मनरेगा से बनाए तालाब, अब पाल रहे हैं मछलियां

मनरेगा के तहत पिछले 12 सालों में यहां कुल 18 खेत तालाबों का निर्माण किया गया है
मनरेगा के तहत बनाय गया तालाब। फोटो: अनिल अश्वनी शर्मा
मनरेगा के तहत बनाय गया तालाब। फोटो: अनिल अश्वनी शर्मा
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मध्य प्रदेश के सीधी जिला मुख्यालय से विकास खंड कुसमी जाने के रास्ते पर पड़ने वाला कोटा गांव को दूर से देखें तो एक ऐसा गांव दिखाई पड़ता है, जहां दूर-दूर तक केवल पथरीली जमीन ही फैली हुई है और बहुत ही दूर से रूखा-सूखा गांव जान पड़ता है। कहीं दूर-दूर तक कोई संपर्क या कच्चा रास्ता दिखाई नहीं पड़ता। दिखाई पड़ता है तो बस छोटी-मोटी पंगडंडियों के रास्ते। लेकिन इस गांव के ग्रामीणों की अथक मेहनत से अब एक बरसाती नदी को ही बांधा जा रहा है। यही नहीं ग्रामीणों के खेतों को गहरा कर खेत तालाबों का सबसे अधिक निर्माण इस गांव में हुआ है। 

मनरेगा के तहत पिछले 12 सालों में यहां कुल 18 खेत तालाबों का निर्माण किया गया है। इन तालाबों के निर्माण का सबसे अधिक लाभ यह हुआ है कि ग्रामीणों को भविष्य में स्वरोजगार के अवसर सुनिश्चत हुए। चूंकि काम तो मनरेगा के तहत हुआ लेकिन अब इन खेत तालाबों में लोग मछली पालन कर रहे हैं। इसके अलावा इस गांव में ग्रामीणों ने संपर्क मार्क तैयार किया है। ताकि गांव में आवागमन की सुविधा हो और कस्बों से गांव के बीच व्यापारियों के आनेजाने में किसी प्रकार की परेशानी न हो।

गांव के ही धमेंद्र शुक्ला बताते हैं कि खेत तालाबों का लाभ यह हुआ है कि गांव के कुल 52 कुओं में अब सालभर पानी बना रहता है। अन्यथा पहले हालात ये थे कि बारिश के एक-दो माह बाद गांव के अधिकांश कुओं का पानी सूख जाता था। गांव में पानी की उपलब्धता तो बढ़ी ही साथ ही साथ पानी की पर्याप्त उपलब्धता ने ग्रामीणों को अपने खेतों में सब्जी-भाजी लगाने की ओर प्रोत्साहित किया। इससे उनकी रोजमर्रा की जरूरतें सब्जी की बिक्री से पूरी होने लगी। इसके अलावा अब ग्रामीण केवल मोटा अनाज ही नहीं उगाते बल्कि वे गेहूं-चावल और दलहन की भी उपज लेने लगे हैं।

यह सब हुआ है अकेले मनरेगा योजना के क्रियान्वयन होने से। इस संबंध में शिवम सिंह कहते हैं कि ग्रामीणों ने इस योजना को सरकरी योजना न मानकर अपनी योजना माना और इसी का नतीजा है कि इस योजना के तहत होने वाले कार्यों को अपना मान कर करते आए हैं तो इसका लाभ भी अब उन्हें मिलने लगा है।

शुक्ला बताते हैं कि मनरेगा के पहले तक यह गांव काफी रूखा-सूखा रहता था और लगभग 70 प्रतिशत लोग रोजगार की तलाश में पलायन कर जाते थे। लेकिन पिछले लगभग डेढ़ दशक में हुए जल स्त्रोतों ने इस गांव की दशा और दिशा दोनों बदल दी है। अब कहने मात्र के लिए ही गांव के लोग दूसरी जगह काम करने जाते हैं नहीं तो सभी अब अच्छी खासी खेतीबाड़ी और सब्जी-भाजी उगाते हैं। सब्जी आदि वे जिला मुख्यालय जाकर बेचते है।

गांव के संपर्क मार्ग बना कर ग्रामीणों ने अपने लिए तो अच्छे रास्ते सुलभ कराए ही साथ ही इस गांव के आसपास के गांवों वालों के लिए भी एक प्रेरणा स्त्रोत बने। इस संबंध में शुक्ला ने बताया कि आसपास के गांवों में संपर्क मार्ग इतना खराब है कि उन गांवों में गाड़ी और बाइक तो दूर की बात है साइकिल सवार ही पहुंच जाए तो बहुत है। वह भी जब वह पैदल चलकर साइकिल केवल लुढ़काते हुए ही चले। उन्होंने बताया कि पिछले दिनों इस गांव के आसपास के कुल सात गांवों के लोगों ने अपने-अपने संबंधित मनरेगा अधिकारियों को बताया कि अब हमें भी मनरेगा के तहत संपर्क मार्ग बनवाना है।

यह गांव जिला मुख्यालय से लगभग सवा सौ किलोमीटर दूर है। यही नहीं यह मुख्य सड़क से भी कम से कम दस किलीमीटर अंदर स्थित है। कहने का अर्थ कि गांव में मनरेगा के शुरू होने के पहले तक आवागमन के लिए रास्ता तक नहीं था और अब है कि एक बन गया है और अब गांव के अंदर भी कच्ची सड़कों का निर्माण किया जा रहा है।

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