिभाषित किया जा सकता है। मानव विकास के लिए जल एक प्रमुख आधार है। लेकिन पृथ्वी पर उपलब्ध कुल पानी का केवल 0.5 प्रतिशत ही उपयोग योग्य है और मीठे जल के रूप में उपलब्ध है।

दुनिया भर के जल संसाधन मानव तथा प्रकृति से संबंधित विभिन्न तनावों के कारण अत्यधिक दबाव का सामना कर रहे हैं। इनमें जनसंख्या वृद्धि, शहरीकरण और मीठे जल की घटती उपलब्धता शामिल हैं।

डब्ल्यूएमओ ने कहा है कि जल संसाधनों पर पड़ने वाले दबाव के लिए मौसम की चरम घटनाएँ भी जिम्मेदार हैं जिन्हें विभिन्न क्षेत्रों में देखा जा सकता है।

भारतीय परिदृश्य

भारत के संदर्भ में बात करें तो जनसंख्या वृद्धि के कारण प्रति व्यक्ति जल उपलब्धता घट रही है। औसत वार्षिक प्रति व्यक्ति जल उपलब्धता लगातार घट रही है। यह वर्ष 2001 के 1,816 क्यूबिक मीटर की तुलना में वर्ष 2011 में घटकर 1,545 क्यूबिक मीटर हो गई।

‘आवास और शहरी मामलों के मंत्रालय’ के अनुमानों के अनुसार, प्रति व्यक्ति जल उपलब्धता वर्ष 2031 में और घटकर 1,367 क्यूबिक मीटर हो जाएगी। ‘फाल्कनमार्क वाटर स्ट्रेस इंडिकेटर’ के अनुसार, भारत की 21 नदी घाटियों में से 5 'निरपेक्ष जल न्यूनता' (प्रति व्यक्ति जल उपलब्धता 500 क्यूबिक मीटर से कम) की श्रेणी में हैं।

5 नदी घाटियां 'जल न्यूनता' (प्रति व्यक्ति जल उपलब्धता 1,000 क्यूबिक मीटर से कम) और 3 'जल तनाव' (प्रति व्यक्ति जल उपलब्धता 1,700 क्यूबिक मीटर से कम) की श्रेणी में हैं।

'डाउन टू अर्थ' की वार्षिक "स्टेट ऑफ इंडियाज एनवायरमेंट, इन फिगर्स 2020 " के अनुसार, वर्ष 2050 तक 6 नदी घाटियाँ 'निरपेक्ष जल न्यूनता', 6 ‘जल न्यूनता’ और 4 ‘जल तनाव’ की श्रेणी में शामिल हो जाएंगी। ‘डाउन टू अर्थ’ की यह रिपोर्ट भारत के केंद्रीय जल आयोग के अनुमानों पर आधारित है।

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