भारत के अधिकतर शहरों में भूजल का स्तर लगातार गिर रहा है। देश में 2030 तक पानी की कुल मांग का आधे से भी कम उपलब्ध होगा। नीति आयोग की रिपोर्ट के मुताबिक तब तक भारत 1,498 बिलियन क्यूबिक मीटर की मांग के मुकाबले मात्र 744 बिलियन क्यूबिक मीटर पानी की आपूर्ति कर पाएगा, दूसरे शब्दों में कहें तो 50 फीसदी से अधिक की कमी होगी।
अब शोधकर्ताओं की एक अंतरराष्ट्रीय टीम ने बड़े पैमाने पर सिंचाई के हाइड्रोलॉजिकल मॉडल में गंभीर समस्याओं का खुलासा किया है। हाइड्रोलॉजिकल मॉडल दुनिया भर में भूजल निकालने के अनुमानों के बारे में जानकारी देते हैं। यह शोध बर्गन विश्वविद्यालय और अन्य प्रमुख शोध संस्थानों के द्वारा किया गया है।
शोधकर्ताओं का तर्क है कि दुनिया भर में मीठे या ताजे पानी का सबसे अधिक उपयोग सिंचाई के लिए किया जाता है। इसके लिए जमीन से निकाले गए पानी की मात्रा का गलत आकलन, स्थायी जल प्रबंधन को खतरे में डालता है। जिससे बड़े पैमाने पर सामाजिक और पर्यावरणीय नुकसान हो सकते हैं।
शोधकर्ताओं का मानना है कि बड़े पैमाने पर हाइड्रोलॉजिकल मॉडल द्वारा सिंचाई के लिए निकाला गया पानी अंतरराष्ट्रीय सिंचाई जल निकासी (आईडब्ल्यूडब्ल्यू) का अनुमान सही नहीं हैं। क्योंकि वे अनिश्चितताओं के बारे में सही जानकारी नहीं देते हैं।
खासकर यह सिंचाई की इंजीनियरिंग या कृषिविद अवधारणा पर आधारित हैं, इस प्रकार अन्य प्रासंगिक सामूहिकों के महत्व और प्रथाओं की अनदेखी करते हैं जैसे कि पारंपरिक सिंचाई प्रथा आदि।
इन प्रथाओं के खतरों का उदाहरण देने के लिए शोधकर्ताओं ने एक पानी के मॉडल का उदाहरण दिया। जिसने मलावी में किसानों द्वारा वास्तव में उगाई गई फसलों के बारे में गलत धारणाओं के कारण 60 लाख लोगों को पानी के बीमा भुगतान किए बिना छोड़ दिया गया।
चूंकि ये अनुमान विश्व जल विकास रिपोर्ट, वैश्विक पर्यावरण आउटलुक और विश्व बैंक द्वारा आयोजित किए गए कई अध्ययनों में शामिल हैं, इसलिए वे क्षेत्र पर नीति को प्रभावित करते हैं। इस प्रकार गलत अनुमानों से गंभीर नीतिगत गलत निर्णय लिए जा सकते हैं जिनके विनाशकारी परिणाम होते हैं।
शोधकर्ता अंतरराष्ट्रीय सिंचाई जल निकासी (आईडब्ल्यूडब्ल्यू) के अनुमानों में सभी मुख्य मात्रात्मक अनिश्चितताओं को इकट्ठा करके आईडब्ल्यूडब्ल्यू के अनुमानों द्वारा बनाई गई सटीकता के भ्रम अर्थात गलत अनुमानों को प्रदर्शित करते हैं। उन्होंने यह देखने के लिए उवालदे, टेक्सास के केस स्टडी का उपयोग करके आईडब्ल्यूडब्ल्यू के अनुमान को कैसे प्रभावित करते हैं उसे उजागर किया।
इसके परिणाम का प्रमाण यह है कि आईडब्ल्यूडब्ल्यू का अनुमान ग्रिड सेल स्तर पर पहले से ही परिमाण के दो चीजों को आगे बढ़ा सकता है, इस बात की अनदेखी अस्पष्टताओं और बड़े पैमाने के मॉडल की संभावित अविश्वसनीयता को उजागर करता है।
बर्गन विश्वविद्यालय के शोधकर्ता, अर्नाल्ड पुय का कहना है कि उनकी जानकारी में, आईडब्ल्यूडब्ल्यू के अनुमान में अनिश्चितताओं के बारे में पहले पता नहीं लगाया गया है।
इसके कई कारण हैं, यह कम्प्यूटेशनल अर्थात गणना करने के रूप से बहुत महंगा है और मॉडल कभी-कभी इन विश्लेषणों को चलाने के लिए थोड़ा असहज होते हैं। क्योंकि वे नीति निर्धारण को सही दिशा में न ले जा पाने के चलते, मॉडल को बेकार करने के लिए इतनी बड़ी अनिश्चितताओं को सामने ला सकते हैं। शोधकर्ताओं ने कहा यह वही है जो हम दिखाना चाहते हैं।
शोधकर्ताओं ने पूछा कि क्या किया जाना चाहिए? जवाब में, वे तीन सुधारात्मक उपायों का सुझाव देते हैं, जिसमें यह स्वीकार करना कि आगे के शोध के साथ अनिश्चितताएं गायब नहीं हो सकती हैं, अनिश्चितताओं को सटीक रूप से मापने के लिए कम्प्यूटेशनल पावर का उपयोग करना और मॉडल के डिजाइन और उपयोग के आधार पर मान्यताओं को उजागर करना है।
शोधकर्ता पुय और उनके सह-सहयोगी ने कहा कि वे पानी से संबंधित मॉडलों को डिजाइन और उपयोग करने के तरीके को बढ़ावा देने की उम्मीद करते हैं।
उन्होंने कहा हम इस तथ्य के बारे में जागरूकता बढ़ाना चाहते हैं कि मॉडल का उद्देश्य केवल निर्माण नहीं हैं, बल्कि उनके डिजाइनरों द्वारा बिना गड़बड़ी के सही विकल्पों को समाने लाना है।
उन्होंने आगे बताया कि ऐसे मॉडल जिनका उद्देश्य नीतियों का मार्गदर्शन करना है, लेकिन जो अनिश्चितताओं के व्यवस्थित मूल्यांकन से नहीं गुजरे हैं, इनसे जुड़े अहम धारणाओं को संदेह की नजर से देखा जाना चाहिए। यह शोध नेचर कम्युनिकेशंस नामक पत्रका में प्रकाशित हुआ है।