जलवायु परिवर्तन और अत्याधिक पानी के दोहन के कारण निकट भविष्य में नदियां एशिया के कई हिस्सों से गायब हो सकती हैं, जिसके कारण बिजली संयंत्रों को ठंडा करने के लिए पर्याप्त पानी नहीं होगा। अध्ययन में पाया गया कि ऊर्जा के लिए कोयले को जलाने वाले मौजूदा और भविष्य में लगने वाले नए बिजली संयंत्र पानी के बिना बंद हो सकते हैं, जिससे बिजली संकट बढ़ने की आशंका है। यह अध्ययन एनर्जी एंड एनवायरनमेंट साइंस पत्रिका में प्रकाशित हुआ है।
अध्ययन के सह-अध्ययनकर्ता और एसोसिएट प्रोफेसर जेफरी बेइलिकी ने कहा कि जलवायु परिवर्तन के प्रभावों के कारण मौसम बदल रहा है, इससे चरम मौसम की घटनाएं बढ़ रही हैं, जिसमें या तो तेज मूसलाधार बारिश होगी या अधिक सूखा पड़ेगा। प्रोफेसर जेफरी बेइलिकी ओहियो स्टेट यूनिवर्सिटी में नागरिक, पर्यावरण, और जिओडेटिक इंजीनियरिंग और जॉन ग्लेन कॉलेज ऑफ पब्लिक अफेयर्स विभाग में हैं।
उल्लेखनीय है कि बिजली संयंत्र - कोयला, परमाणु और प्राकृतिक गैस बिजली संयंत्रों को ठंडा करने के लिए पानी की आवश्यकता होती है, इसलिए जब बारिश नहीं होगी तो नदी में पानी का प्रवाह भी कम होगा, जिसके कारण बिजली संयंत्र को ठंडा नहीं किया जा सकेगा।
संयुक्त राज्य अमेरिका में कुछ बिजली संयंत्र पहले से ही इस समस्या से गुजर रहे हैं, बेइलिकी ने कहा, जहां चरम मौसम पैटर्न, विशेष रूप से गर्म महीने लगातार बढ़ रहे हैं, जिसने पानी की आपूर्ति को कम कर दिया है।
इस अध्ययन से पता चलता है कि यह एशिया के विकासशील हिस्सों जैसे मंगोलिया, दक्षिण पूर्व एशिया, भारत और चीन के कुछ हिस्सों में और भी बड़ी समस्या होने की आशंका है, जहां 2030 तक 400 गीगावाट से अधिक क्षमता के नए कोयला-आधारित बिजली संयंत्र लगाने की योजना बनाई गई है। शोधकर्ताओं ने पाया कि बढ़ती बिजली उत्पादन भी समस्या का एक हिस्सा है, एक ही समय में पानी की अधिक मांग होना, जलवायु परिवर्तन पानी की आपूर्ति को काफी सीमित कर देता है।
अध्ययन के प्रमुख अध्ययनकर्ता और ओहियो स्टेट के एक पूर्व डॉक्टोरल स्टूडेंट, योपिंग वांग ने कहा, क्षमता विस्तार और जलवायु परिवर्तन संयुक्त रूप से बिजली संयंत्रों को ठंडा करने के लिए पानी की उपलब्धता को कम करने वाला है। द यूनिवर्सिटी ऑफ टेनेसी के एक शोध सहायक प्रोफेसर वांग ने यह शोध ऑस्ट्रिया में इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट फॉर एप्लाइड सिस्टम्स एनालिसिस में फेलोशिप पर रहते हुए किया।
संयंत्र को ठंडा करना, संयंत्र के संचालन की क्षमता के लिए महत्वपूर्ण है, इसके बिना मशीनरी ज़्यादा गरम हो सकती है, जिससे संयंत्र बंद हो सकता है जिसके कारण घरों और व्यवसायों की बिजली बाधित हो सकती है, और इससे और अधिक प्रदूषण बढ़ सकता है।
शोधकर्ताओं ने मौजूदा और भविष्य में लगने वाले नए कोयला-संचालित बिजली संयंत्रों के डेटाबेस का विश्लेषण किया, और पूरे क्षेत्र में पानी की आपूर्ति पर संभावित दबाव का मूल्यांकन करने के लिए उच्च-रिज़ॉल्यूशन वाले हाइड्रोलॉजिकल मानचित्रों के साथ उस जानकारी को जोड़ा। फिर उन्होंने विभिन्न जलवायु परिदृश्यों को लागू किया। इसमें औद्योगिक स्तरों से ऊपर 1.5, 2 और 3 डिग्री सेल्सियस के वैश्विक तापमान में वृद्धि देखी गई जबकि, पेरिस समझौते में तापमान को 2 डिग्री सेल्सियस से नीचे रखने का संकल्प लिया गया था।
तब शोधकर्ताओं ने संयंत्रों को ठंडा करने की विभिन्न प्रणालियों और कोयला जलने के बाद के सीओ2 कैप्चर उपकरणों के संभावित उपयोग और उन्हें चलाने के लिए आवश्यक पानी पर अध्ययन किया। वैंग ने कहा कि, संख्याओं से पता चला है कि सभी बिजली संयंत्रों को ठंडा करने के लिए पर्याप्त पानी नहीं है, लेकिन यह स्थानीय चीजों के परिवर्तनशीलता पर भी निर्भर करता है।
उन्होंने कहा कि एशिया में संयंत्रों की योजना और अनुमति देने वाली एजेंसियों को चाहिए कि वे प्रत्येक बिजली संयंत्र के पास उपलब्ध जल का मूल्यांकन करें, अन्य संयंत्रों द्वारा पानी के उपयोग को भी ध्यान में रखे। बेइलिकी ने कहा कि इसके लिए भविष्य में लगने वाले नए बिजली संयंत्रों की संख्या कम करने जैसे कठिन फैसलों की जरुरत पड़ सकती है।
उन्होंने कहा कि अर्थव्यवस्था को विकसित करने और पर्यावरण की रक्षा करने के बीच अक्सर एक दबाव होता है। इस अध्ययन के कुछ परिणाम बताते हैं तथा हम उम्मीद करते हैं कि आप इन समस्याओं को देखेंगे, इसलिए आपको चुनिंदा तौर पर अपनी योजनाओं को बदलना होगा, लेकिन मौजूदा बिजली संयंत्रों को भी कम करना होगा, क्योंकि आप नए बिजली संयंत्रों को जोड़ रहे हैं, जो पानी के लिए अधिक प्रतिस्पर्धा पैदा कर रहे हैं।
जहां एक ओर आपको, आपकी अर्थव्यवस्था को चलाने वाले बिजली संयंत्रों को पानी की जरूरत है, वहीं दूसरी ओर आपको यह भी ध्यान में रखना होगा कि पारिस्थितिक तंत्र और लोगों को भी पानी की जरूरत है।